भोजन की थालियाँ परोसी गई, दानव भोजन करने के लिए बैठे, वे भोजन शुरू करने ही वाले थे कि ब्रम्हा जी हाथ में कुछ लकड़ियाँ लेकर उनके समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने कहा, "आज के भोजन की एक छोटी-सी शर्त है मैं यहाँ उपस्थित हर एक अतिथि के दोनों हाथों में इस प्रकार से लकड़ी बांधूंगा कि वो कोहनी से मुड़ नहीं पाए और इसी स्थिति में सभी को भोजन करना होगा । "
कुछ देर बाद सभी असुरों के हाथों में लकड़ियाँ बंध चुकीं थीं। अब असुरों ने खाना शुरू किया , पर ऐसी स्थिति में कोई कैसे खा सकता था। कोई असुर सीधे थाली में मुँह डालकर खाने का प्रयास करने लगा तो कोई भोजन को हवा में उछालकर मुँह में डालने का प्रयत्न करने लगा । दानवों की ऐसी स्थिति देखकर नारद जी अपनी हंसी नहीं रोक पाए !
अपने सारे प्रयास विफल होते देख दानव बिना खाए ही उठ गए और क्रोधित होते हुए बोले, "हमारी यही दशा ही करनी थी तो हमें भोजन पर बुलाया ही क्यों? कुछ देर पश्चात् देव भी यहाँ पहुँचने वाले हैं ऐसी ही लकड़ियाँ आप उनके हाथों में भी बांधियेगा ताकि हम भी उनकी दुर्दशा का आनदं ले सकें…. "
कुछ देर पश्चात् देव भी वहाँ पहुँच गए और अब देव भोजन के लिए बैठे, देवों के भोजन मंत्र पढ़ते ही ब्रम्हा जी ने सभी के हाथों में लकड़ियाँ बाँधी और भोजन की शर्त भी रखी ।
हाथों में लकड़ियाँ बंधने पर भी देव शांत रहे , वे समझ चुके थे कि खुद अपने हाथ से भोजन करना संभव नहीं है अतः वे थोड़ा आगे खिसक गए और थाली से अन्न उठा सामने वाले को खिलाकर भोजन आरम्भ किया । बड़े ही स्नेह के साथ वे एक दूसरे को खिला रहे थे, और भोजन का आनंद ले रहे थे, उन्होंने भोजन का भरपूर स्वाद लिया साथ ही दूसरों के प्रति अपना स्नेह, और सम्मान जाहिर किया ।
यह कल्पना हमे क्यों नहीं सूझी इसी विचार के साथ दानव बहुत दुखी होने लगे । नारद जी यह देखकर मुस्कुरा रहे थे । नारद जी ने ब्रम्हा जी से कहा, "पिताश्री आपकी लीला अगाध है । युक्ति, शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग स्वार्थ हेतु करने की अपेक्षा परमार्थ के लिए करने वाले का जीवन ही श्रेष्ठ होता है । दूसरों की भलाई में ही अपनी भलाई है यह आपने सप्रमाण दिखा दिया और मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया है । ब्रम्हा जी को सबने प्रणाम किया और वहाँ से विदा ली ।
दोस्तों, हमें यह जीवन सिर्फ अपने ही स्वार्थ के लिए नहीं मिला है, यदि हम इसका उपयोग परोपकार के कार्यों के लिए करते हैं तो निश्चित रूप से हमें इसी जीवन में स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यदि हम दूसरों को प्यार और स्नेह देंगे तो बदले में हमे भी वही मिलेगा। यदि हम अपने सामर्थ्य के अनुसार हमारे समाज के लिए एक छोटा-सा योगदान भी दे सकें तो यह अपने आपमें एक बहुत बड़ी उपलब्धि के बराबर है !
वनिता- दोस्तों, अभी आपने सुनी यह प्रेरक कहानी, चलिए हम आपको एक Whatsapp Poem सुनाने जा रहे हैं, जिसे भेजा है बिकानेर से भाई पवन सिंह जी ने।
अखिल- इस Poem का नाम है "WhatsApp" ने कमाल कर दिया
जोड़ दिये सब टूटे रिश्ते,
बरसों पहले छूटे रिश्ते !
फ़ैमिली को परिवार कर दिया,
"WhatsApp" ने कमाल कर दिया !!
स्कूल के सब यार मिल गये,
यादों के अंबार मिल गये !
खुशियों भरा संसार कर दिया,
"WhatsApp" ने कमाल कर दिया !!
सेंस ऑफ़ ह्यूमर तेज हो गया,
भोंदू भी अंग्रेज हो गया !
कॉपी पेस्ट का जाल कर दिया,
"WhatsApp" ने कमाल कर दिया !!
पाँचवी फ़ेल भी लॉयर बन गया,
हर कोई क्रिकेट अंपायर बन गया !
संसद सा माहौल कर दिया,
"WhatsApp" ने कमाल कर दिया !
वनिता- आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई पवन सिंह जी। हमें आपकी यह कविता बहुत पसंद आयी। चलिए दोस्तों, अभी हम सुनते हैं एक हिन्दी गाना... उसके बाद आपके ले चलेंगे हंसी-खुशी की दुनिया में जहां सुनाए जाएंगे चटपटे और मजेदार जोक्स।...