मेनांग दोर्जे का जन्म पूर्वी तिब्बत के छंगतु प्रिफ़ेक्चर के एक सैन्य परिवार में हुआ। उन के पिता चीनी जन मुक्ति सेना में एक तिब्बती अधिकारी हैं। पिता को तिब्बत का परंपरागत संगीत बहुत पसंद है। पारिवारिक प्रभाव व अपनी प्रतिभा द्वारा मेनांग दोर्जे ने नौ वर्ष की आयु में तिब्बत के मंच पर प्रदर्शन किया। वे अभिनेता बन गये, निर्देशन सीखा, और तिब्बत में अरहू वाद्य बजाने वाले एकमात्र संगीतकार भी बने । लेकिन मेनांग दोर्जे को मालूम है कि उन की संस्कृति व संगीत से जुड़ी जानकारी बहुत कम है। इसलिये वे 20 वर्ष की उम्र में चीन के प्रसिद्ध शांघाई संगीत कॉलेज में भरती होकर संगीत रचने व जातीय संगीत आदि कक्षाएं लेने लगे।
तिब्बती जाति की विशेषता भरा गीत《कल का सूर्य》मेनांग दोर्जे ने वर्ष 1987 में रचा था। उस समय वह तिब्बती पंचांग के नये साल के सुअवसर पर तिब्बती टी.वी. स्टेशन के रात्रि समारोह में अंतिम कार्यक्रम के रूप में गाया गया था। प्रसारण के बाद वह तेजी से सारे छिंगहाए तिब्बत पठार में फैल गया। इस गीत में तिब्बती संगीत की शैली व आधुनिक रस दोनों शामिल हैं। और उस का चीन के भीतरी इलाकों और तिब्बत के विशाल दर्शकों ने हार्दिक स्वागत किया है। इस गीत ने मेनांग दोर्जे के आत्मविश्वास को खूब बढ़ाया, और उन के संगीत जीवन को भी बदल दिया।
मेनांग दोर्जे की याद में एक बार जब वे तिब्बती लोक गीत इकट्ठे करने के लिये एक बहुत दूर के पशुपालन क्षेत्र में गये, तो आकस्मिक मौके पर उन्होंने एक चरवाहे के मुंह से अपना वह गीत《कल का सूर्य》सुना। इस बात से वे बहुत प्रभावित हुए। साथ ही उन्होंने मन में एक ऐसा फैसला भी किया कि मैं ज़रूर अपने जन्मस्थान के लिये अच्छे से अच्छा गीत रचूंगा।(चंद्रिमा)