2009-06-19 16:26:55

भारत को चीन भारत बीच विवादस्पद सीमांत क्षेत्र में छोटी अनुचित हरकत नहीं करनी चाहिए

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता छिन कांग ने 18 तारीख को कहा कि चीन एशिया विकास बैंक की कारकारी परिषद में चीन और भारत के बीच विवादस्पद सीमा सवाल से संबंधित दस्तावेज पारित किये जाने पर अत्यन्त असंतुष्ट है और एशिया विकास बैंक के प्राधिकरण से इस से पैदा हुए कुप्रभाव को मिटाने के लिए कदम उठाने की मांग की है। चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि एशिया विकास बैंक द्वारा विवादस्पद चीन भारत सीमांत क्षेत्र से संबंधित जो दस्तावेज पारित किया है, उसका भारत के पब्लिक संबंध के लिए प्रयासों से घनिष्ठ जुड़ा है । हाल में भारत द्वारा विवादस्पद सीमांत क्षेत्र में लगातार सेना भेजने की कार्यवाही को देखते हुए यह बहुत साफ है कि भारत चीन व भारत के बीच विवादस्पद सीमा क्षेत्र पर अपना नियंत्रण मजबूत करने के जरिए राजनीतिक व रणनीतिक पहल प्राप्त करना चाहता है।

हाल ही में एशिया विकास बैंक की कारकारी परिषद ने चीन भारत विवादस्पद सीमा क्षेत्र से संबंधित भारत देश की साझेदारी रणनीति 2009-2012 नामक दस्तावेज पारित किया, जिस के अनुसार बैंक भारत को 2 अरब 90 करोड़ अमरीकी डालर का कर्ज देगा, जिस में से 6 करोड़ डालर विवादस्पद सीमा क्षेत्र यानी तथाकथित अरूणाचल प्रदेश में जल संसाधन परियोजना में इस्तेमाल किया जाएगा। चीनी समाज विज्ञान अकादमी के एशिया प्रशांत संस्था के राजनीतिक मामला कार्यालय के उप प्रधान श्री ये हाई लिन ने कहा कि एशिया विकास बैंक की यह कार्यवाही सदस्य देशों के राजनीतिक मामलों में अहस्तक्षेप के अपने सिद्धांत के विरूद्ध है, जो चीन भारत सीमा विवाद के समाधान के लिए अहितकारी है। उन्हों ने कहाः

एशिया विकास बैंक एक गैर देशीय वित्तीय संस्था है, उसे सदस्य देशों के सीमा जैसे राजनीतिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। बेशक, उस का दस्तावेज चीन की सीमा पर भारत के वर्तमान गैर कानूनी कब्जे की असलियत नहीं बदल सकता, बल्कि इस दस्तावेज ने क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के अपने उद्देश्य का उल्लंघन किया है। जो चीन भारत सीमा सवाल के समाधान के लिए फायदेमंद नहीं है।

श्री ये हाई लिन ने कहा कि एशिया विकास बैंक में उक्त दस्तावेज पारित होने के पीछे भारत के पब्लिक संबंध के लिए प्रयासों का हाथ है, भारत का मकसद है कि इस से विवादस्पद सीमांत क्षेत्र में अपने आर्थिक व कुटनीतिक अस्तित्व को मजबूत किया जाए। श्री ये ने कहाः

एशिया विकास बैंक जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में भारत ने पब्लिक संबंध का विकास करने में खासा शक्ति लगायी । भारत चाहता है कि इस से तथाकथित अरूणाचल प्रदेश पर अपने नियंत्रण को मजबूत किया जाए। वह एशिया विकास बैंक की इस परियोजना का बेजा फायदा उठाकर अरूणाचल की ओर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना और उसे भारत के प्रादेशिक भूमि के अन्तर्गत रख देना चाहता है, ताकि अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी ऐसी समान राय कायम हो।

ध्यान रहे, भारत ने हाल ही में तथाकथित अरूणाचल प्रदेश के बारे में अनेक गतिविधियां कर दिखायी हैं। भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अप्रेल में इस प्रदेश का दौरा किया । जून के माह में भारत ने वहां बहुसंख्यक कुमकी सेना भेजी । श्री ये हाई लिन का मत है कि भारत की इन कार्यवाहियों का एक सीधा मकसद आगामी अगस्त में नए दौर की सीमा वार्ता में पहल की स्थिति पाना है। उन्हों ने कहाः

इन कार्यवाहियों से जाहिर है कि भारत तथाकथित अरूणाचल की मौजूदगी मजबूत करने के जरिए वहां अपने अधिकार को मजबूत करना चाहता है, ताकि चीन के साथ भावी सीमा सवाल के समाधान में चीन को और अधिक कीमत चुकाने विवश किया जाए या चीन पर रणनीतिक धमकी कायम की जाए और चीन को अन्य तरीके से सवाल को हल करने से रोका जाए।

श्री ये ने कहा कि विवादस्पद सीमा सवाल पर भारत ने लगातार चीन के खिलाफ चुनौति खड़ी की हैं, इस में भारत, अमरीका व चीन के संबंधों के लिए गहन निहित रणनीतिक मकसद छिपा है।

श्री ये ने कहा कि वर्तमान वित्तीय संकत की परिप्रेक्ष्य में चीन, अमरीका व भारत के त्रिकोण संबंध में बदलाव आया है। भारत को चिंता है कि कहीं आतंक विरोध तथा आर्थिक सवाल के कारण अमरीका पाकिस्तान व चीन पर ज्यादा महत्व न दे, जिस से अमरीका की दक्षिण एशिया रणनीतिक नीति में भारत का स्थान घट जाएगा। ऐसी स्थिति में भारत चीन के साथ मुठभेड़ बढ़ाने से अमरीका को यह साबित करना चाहता है कि दूरगामी अन्तरराष्ट्रीय रणनीति की दृष्टि से चीन को रोकने तथा नियंत्रत करने के अमरीका के दीर्घकालीन लक्ष्य के लिए भारत का भारी सामरिक महत्व है।

श्री ये हाई लिन ने कहा कि चीन भारत सीमा सवाल इतिहास द्वारा छोड़ा गया बहुत जटिल सवाल है, जिसे अल्पसमय में हल नहीं किया जा सकेगा। वर्तमान में भारत को उग्रवादी कार्यवाही से विवाद खड़ा नहीं करना चाहिए और चीन भारत संबंधों के सामान्य विकास को प्रभावित नहीं करना चाहिए। भारत को मौखिक तौर पर नहीं, ठोस व व्यवहारिक कदम उठाने से यह साबित करना चाहिए कि वह चीन के साथ पूर्ण सहयोग की ईमानदारी रखता है । उसे विवादस्पद क्षेत्रों में छोटी अनुचित हरकत नहीं करना चाहिए ।