चीन में सुधार व खुले द्वार की नीति लागू की जाने के पिछले 30 वर्षों में मातृभूमि के शक्तिशाली होने के चलते तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में दिन दुना रात चौगुना परिवर्तन आया है । तिब्बत के कृषि व पशुपालन उद्योग का विकास, जन जीवन का स्तर, नागरिकों के लिए यातायात तथा चिकित्सा आदि क्षेत्रों में बड़ा विकास हुआ है । इस के साथ ही सामाजिक अर्थतंत्र छलांग के साथ विकसित हो रहा है, तिब्बती जनता की जीवन गुणवत्ता सुधरी है ।
"हमारे दा रेवा ग्रुप के अधीनस्थ आठ शाखा कंपनियां हैं । वर्ष 2007 के अंत तक हमारे ग्रुप की अचल पूंजी 50 करोड़ य्वान तक पहुंच गई । ऐसी संपत्ति प्राप्त करने की पुराने तिब्बत में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ।"
उक्त बात 50 से ज्यादा उम्र वाले तिब्बती बंधु छुनफेई त्सेरन ने कही । उस का जन्म तिब्बत की रनबू कांउटी में एक गरीब तिब्बती भूदास परिवार में हुआ । वर्ष 1959 में तिब्बत में जनवादी सुधार लागू किया गया । बच्चा छुनफेई त्सेरन ने जागीरदारों के लिए घोड़े पालने का गुलाम जीवन समाप्त किया । वर्ष 1982 में उस ने"दा रेवा"नामक मकान निर्माण दल की स्थापना की । बीसेक वर्षों के प्रयत्नों से आज का"दा रेवा"ग्रुप तिब्बत के गैर सरकारी कारोबारों में प्रथम स्थान पर है और छुनफेइ त्सेरन आस पड़ोस में सुप्रसिद्ध उद्यमी बन गया है।
वास्तव में छुनफेइ त्सेरन की तरह सुधार व खुले द्वार की नीति लागू की जाने के बाद जिन के जीवन स्तर में भारी परिवर्तन आया है ऐसे तिब्बतियों की संख्या बड़ी है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा से कोई दस किलोमीटर दूर "दूग्ध का जन्मस्थान"के नाम से मशहूर चांग रे गांव स्थित है । पासांग ने कहा कि पहले गाय पालन से मात्र अपने घर के खान पान सवाल का समाधान किया जाता था, लेकिन आज यह घर की प्रमुख आय का स्रोत बन गया है । पासांग ने कहा:
"मैं 35 गाय पालता हूँ । हर दिन दुग्ध का उत्पादन दो सो किलो है । आज दही बेचने वाले कर्मियों और तकनिशियनों समेत मेरे पास 11 व्यक्ति हैं । उन का वेतन, गायों की खुराक की फ़ीस के अलावा हर वर्ष मैं सत्तर हज़ार य्वान कमाता हूँ । आज हमारा जीवन दिन ब दिन बेहतर हो रहा है ।"
दोस्तो, गत शताब्दी के अस्सी वाले दशक में पीढ़ी दर पीढ़ी किसान रहे पासांग तिब्बत के कृषि क्षेत्र के अन्य परिवार के व्यक्ति के बराबर था । वर्ष 1994 में पासांग ने अपनी गाएं बेच दीं और स्थानीय सरकार से प्राप्त लघु ऋण से भीतरी इलाके से छह उच्च गुणवत्ता वाली गाय खरीदीं । तब से पासांग ने घी और दुग्ध बेचने का काम करना शुरू किया । वर्ष 2003 में पासांग ने चांग रे गांव में प्रथम दही प्रोसेसिंग कारखाने की स्थापना की और"पाजा"नामक दुग्ध पेय बेचने लगा ।
तिब्बती बंधु पासांग के चार सौ वर्गमीटर से बड़े दो मज़िंला नए मकान में प्रवेश करने के बाद रंगीन टेलिवेज़न, फ्रिज़ और कपड़े धोने की मशीन आदि आधूनिक इलेक्ट्रोनिक उपकरण देखे जा सकते हैं । घर में दसियों गाय व भेड़ हैं और भंडार में पर्याप्त अनाज है । पासांग ने कहा कि वह आज सुखी जीवन बिता रहा है, जो पहले इस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ।
पासांग घी व दुग्ध बेचने का व्यापार करता है, जिस की आवश्यक अधिकांश पूंजी सरकारी लघु ऋण से आई है । तिब्बत की राजधानी ल्हासा के छङक्वान क्षेत्र में एक सब से बड़ा कृषि जिला है, इस जिले के बाई तिंग गांव का मशीनीकरण स्तर ऊंचा है । गांव वासी छाईतान फिंगत्सो ने जानकारी देते हुए कहा कि कृषि उत्पादों की पैदावार को उन्नत करने के लिए देश ने कदम उठाए हैं, सरकार 80 प्रतिशत और किसान व चरवाहे 20 प्रतिशत लगा कर मशीनीकरण कृषि का विकास कर रहे हैं । तिब्बती बंधु छाईतान फिंगत्सो ने कहा:
"अब हमारे गांव में आम तौर पर हर परिवार में कृषि मशीन प्रयोग की जाती है, जिस से हमारी कार्य क्षमता और अनाज की पैदावार उन्नत हुई है। कृषि मशीन प्रयोग करने के बाद हमारे यहां अतिरिक्त श्रमिक शक्ति दूसरा कार्य करते हैं, इस से हमारी आय बढ़ गई है । वर्तमान में मेरी सालाना औसतन आय तीस हज़ार य्वान है, जो कई वर्ष पहले की तुलना में तीन गुना अधिक है।"
इस लेख का दूसरा भाग आगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े । (श्याओ थांग)