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संडे की मस्ती 2014-08-03
2014-08-04 14:22:59 cri

अखिल- आपका एक बार फिर स्वागत है इस मस्ती भरे कार्यक्रम में, जिसका नाम है संडे की मस्ती। दोस्तों, मैं अब जो किस्सा सुनाने जा रहा हूं वो उन दिनों की बात है जब प्रख्यात वैज्ञानिक थॉमस एडिसन फोनोग्राफ बनाने में व्यस्त थे। इस काम से जुड़े कुछ हिस्से उन्होंने एक सहायक को सौंप दिए थे ताकि वह मुख्य लक्ष्य पर खुद को केंद्रित कर सकें। दो साल तक काम करने के बाद एडिसन का सहायक उनके पास आया और बोला, ' मिस्टर एडिसन! मैंने आपके हजारों डॉलर और अपने जीवन के दो साल इस काम में खपा दिए हैं पर परिणाम कुछ भी नहीं निकला। और लगता भी नहीं कि मुझसे कुछ हो पाएगा। आपकी जगह अगर कोई और होता तो मुझे कब का निकाल चुका होता और मैं भी कब का निकल लेता। पर अब मुझे अहसास होने लगा है कि मैं आपके साथ अन्याय कर रहा हूं। अब मैं इस्तीफा देना चाहता हूं।'यह कहते हुए उसने अपना इस्तीफा पत्र एडिसन की मेज पर रख दिया और विनम्रतापूर्वक बोला, 'सर, कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार कीजिए।'

एडिसन ने झटके में इस्तीफा पत्र उठाया और फाड़ दिया। फिर अपने चिर-परिचित अंदाज में बोले, 'मैं तुम्हारा इस्तीफा नामंजूर करता हूं।'क्षण भर रुक कर कुछ सोचने के बाद एडिसन ने अपने सहायक से कहा, ' दोस्त, मेरा विश्वास है कि अगर समस्या है तो उसका कोई न कोई हल भी होगा। दरअसल हल हमारे पास ही होता है, पर हम उसे देख नहीं पाते। इसलिए तुम जिस काम में जुटे हो उसमें लगे रहो। किसी न किसी दिन समाधान मिलेगा। वापस जाकर अपने काम में लग जाओ।' एडिसन के प्रेरणा भरे शब्दों ने उनके सहायक का विश्वास मजबूत कर दिया। वह दोगुने उत्साह से काम में लग गया। एडिसन ने कुछ दिनों बाद फोनोग्राफ बना लिया। इसमें उस सहायक का भी योगदान था।

लिली- अखिल जी... वाकई इस किस्से से हमें यह सीख मिलती है कि अगर समस्या है तो उसका कोई न कोई हल भी होगा। हल हमारे पास ही होता है, पर हम उसे देख नहीं पाते।

अखिल- बिल्कुल... और उसके लिए हमें काम में तब तक जुटे रहना चाहिए, जब तक हल न निकल जाए।

चलिए... अब हम एक ओडियो सुनवाते हैं जिसमें आप पार्टी के सदस्य और पंजाब के संगरूर के सांसद भगवंत मान ने संसद में अपनी बात को एक कविता में कहा। सुनिए...

अखिल- दोस्तों, हम भी आपको एक कहानी सुनाते हैं जिसमें एक माँ की मजबूरी नजर आती है।

एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी, कोई स्वप्न सरिता उसका मन भिगो रही थी...

तभी उसका बच्चा यूँही गुनगुनाते हुए आया, माँ के पैरों को छूकर हल्के हल्के से हिलाया...

माँ उनीदी सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी, तभी उस नन्हे बच्चे ने हलवा खाने की ज़िद कर दी...

माँ ने उसे पुचकारा और फिर गोद में ले लिया, फिर पास ही ईंटों से बने चूल्हे का रुख़ किया...

फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी-सी कढ़ाई रख दी, फिर आग जला कर कुछ देर उसे तकती रही...

फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी, क्या सुनोगे तब तक कोई परियों वाली कहानी...

मुन्ने की आँखें अचानक खुशी से थी खिल गयी, जैसे उसको कोई मुँह माँगी मुराद हो मिल गयी...

माँ उबलते हुए पानी में कर्छी ही चलाती रही, परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही...

फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया, सामने बैठे बैठे ही लेटा और फिर वही सो गया...

फिर माँ ने उसे गोद में ले लिया और मुस्काई, फिर पता नहीं जाने क्यूँ उनकी आँख भर आई...

जैसा दिख रहा था वहाँ पर सब वैसा नहीं था, घर में एक रोटी की खातिर भी पैसा नही था...

राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था, कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था...

न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था, चूल्हा भी तो बेचारा माँ के आँसूओं से गला था...

फिर उस बेचारे को वो हलवा कहाँ से खिलाती, उस जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती...

वो मजबूरी उस नन्हे मन को माँ कैसे समझाती या फिर फालतू में ही मुन्ने पर क्यूँ झुंझलाती...

इसलिए हलवे की बात वो कहानी में टालती रही, जब तक वो सोया नही, बस पानी उबालती रही...

लिली- वाह.. बहुत ही टचिंग स्टोरी है यह।

अखिल- जी लिली जी। इस कहानी में एक मां की मजबूरी झलक रही है।

अखिल- चलिए दोस्तों, अब मजेदार जोक का वक्त हो चला है...

गर्लफ्रेंड अपने कंजूस बॉयफ्रेंड से बोली: कल रात मैंने तुम्हें सपने में देखा।

बॉयफ्रेंड: अच्छा! क्या सपना देखा?

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