2009-06-01 12:37:24

एशिया प्रशांत देशों के रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन सिन्गापुर में आयोजित

आठवां एशिया सुरक्षा सम्मेलन 29 से 31 मई तक सिन्गापुर में आयोजित हुआ, जिस में एशिया प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा मामले पर सलाह मशविरा किया गया। वर्तमान में कोरियाई प्रायद्वीप की परिस्थिति का तनावपूर्ण होना, एशिया प्रशांत क्षेत्र के सामने वित्तीय संकट, समुद्री लूटेरा, आतंकवाद, विनाशकारी शस्त्रों के प्रसार तथा प्राकृतिक प्रकोप आदि विभिन्न चुनौतियों की स्थिति में मौजूदा सम्मेलन बड़ा ध्यानाकर्षक बन गया है।

एशिया प्रशांत क्षेत्र के 27 देशों व क्षेत्रों से आए रक्षा मंत्रियों और वरिष्ठ सैनिक अफसरों, उच्च स्तरीय राजनयिक अधिकारियों और सुरक्षा सवाल के विशेषज्ञों ने आठवें एशिया सुरक्षा सम्मेलन में हिस्सा लिया । चीनी जन मुक्ति सेना के डिप्टी चीफ आफ जनरल स्टाफ तथा वायु सेना के लिफ्टेंट जनरल मा शो थ्येन ने चीनी प्रतिनिधि मंडल लेकर सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में वर्तमान एशिया प्रशांत क्षेत्र की स्थिति, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा नीति और क्षेत्रीय सुरक्षा पर सहयोग के विकास पर विचार विमर्श किया गया, जिन में कोरियाई प्रायद्वीप की स्थिति, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सवाल प्रमुख हैं।

जनवादी कोरिया द्वारा 25 मई को किया गया नाभिकीय परीक्षण निस्संदेह सम्मेलन की मुख्य चर्चा बन गया । इस के बारे में अमरीकी रक्षा मंत्री गेट्ज, जापानी रक्षा मंत्री यासुकाजु हामादा तथा दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री ली सांग ही ने सम्मेलन के दौरान विशेष रूप से वार्ता की । तीनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने वार्ता के बाद जारी वक्तव्य में कहा है कि तीनों देश आपसी सहयोग बढ़ा कर अन्य देशों के साथ मिलकर प्रायद्वीप के इस सवाल का समाधान करने की कोशिश करेंगे । श्री गेट्ज ने कहा कि कोरियाई नाभिकीय सवाल पर अमेरिका की नीति कभी नहीं बदली, उस का लक्ष्य कोरियाई प्रायद्वीप को पूरी तरह और साबित करने योग्य नाभिकीय शस्त्रों से मुक्त कराना है। अमरीका नाभिकीय शस्त्र से लैस उत्तरी कोरिया को स्वीकार नहीं करेगा । जापानी रक्षा मंत्री हामादा और दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री ली सांग ही ने कहा कि वे कोरियाई प्रायद्वीप की स्थिति के विकास पर कड़ी नजर रखेंगे और आपसी संपर्क कायम कर इस सवाल को हल करने का तरीका ढूंढ लेंगे।

इस साल का यह सम्मेलन एक विशेष स्थिति में हुआ है, यानी एशिया प्रशांत क्षेत्र के सामने विभिन्न गैर परम्परागत और सीमापार सुरक्षा चुनौतियां खड़ी हैं और वर्तमान विश्वव्यापी वित्तीय संकट के कारण ये चुनौतियां और अधिक गंभीर हो गयी हैं, इसलिए सम्मेलन में उपस्थित लोगों का मानना है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र को विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम होने वाला मजबूत क्षेत्रीय ढांचा कायम करना चाहिए । इस ढांचे की तीन विशेषताएं होनी चाहिएः एक, वह खुला और व्यापक हो, जिस में बड़ा व छोटा देश और संयुक्त राष्ट्र संघ व क्षेत्रीय संगठनों समेत सभी को भूमिका अदा करने देना चाहिए। दो, वह लचीला है, एशिया प्रशांत क्षेत्र को द्विपक्षीय व बहुपक्षीय ढांचे और औपचारिक व अनौपचारिक ढांचे का आंशिक मिश्रण होना चाहिए और अधिक से अधिक सहयोग व वार्ता के मौके देना चाहिए । तीन, आसियान सुरक्षा ढांचे का स्तंभ होना चाहिए।

सम्मेलन का मानना है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र के पास विश्वास व सहयोग का समान लक्ष्य है जो सैनिक पारदर्शिता व वार्ता के जरिए प्राप्त किया जा सकेगा।

चीनी जन मुक्ति सेना के डिप्टी चीफ आफ जनरल स्टाफ मा शो थ्येन ने 30 मई को सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि चीन आत्म रक्षा वाली रक्षा नीति व सक्रिय प्रतिरक्षा की रणनीति पर कायम रहेगा, अपने देश की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता की रक्षा करेगा, साथ ही गुट निरपेक्षता, मुकाबला न करने तथा तीसरे पक्ष के खिलाफ सैनिय सहयोग न करने वाले सैनिक सहयोग करेगा । चीन सक्रिय रूप से शांगहाई सहयोग संगठन, आसियान मंच तथा अन्य बहुपक्षीय या कुछ द्विपक्षीय सुरक्षा वार्ता व सहयोग में भाग लेता रहेगा और संयुक्त सैनिक अभ्यास व ट्रेनिंग, समुद्री गश्ती, अन्तरराष्ट्रीय आतंक विरोध तथा संकट के समय राहत सहायता जैसी सैनिक सहयोग कार्यवाहियों में भी भाग लेगा।

श्री मा शाओ थ्येन ने क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग के बारे में कुछ सुझाव भी पेश किए, जिन में क्षेत्रीय बहुपक्षीय सुरक्षा सहयोग व वार्ता व्यवस्था की मजबूती , सहयोग की सुरक्षा अवधारणा, न्यायपूर्ण परस्पर संबंध मापदंड , व्यवहारिक अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग बढ़ाना तथा सक्रिय रूप से सैनिक राजनय व आपसी विश्वास व समझ बढ़ाना शामिल हैं। उन्हों ने कहा कि सभी देशों को मिलकर संयुक्त रूप से कठिनाइयों का सामना करना चाहिए और एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा व समृद्धि के लिए रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए।