लम्बे अर्से में श्रमिक उत्पादन और सामाजिक विकास में तिब्बती जाति ने अपनी विशेष संस्कृति रची, जिस में तिब्बती भाषा, तिब्बती चिकित्सा, तिब्बती खगोल, तिब्बती संगीत और तिब्बती नाचगान आदि शामिल है । तिब्बत की सांस्कृतिक विरासतों का इतिहास बहुत पुराना है । जनवादी सुधार के बाद के पिछले 50 साल मे तिब्बती संस्कृति का नया विकास किया जा रहा है ।
अब आप सुन रहे हैं तिब्बती कथा वाचक द्वारा प्रस्तुत महाकाव्य《राजा गैसर》का एक भाग । जनवादी सुधार किए जाने के पूर्व कथा वाचकों के कथा वाचन में सामंती जागीरदारों ने भेदभाव किया था और उन का स्थान बहुत नीचा था । लेकिन आज वे तिब्बती सांस्कृतिक अवशेषों का विकास करने वाले सब से श्रेष्ठ लोक कलाकार हैं और उन्हें"राष्ट्र स्तरीय मूल्यवान व्यक्ति"के रूप में सम्मानित किया जाता है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सांस्कृतिक विभाग में कार्यरत निमा ने जानकारी देते हुए कहा:
"जनवादी सुधार के पूर्व आम तिब्बती लोगों को सांस्कृतिक फलों का उपभोग करने का अधिकार नहीं था । उस समय लोक कलाकारों का स्थान बहुत नीचा था और उन की जीवन स्थिति बहुत दयनीय थी । लेकिन आज देश सांस्कृतिक अवशेषों के उत्तराधिकारियों और कृषि चरवाहा क्षेत्र में सांस्कृतिक दलों के प्रशिक्षण को महत्व देता है । तिब्बती किसानों और चरवाहों को सच्चे माइने में महसूस हुआ कि उन के सांस्कृतिक निर्माण का समादर किया जाता है । इस तरह वे सक्रियता से इस में भाग लेते हैं ।"
तिब्बत की राजधानी ल्हासा के केंद्र में स्थित आलीशान पोटाला महल तिब्बत का प्रतीक है । सात वर्षों की मरम्मत के बाद अब पोटाला महल का रूप निखर आया है। महल में प्रवेश करने के बाद लोगों के सामने रंगबिरंगे भीत्ति चित्र, तिब्बती परम्परागत आगा मिट्टी से बनायी गई जमीन, शानदार स्तंभ नज़र आते हैं, जिन से इस भव्य महल की जीवंत शक्ति दिखाई पड़ती है ।
पोटाला महल की मरम्मत में भाग लेने वाले तिब्बती प्राचीन निर्माण विशेषज्ञ, उच्च स्तरीय ललित कलाकार न्गावांग लोड्रो ने कहा कि पोटाला महल के भीत्ति चित्र दूसरे स्थलों के भीत्ति चित्रों से अलग हैं । उन की मरम्मत के दौरान ज्यादा संजीदगी चाहिए । महल के जीर्णोद्धार के वक्त"प्राचीन रूप के अनुसार प्राचीन रूप दिखाने"का सिद्धांत अपनाया गया है । इस की चर्चा में तिब्बती ललित कलाकार न्गावांग लोड्रो ने कहा:
"भीत्ति चित्र के स्तंभ की मरम्मत के दौरान सोने का प्रयोग किया गया है । इस के साथ ही पोटाला महल के प्रमुख भवन, लाल भवन और भूमिगत बड़े सूत्र भवन चार रंगों के हैं । इस तरह इन की मरम्मत के दौरान हम ने अलग-अलग सामग्री का प्रयोग किया है । उत्तरी भाग के स्तंभ पर सोने का प्रयोग किया गया है और दक्षिणी भाग के स्तंभ पर रत्नों का प्रयोग किया गया है ।"
चीनी राज्य परिषद के सूचना कार्यालय द्वारा वर्ष 2008 में जारी《तिब्बत के सांस्कृतिक संरक्षण व विकास》श्वेत पत्र में जानकारी दी गई है कि चीन सरकार ने तिब्बत में विश्व सांस्कृतिक विरासतों की नामसूचि में शामिल होने वाले पोटाला महल समेत विभिन्न स्तरीय 329 सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण इकाईयों की स्थापना की और तिब्बत के विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक अवशेषों व धरोहरों का अच्छी तरह संरक्षण किया ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो के प्रधान श्री य्वू दावा ने जानकारी दी कि गत शताब्दी के अस्सी वाले दशक से शताब्दी के अंत तक के बीस सालों में देश ने क्रमशः पोटाला महल, जोखान मठ, च्यांगजी ब्रिटिश आक्रमण विरोधी अवशेष, गुगे प्राचीन राज्य अवशेष समेत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासतों की मरम्मत के लिए एक अरब 40 करोड़ य्वान लगाए हैं। श्री य्वू दावा ने कहा:
"इधर के पांच सालों में देश ने और 57 करोड़ य्वान लगाकर जोशलुम्बु मठ समेत 22 सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण इकाईयों का जीर्णोद्धार व संरक्षण किया । मसलन् जाशलुम्बु मठ की मरम्मत के लिए दस कोरड़ य्वान लगाए गए, जो गत वर्ष औपचारिक तौर पर शुरू हुआ, जिस का कार्यकाल तीन से पांच साल है ।"
आज तिब्बत की विभिन्न जातियों की जनता अपनी परम्परागत संस्कृति के संरक्षण व विकास की लगातार कोशिश कर रही है, तिब्बत की परम्परागत संस्कृति कदम ब कदम समृद्ध हो रही है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सरकारी अधिकारी श्री चांग छिंगली ने कहा:
"भविष्य में हम योजनानुसार कदम ब कदम तिब्बत की सभी सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण कार्य को पूरा करेंगे, ताकि ऐतिहासिक, रंगबिरंगी और परम्परागत तिब्बती संस्कृति चिरस्थाई तौर पर सुरक्षित की जा सके। "