2009-05-19 11:17:44

क्या श्रीलंका सुचारु रूप से जातीय सुलह के पथ पर चल सकेगा

दोस्तो , श्रीलंका सरकार ने 18 मई को घोषित किया है कि लिट्टे का शीर्ष नेता प्रभाकरण उसी दिन उत्तर मुलैटिवू क्षेत्र में सरकारी सेना के साथ लड़ाई में मारा गया । इस तरह सरकारी सेना ने लिट्टे के सभी अड्डों को जड़ उखाड़ दिया तथा 26 सालों तक चला आ रहा श्रीलंकाई गृह युद्ध समाप्त करने की घोषणा की है । लेकिन श्रीलंका की जातीय सुलह साकार बनाने का रास्ता फिर भी काफी लम्बा है ।

श्रीलंका की सरकारी सेना के फौजी प्रवक्ता ने उसी दिन कहा कि प्रभाकरण फरार होते समय सरकारी सेना द्वारा मारा गया , साथ ही लिट्टे के सूचना विभाग का जिम्मेदार व्यक्ति पोट्टु अमान और लिट्टे की समुद्री सशस्त्र शक्तियों का नेता सुसै भी मारा गया । इस के अलावा सरकारी सेना ने लिट्टे के अंतिम ठिकाने की जांच पड़ताल करते समय प्रभाकरण के बेटे समेत अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की लाशें बरामद भी कीं ।

गत दशक के 70 वाले दशक से लेकर आज तक प्रभाकरण श्रीलंका सरकार विरोधी सशस्त्र कार्यवाहियां करने में लगा हुआ है और मई 1976 में लिबरेशन टाइगर्स ओफ तमिल ईलम की स्थापना कर इसी संगठन का शीर्ष नेता बना रहा , साथ ही उस ने इस संगठन का नेतृत्व कर श्रीलंका की सरकारी संस्थाओं और सेना को निशाना बनाकर आतंकवादी हमले बोल दिये तथा स्वतंत्र तमिल देश की स्थापना की कोशिश की । जुलाई 1983 में लिट्टे ने उत्तर जाफना प्रायद्वीप में 13 सरकारी सैनिकों को मार डाला , जिस से करीब 26 सालों से बरकरार यह गृह युद्ध छेडा गया । इस गृह युद्ध से श्रीलंका के 70 हजार आम नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी , साथ ही देश की अर्थव्यवस्था मंदी में पड़ गयी , जनजीवन अत्यंत दूभर रहा , जातीय टक्करें व घृणा उत्तरोत्तर तेज से तेजतर हो गयी और समूचे देश को अभूतपूर्ण मुसीबतें झेलनी पड़ीं । जुलाई 2006 में श्रीलंका की सरकारी सेना ने लिट्टे के खिलाफ नये चरण का फौजी अभियान चलाया और कदम ब कदम लिट्टे के नियंत्रित क्षेत्रों पर फिर से कब्जा कर लिया । चालू वर्ष के शुरु में श्रीलंका सरकार ने फिर लिट्टे के खिलाफ भारी दलबल सहित फौजी अभियान चलाया और आखिरकार लिट्टे की बची खुची शक्तियों का उत्तर के मुलैवुटी क्षेत्र में खात्मा कर दिया ।

हालांकि इस बार श्रीलंका सरकार ने लिट्टे के खिलाफ फौजी अभियान में निर्णायक विजय पायी है , लेकिन यह दक्षिण एशियाई देश सुचारु रूप से जातीय सुलह के रास्ते पर चल सकेगा या नहीं , समय की परीक्षा की जरूरत है । श्रीलंका की दो बड़ी जातियों का अंतरविरोध 1948 में अपनी स्वाधीनता से पहले के ब्रिटिश उपनिवेशी शासन काल से उत्पन्न हुआ था , तत्काल में कम संख्या वाली तमिल जाति उपनिवेशी शासन तले श्रेष्ठ स्थान पर थी , जिसे देखकर देश की बड़ी संख्या वाली सिंहली जाति काफी असंतुष्ट थी । 1948 में श्रीलंका की स्वाधीनता के बाद अत्याधिक जन संख्या वाली सिंहली जाति के लोगों ने सरकार की बागडोर अपने हाथों में ले ली , साथ ही भाषा , शिक्षा और रोजगार आदि क्षेत्रों में तमिल जाति के अनुचित नीतियां लागू कीं , जिस से दोनों पक्षों के बीच अंतरविरोध पैदा होकर सरकार विरोधी एलटीटीई विद्रोही संगठन कायम हो गया ।

श्रीलंका की जातीय टक्करों के पुराने इतिहास से साबित कर दिखाया गया है कि श्रीलंका की दोनों बड़ी जातियों के लिये स्वीकृत राजनीतिक समाधान प्रस्ताव कैसे पेश किया जायेगा , यह श्रीलंका सरकार के सामने खड़ा सचा सवाल ही है । श्रीलंका के राष्ट्रपति राजापाक्सा ने हाल ही में कहा कि श्रीलंका सरकार सामरिक तौर पर लिट्टे को खत्म करने के बाद तुरंत ही उत्तर में आर्थिक पुनर्निर्माण शुरु कर देगी और लोकतांत्रिक व राजनीतिक आधार पर जातीय सुलह साकार करने की कोशिश करेगा । विश्लेषकों का मानना है कि श्रीलंका में तभी चिरस्थायी शांति व सुरक्षा साकार होगी , जबकि दोनों बड़ी जातियां समान व सामंजस्यपूर्ण रूप से सहअस्तित्व रह सके । इसी सवाल पर श्रीलंका सरकार क्या क्या कदम उठायेगी , अब देखना बाकी है ।

इस के अतिरिक्त श्रीलंका सरकार को सरकार विरोधी शक्तियों , विशेषकर सरकार विरोधी आतंकवादी हमले पर रोक लगाने के कठोर कार्यों का सामना करना पड़ेगा । लिट्टे ने पिछले तीसेक सालों में उत्तर के तमिल क्षेत्र में स्वतंत्र नियंत्रित क्षेत्र की स्थापना की और संपूर्ण राजनीतिक व फौजी नेट भी कायम कर लिया है । बहुत से स्थानीय युवा लोग लिट्टे के प्रभाव तले श्रीलंका सरकार के प्रति बेहद घृणा करते हैं । इसलिये यह रिपोर्ट सुनने को मिली है कि लिट्टे ने युद्ध मैदान पर भारी चोट खाने के बाद अपनी रणकौशल बदल कर अपनी शक्तियों को आतंकी हमला बोलने के लिये सरकारी सेना के अधिकृत क्षेत्रों में भेज दिया है । हाल ही में श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो आदि क्षेत्रों में जो लगातार आत्मघाती हमले हुए हैं , उस से जाहिर है कि उक्त रिपोर्ट निराधार कतई नहीं कही जा सकती ।