खोर्चाक मठ में भिक्षु सांगपो
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के आली प्रिफेक्चर में स्थित पुरांग काउंटी के खोर्चाक मठ में, आज सुबह, 24 वर्षीय भिक्षु सांगपो हमेशा की तरह मंजुश्री बोधिसत्व की मूर्ति के सामने बैठकर ध्यान करते हुए सूत्र पढ़ रहा है। अगर वह लाल रंग की भिक्षुओं की पोशाक न पहनें, तो आपको यकीन नहीं होगा कि कलाई में स्वर्णिम रंग की क्वाटर्ज घड़ी और पैर पर स्नीकर पहने तिब्बती युवक गत सदी के 90 के दशक में जन्मे एक भिक्षु है।खोर्चाक मठ चीन, भारत और नेपाल की सीमा पर खोर्चाक गावं में स्थित है, जिसे सन् 996 में तिब्बती बौद्ध धर्म के सूत्र अनुवाद करने वाले स्वामी रिनचिन ज्यांपो ने स्थापित करवाया था। बताया जाता है कि जब से लोगों ने मंजुश्री बुद्ध की मूर्ति लेकर यहां गुज़रना शुरू किया, तब से मंजुश्री बोधिसत्व की मूर्ति अचानक कहती है यहीं रुको। इस पर लोगों ने यहीं पर खोर्चाक मठ बनाया।
इतिहास में खोर्चाक मठ पहले था, बाद में खोचार्क गांव की स्थापना हुई, इसलिए गांव को खोर्चाक मठ से जाना जाता है।
भिक्षु सांगपो बचपन से ही खोर्चाक मठ में रहता है। आठ साल पहले 16 वर्ष की उम्र में वह भिक्षु बन गए। सांगपो ने कहा:"मेरे परिवार में कुल 10 लोग हैं। घर में माता-पिता, भाई-बहनें सभी लोग तिब्बती बौद्ध धर्म के श्रद्धालु हैं। जब उन्होंने मेरे मठ जाने का फ़ैसला सुना, वे बहुत खुश हुए। यहां आने का उद्देश्य आस्था और दूसरे लोगों की मदद करना है।"
मठ में प्रवेश करने से पहले सांगपो ने गांव के प्राइमरी स्कूल में 5 साल की शिक्षा हासिल की। खोर्चाक मठ आने के बाद उसका मुख्य काम बौद्ध सूत्र पढ़ना और सीखना है। मठ के जीवन के बारे में बताते हुए भिक्षु सांगपो ने कहा:"मठ में भिक्षु रोज़ सुबह 7 बजे उठकर बोधिसत्व की पूजा करते हैं। 10 बजे सुबह की क्लास----सूत्र पढ़ना शुरू करते हैं। दोपहर के खाने के बाद से शाम को 5 या 6 बजे तक हम सूत्र पढ़ते हैं, साथ ही कानूनी ज्ञान और चीनी भाषा सीखते हैं। मैं थोड़ी चीनी जानता हूँ, लेकिन अच्छी तरह से बोल नहीं सकता। हम भिक्षुओं के लिए कोई छुट्टियां नहीं होती, इसलिए खाली समय में हम एक साथ फुटबॉल और बास्केटबॉल खेलते हैं, या कभी-कभी खोचार्क गांव वासियों के साथ फुटबॉल और बास्केटबॉल मैच खेलते हैं। हर वर्ष मठ की प्रबंधन समिति (खोर्चाक मठ की लोकतंत्र प्रबंधन समिति) भिक्षुओं के लिए यात्रा का आयोजन करती है। और कौन जाएगा, मतदान से पता चलेगा। पिछली बार उन्होंने शिकाज़े के कई मंदिरों के दर्शन किए। मतदान में मुझे नहीं चुना गया था, इसलिए अगली बार जाने की कोशिश करूंगा। हम पहाड़ों और नदियों में जाना पसंद नहीं करते। आम तौर पर हम दूसरे मंदिरों में जाते हुए आदान-प्रदान करते हैं।"