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वन रक्षक दावा की कहानी
2016-01-29 19:32:48 cri

दावा के घर के सामने का दृश्य 

वर्ष 2004 में चीन सरकार ने औपचारिक रूप से पारिस्थितिक जंगलों की निर्माण योजना शुरू की। किराए पर वन रक्षक की व्यवस्था के बजाय पारिस्थितिक जंगलों के लिए मुआवजा दिया जाता है तथा व्यावसायिक वन के प्रबंधन व रक्षा टीम का गठन किया जाता है। पारिस्थितिक जंगलों के लिए मुआवज़ा लेने वाले गांववासियों को वन रक्षक बनाया गया। इस तरह से जनव्यापी वनों की रक्षा व्यवस्था स्थापित हुई है। एक साल के बाद यानी वर्ष 2005 में वनों की रक्षा में दावा के योगदान की प्रशंसा के लिए राष्ट्रीय वन ब्यूरो ने उन्हें "राष्ट्रीय श्रेष्ठ वन रक्षक " की उपाधि प्रदान कर प्रमाण पत्र उनके घर भेजा।

अब दावा की उम्र अधिक हो गई है। उनका स्वास्थ्य उतना अच्छा नहीं रहता, जितना पहले था। वर्ष 2007 में टूटी बांह में अक्सर दर्द होता रहता है। उन्होंने 10 साल पहले हासिल प्रमाण पत्र को पीले रेशमी कपड़े से लिपटे हुए कागज़ के बॉक्स में रखा है, इसे सूत्र जाप तथा बुद्ध की पूजा करने वाले बुद्ध हॉल में सुरक्षित रखा है। हालांकि वे पहले की तरह वनों में गश्त नहीं लगा सकते हैं, फिर भी वे कभी कभार खड़े होकर अपने घर के सामने सेडार पड़ के वनों की ओर देखते हैं। दावा ने कहा: "वनों की रक्षा करने की मुख्य वजह भूस्खलन और बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं को रोकना है। वनों की रक्षा भावी पीढ़ी तथा देश के भविष्य के विकास के लिए की जा रही है। अगर वनों को काटा गया तो आने वाले समय में विकास के संसाधन बहुत कम हो जाएंगे।"

(शांति)


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