2009-06-04 11:13:10

मध्य पूर्व के बारे में ओबामा की नीति में नया पॉइंट

अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने 3 जून को सऊदी अरब की राजधानी लियाद पहुंचकर अपनी प्रथम मध्य पूर्व यात्रा शुरू की । अपनी यात्रा में श्री ओबामा मिस्र की भी यात्रा करेंगे और काहिरा में इस्लामी दुनिया को बयान भी देंगे। राष्ट्रपति बनने के बाद यह ओबामा की प्रथम मध्य पूर्व यात्रा है, इसलिए विश्व लोकमत उसे उन की मध्य पूर्व नीति का संकेत समझता है । अब तक प्राप्त सूचनाओं से जाहिर है कि ओबामा की नीति में स्थिरता के साथ नयेपन आया है ।

अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा सऊद अरब में सिर्फ एक दिन ठहरे । वहां पहुंचने के तुरंत बाद उन्हों ने सऊदी अरब के शाह अब्दुल्लाह के साथ वार्ता की। दोनों पक्षों ने फिलिस्तीन इजराइल स्थिति, इरान की नाभिकीय योजना, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संकट तथा विश्व तेल दाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सवालों पर रायों का आदान प्रदान किया।

असल में मध्य पूर्व की यात्रा से पहले मध्य पूर्व सवाल पर ओबामा के सामने अनेक समस्याएं मौजूद हैं। इस का उन की मौजूदा यात्रा पर नकारात्मक असर पड़ेगा। फिलिस्तीन इजराइल सवाल पर इजराइल की दक्षिण पंथी नेतांनियाहू सरकार ने कुछ समय पहले ओबामा सरकार के दो देश प्रस्ताव को अस्वीकार कर जोर्डन नदी के पश्चिमी तट पर यहुदी बस्तियों के विस्तार को बन्द करने से इनकार किया जिस से ओबामा को दुविधा का सामना करना पड़ा । फिर इस महीने में इरान में राष्ट्रपति चुनाव होगा, लोकमतों का विचार है कि चुनाव में अहमदी नेजाद फिर राष्ट्रपति बनेंगे अथवा सुधार दल के उम्मीदवार बनें, तो ईरान की विदेश नीति में भारी बदलाव नहीं आ सकेगा। अमरीका इरान संबंध और इरान की नाभिकीय समस्या पर ओबामा के सामने गंभीर कसौटी खड़ी है । फिर तो बिगड़ती हुई इराक स्थिति और पुनः सिर उठाए तालिबान की समस्या भी ओबामा का सिर दर्द बन गया है। ऐसी स्थिति में मध्य पूर्व के लिए ओबामा की नीति पिछली सरकारों की नीति पर बनी रहना पड़ेगा और साथ ही उस में कुछ नया भी लाया जाएगा।

अपनी यात्रा के लिए श्री ओबामा ने अमरीका के साथ घनिष्ठता बनाए रखने वाले सऊदी अरब और मिस्र को चुना, इस से जाहिर है कि ओबामा सरकार अमरीका तथा सऊदी अरब व मिस्र के बीच परम्परागत मित्रता स्थान पर बल देती है । मित्रों को बरकरार रखने का अर्थ अरब दुनिया में अमरीका की विरासत संरक्षित रहने से है। सऊदी अरब और मिस्र दोनों मध्य पूर्व में सब से अहम अरबी देश है और उन का अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र और मध्य पूर्व क्षेत्र में अत्यन्त अहम स्थान है । सऊदी मध्य पूर्व की महा शक्ति माना जाता है, वह इराक और इरान का पड़ोसी देश भी है और आर्थिक क्षेत्र में वह विश्व का सब से बड़ा तेल निर्यात देश है। राजनीतिक व आर्थिक दोनों क्षेत्र में उस का अमरीका के साथ घनिष्ठ संबंध है। मिस्र लम्बे अरसे से अरब दुनिया के नेता है उस का फिलिस्तीन इजराइल तथा सीरिया इजराइल सवालों पर भारी प्रभाव पड़ता है । ओबामा जानते हैं कि मध्य पूर्व में स्थिति चाहे किस तरह परिवर्तन आया, जब सऊद अरब व मिस्र के साथ रिश्ता अच्छा बनाए रखा जाए, तो मध्य पूर्व में अमरीका का प्रभाव आगे बना रह सकेगा। यही ओबामा की मध्य पूर्व नीति में स्थिरता का मतलब है।

स्थिरता के अलावा श्री ओबामा अपनी यात्रा में नया भी खोजेंगे। मिस्र में ओबामा अरब दुनिया को बयान देंगे, जिसे 11 सितम्बर घटना के बाद इस्लामी दुनिया के प्रति अमरीका सरकार का सब से बड़ा नया कदम समझा गया है। 11 सितम्बर घटना के बाद बुश सरकार ने अफगानिस्तान और इराक में बल का प्रयोग किया और नाभिकीय सवाल को लेकर इरान पर दबाव डाला । इन कार्यवाहियों और गुआनतानामो जेल में कैदियों को यातनाएं देने की खबरों से अमरीका की साख ने इस्लामी दुनिया में जमीन चाटी और दोनों पक्षों के संबंध लगातार बिगड़ते गए। बुश से सबक लेकर ओबामा ने सत्ता पर आने के बाद बार बार इस्लामी दुनिया की ओर जैतून हिलाया । उन्हों ने इराक से अमरीकी सेना हटाने तथा गुआनतानामो जेल को बन्द करने की जो घोषणा की है, उस से दोनों पक्षों में गलतफहमी को दूर करने में काफी मदद मिली। लोकमतों की उम्मीद है कि काहिरा में श्री ओबामा का बयान अमरीका और इस्लामी व अरब दुनिया के संबंधों को सुधारने में मददगार होगा।

इस बीच अल कायदा के सरगना बिन लादेन ने 3 तारीख को रिकार्डिंग भाषण देकर ओबामा पर अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बुश की मुस्लिम विरोधी नीति को ग्रहित करने का आरोप लगाया। कुछ अरब देशों के लोगों ने भी ओबामा की यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन किया और ओबामा की आलोचना करते हुए कहा कि वह इजराइल का पक्षपात करते हैं। इसी की दृष्टि से मध्य पूर्व में ओबामा की नीति स्वीकार की जाएगी या नहीं, वह अभी अनिश्चित है।