दादी मां सांग्ये खांग्सो की बेटी त्सेरिंग
दादी मां सांग्ये खांग्सो न्यिंग्ची प्रिफेक्चर में मैंरी जिले की चोंग्सर गांववासी हैं। जो तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तीर-गीत की उत्तराधिकारी ही नहीं, तीर-गीत गाने वाली सबसे बूढ़ी गायक भी हैं। 30 साल पहले दादी मां सांग्ये खांग्सो ने गांव में दूसरे कई ग्रामीणों के साथ गुरू लुओ तान से कोंग्पो तीर-गीत गाना सीखना शुरू किया। लेकिन आज गुरू और दूसरे तीर-गीत गाने में निपुण गांववासी इस दुनिया में नहीं हैं। इस तरह कोंग्पो तीर-गीत गाने वाली सिर्फ़ दादी मां सांग्ये खांग्सो रह गई हैं। कुछ समय दादी मां बहुत अकेली और उदास रहती थी। बेटी त्सेरिंग ने मां की स्थिति को देख कर माता जी से कोंग्पो तीर-गीत सीखने की मांग की। मां और बेटी तीर-गीत पढ़ाती-सिखाती हुए साथ साथ गाती हैं। त्सेरिंग ने कहा:"गीत गाते समय हमारे मन में बहुत अच्छा लगता है। मैं मां के साथ गाना चाहती हूँ और कभी-कभी खुद गाना चाहती हूँ।"
पुरुष और महिला के बीच प्रेम के वर्णन के अलावा कोंग्पो तीर-गीत के विषयों में मुख्य तौर पर शिकारियों के तकनीक और वीर साहस का गुणगान किया जाता है। तीर-गीत में प्राकृतिक जीव-वस्तुओं के माध्यम से गायकों के मन की भावना अभिव्यक्त की जाती है। तिब्बती जाति के दूसरी तरह के गीतों के बराबर कोंग्पो तीर-गीत में धुन में ज्यादा बदलाव नहीं होता। लेकिन गीत के बोल बहुत रंगारंग हैं। तीर-गीत में पुराने जमाने से आज तक सुरक्षित बोल ही नहीं, नए रचित बोल भी शामिल हैं। यहां तक कि गायक गाते समय स्थिति के मद्देनज़र यथा स्थान पर गीत के बोल रचते हैं। पारंपरिक कोंग्पो तीर-गीत के धुन और बोल के बारे में कोई लिखित रिकोर्ड नहीं है। आम तौर पर गुरू जुबान से अपने शिष्यों को सिखाते थे।
वर्तमान में दादी मां सांग्ये खांग्सो खेती का काम नहीं करती। तिब्बत में गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत के रूप में तीर-गीत के उत्तराधिकारी बनने के बाद वे ज्यादा तौर पर गांव में युवा ग्रामीणों को गीत सिखाती हैं। अब चोंग्सर गांव के 60 से अधिक लोगों में दस से अधिक युवाओं ने दादी मां से सीखा, अब उन्हें भी तीर-गीत गाना आता है। इनमें दादी मां सांग्ये खांग्सो के बेटी और पोती भी शामिल हैं। इसके साथ ही चोंग्सर गांव के आसपास दूसरे गांवों के लोग दादी मां से तीर-गीत सीखने आए। दादी मां सांग्ये खांग्सो ने कहा:"अब कई लोगों को कोंग्पो तीर-गीत गाना आता है। इससे मुझे खुशी होती है। फुर्सत के वक्त लोग एकत्र होकर जौ की शराब पीते हुए साथ-साथ गाते हैं। लोग खुश हैं तो मैं भी बहुत खुश हूँ।"