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अखिल- दोस्तों, राजस्थान के अजमेर शरीफ की दरगाह एक देखने योग्य जगह है। दरगाह शरीफ या फिर अजमेर शरीफ के नाम से प्रसिद्ध इस दरगाह में हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मजार है। यह भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है, जहां ना केवल मुस्लिम बल्कि दुनिया भर से हर धर्म के लोग खिंचे चले आते हैं।
यहां का मुख्य पर्व उर्स है। ये इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठवीं तारीख तक मनाया जाता है। अभी हाल ही में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने अजमेर शरीफ की दरगाह पर चादर चढ़वाई थी। यहां कई राजनेताओं के अलावा बॉलीवुड के बडे़ बडे़ एक्टर्स भी मन्नत मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं।
अजमेर शरीफ से जुड़ी कई ऐसी हैरान कर देने वाली बातें जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज हम उन्हीं के बारे में बात करेंगे... आइए... जानिये अजमेर शरीफ से जुड़ी ये 10 खास बातें
1. मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी की दरगाह में आने वाला पहला व्यक्ति था जिसने 1332 में यहाँ की यात्रा की थी।
2. जहालरा - यह दरगाह के अंदर एक स्मारक है जो कि हजरत मुईनुद्दीन चिश्ती के समय यहाँ पानी का मुख्य स्त्रोत था| आज भी जहालरा का पानी दरगाह के पवित्र कामों में लिया जाता है|
3. रोजाना नमाज के बाद सूफी गायकों और भक्तों के द्वारा अजमेर शरीफ के हॉल महफ़िल-ए-समां में अल्लाह की महिमा का बखान करते हुए कव्वालियां गाई जाती हैं|
4. निज़ाम सिक्का नामक एक साधारण पानी भरने वाले ने एक बार यहाँ मुग़ल बादशाह हुमायूँ को बचाया था| इनाम के तौर पर उसे यहाँ का एक दिन का नवाब बनाया गया| निज़ाम सिक्का का मक़बरा भी दरगाह के अंदर स्थित है|
5. दरगाह के अंदर दो बड़े-बड़े कढाहे हैं जिनमें निआज़ (चांवल,केसर, बादाम, घी, चीनी, मेवे को मिलाकर बनाया गया खाद्य पदार्थ) पकाया जाता है| यह खाना रात में बनाया जाता है और सुबह प्रसाद के रूप में जनता में वितरित किया जाता है| यह छोटे कढाहे में 12.7 किलो और बड़े वाले में 31.8 किलो चांवल बनाया जाता है| कढाहे का घेराव १० फ़ीट का है| यह बड़ा वाला कढाहा बादशाह अकबर द्वारा दरगाह में भेंट किया गया जब कि इससे छोटा वाला बादशाह जहांगीर द्वारा चढ़ाया गया|
6. शाह जहानी मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक अद्भुभूत नमूना है जहां अल्लाह के 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं।
7. संध्या प्रार्थना से 15 मिनट पहले दैनिक पूजा के रूप में दरगाह के लोगों द्वारा दीपक जलाते हुये ड्रम की धुन पर फारसी छंद भी गाये जाते हैं। इस छंद गायन के बाद ये लेंप्स मिनार के चारों और जलते हुये रखे जाते हैं। इसे परंपरा को 'रोशनी' कहते हैं।
8. इसके पश्चिम में चाँदी चढ़ाया हुआ एक खूबसूरत दरवाजा है जिसे जन्नती दरवाजा कहा जाता है। यह दरवाजा वर्ष में चार बार ही खुलता है- वार्षिक उर्स के समय, दो बार ईद पर, और ख्वाजा शवाब की पीर के उर्स पर।
9. अजमेर शरीफ में सूफी संत मोइनूदीन चिश्ती की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उर्स के रूप में 6 दिन का वार्षिक उत्सव रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब ख्वाजा साहब 114 वर्ष के थे तो उन्होने अपने आप को 6 दिन तक कमरे में रखकर अल्लाह की प्रार्थना की। आश्चर्य की बात यह है कि इस समय अल्लाह के मुरीदों के द्वारा एकदम गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर यह खाना वितरित किया जाता है।
10. अजमेर शरीफ के अंदर बनी हुई अकबर मस्जिद अकबर द्वारा जहाँगीर के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति के समय बनाई गई। वर्तमान में यहाँ मुस्लिम धर्म के बच्चों को कुरान की तामिल (शिक्षा) प्रदान की जाती है।
वनिता- दोस्तों, ये थी अजमेर शरीफ से जुड़ी ये 10 खास बातें, अब हम चलते हैं एक प्रेरक कहानी की तरफ जिसे सुनाएंगे अखिल जी।
अखिल- दोस्तों, एक बार देवर्षि नारद अपने पिता ब्रम्हा जी के सामने "नारायण-नारायण"का जप करते हुए उपस्थित हुए और पूज्य पिताजी को दंडवत प्रणाम किया। नारद जी को सामने देख ब्रम्हा जी ने पुछा, "नारद! आज कैसे आना हुआ? तुम्हारे मुख के भाव कुछ कह रहे हैं! कोई विशेष प्रयोजन है अथवा कोई नई समस्या ?"
नारद जी ने उत्तर देते हुए कहा, " पिताश्री ऐसा कोई विशेष प्रयोजन तो नहीं है, कई दिनों से एक प्रश्न मन में खटक रहा है । आज आपसे इसका उत्तर जानने के लिए उपस्थित हुआ हूँ । "
"तो फिर विलम्ब कैसा? मन की शंकाओं का समाधान शीघ्रता से कर लेना ही ठीक रहता है! इसलिए निः संकोच अपना प्रश्न पूछो!" – ब्रम्हाजी ने कहा ।
"पिताश्री आप सारे सृष्टि के परमपिता है, देवता और दानव आप की ही संतान हैं । भक्ति और ज्ञान में देवता श्रेष्ठ हैं तो शक्ति तथा तपाचरण में दानव श्रेष्ठ हैं! परन्तु मैं इसी प्रश्न में उलझा हुआ हूँ कि इन दोनों में कौन अधिक श्रेष्ठ है। और आपने देवों को स्वर्ग और दानवों को पाताल लोक में जगह दी ऐसा क्यों? इन्हीं प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए मैं आपकी शरण में आया हूँ" – नारद ने ब्रम्हाजी से अपना प्रश्न बताते हुए कहा ।
नारद का प्रश्न सुन ब्रम्हदेव बोले, नारद इस प्रश्न का उत्तर देना तो कठिन है और इसका उत्तर मैं नहीं दे पाऊँगा क्योंकि देव और दानव दोनों ही मेरे पुत्र हैं एवं अपने ही दो पुत्रों की तुलना अपने ही मुख से करना उचित नहीं होगा! लेकिन फिर भी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ढूंढने में मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ। तुम आज ही देवों और दानवों दोनों को मेरी और से भोजन का निमंत्रण भेजो। कल ही हम उनके लिए भोज का आयोजन करेंगे । और कल ही तुम्हे तुम्हारे प्रश्न कि देव क्यों स्वर्ग-लोक में हैं तथा दानव पाताल-लोक में ; का उत्तर भी मिल जायेगा!
नारद तत्काल ही असुरों और देवों को निमंत्रण दे आये।
दुसरे दिन दानव ब्रम्ह-लोक में भोजन का आनंद लेने के लिए पहुँच गए और उन्होंने पहले पहुँचने के कारण भोजन की पहली शुरूआत खुद से करने के लिए ब्रम्हा जी से आग्रह किया ।