समुद्र सतह से 8848 अधिक मीटर ऊंचे एवरेस्ट पर्वत में बसी चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की तिनरी काउंटी नेपान की सीमा से सटी हुई है, यह विश्व का पहला ऊंचा पर्वत है जिसे दक्षिण ध्रुव व उत्तर ध्रुव के अलावा विश्व का तीसरा ध्रुव कहालाया जाता है। पिछली आधी शताब्दी से एवरेस्ट पर्वत ने विश्व के विभिन्न देशों के पर्वतारोहण प्रमियों व अन्वेषणों को अपनी ओर खींचा है. यह तिब्बत में सैरसपाट करने वाले लोगों का एक आकर्षण स्थल बन गया है।
हर साल की अप्रेल और सितम्बर में देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक तिब्बत के इस तिनरी काउंटी जाकर एवरेस्ट पर्वत तले पेरामिड आकार वाले इस बृहद पर्वत को देखते हैं तो घुटने टेक कर उसकी पूजा करते हैं, लेकिन शायद उन्हे यह नहीं मालूम होगा कि यह दुनिया की एक मात्र आखरी पवित्र भूमि रह गयी है। एवरेस्ट पर्वत की गोद में न केवल एक एक दस मीटर ऊंचे पर्वतों की अदभुत खूबसूरती व बर्फ से बनी क्रिस्टल जैसी चमकीली बर्फीले पहाड़ ही हैं, बल्कि समुद्र सतह से 6000 मीटर नीचे विशाल भूमि में एक आदिम जंगल भी सुरक्षित है, वहां दुनिया के दुर्लभ व मूल्यवान पशु पक्षियां, वनस्पितयां व झाड़ियां तथा घास मैदान जीवित हैं।
अलबत्ता पिछली शताब्दी के 70 वाले दशक से दुनिया में एवरेस्ट पर्वत पर चढ़ने के व्यायाम तथा एवरेस्ट पर्यटन उद्योग के विकास के चलते, एवरेस्ट पर्वत पर जमी बर्फ धीरे धीरे पिघलने लगी है, कुछ पर्वतों के वृक्षों व झाड़ियों की संख्या कम होती जा रही है, वन्य पशु पक्षियों के लिए रहने की जगह ह्रास होने लगी है, हर साल करीब 10 हजार पर्वतारोहण प्रेमी व पर्यटन अपने साथ लाए कूड़ा करकट वहां छोड़ देते हैं। दुनिया के इस पवित्र शुद्ध भूमि को सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 1988 से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की तिनरी काउंटी ने एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की स्थापना की। छह साल के बाद के 1994 में चीन सरकार ने उसे राष्ट्रीय स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की पंक्ति में रखने का फैसला लिया और संरक्षण पैमाने का विस्तार कर तिरच्ये , न्येलामू व चिलुंग तीन काउंटियों के इलाकों तक बढ़ा दिया है, जिस का क्षेत्रफल 34 हजार वर्ग किलोमीटर हैं, ताकि इस तरह दुनिया के दुर्लभ ध्रुवी पर्वत की पारिस्थितिकी व्यवस्था तथा उससे निकटीय पठारों की प्राकृतिक दृश्यों , विविध पशुओं व वनस्पतियों , भौगोलिक इतिहास में सुरक्षित जगहों व तिब्बत की एतिहासिक संस्कृति विरासत को पूरी तरह सुरक्षित रखा जा सके। एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र का आधे से ज्यादा इलाका व जंगल तिनरी काउंटी में स्थित हैं। स्थानीय अधिकारी वांग चे चुंग ने कहा एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की स्थापना के बाद से हमनें सर्वप्रथम पेड़ों के काटने पर कड़ी पाबन्दी लगा दी है। इस से पहले हम हर साल काउंटी के कर्मचारियों को सर्दी में कमरों को गर्म करने के लिए एक लारी लकड़ियां देते थे। अब यह कार्यवाही बन्द कर दी गयी है, सभी कर्मचारी सूखे गोबर का इस्तेमाल करते हैं, नागरिकों को पेड़ काटने की मनायी के साथ बाजारों में लकड़ियां बेचने का धन्धा भी बन्द कर दिया गया है, इस तरह पूर्ण रूप से मनमानी पेड़ कटाव की कार्यवाहियों पर रोक लगी दी गयी है।
इस के साथ स्थानीय सरकार ने पर्यावरण संरक्षण प्रचार की शक्ति को भी सुदृढ़ किया है। विशेषकर एवरेस्ट पर्वत के केन्द्रीय जगहों व वन्य क्षेत्रों के संरक्षण प्रचार को कहीं अधिक मजबूत किया गया है। वन्य पारिस्थितिकी के नष्ट होने से बचाने, वन्य पशु पक्षियों के रहने के लिए उम्दा स्थान देने के लिए , हमने वन कानून, वन्य पशु पक्षी संरक्षण कानून, प्राकृतिक संरक्षण नियमवली आदि कानून कायदों की पुस्तके छापीं हैं और उनका तिब्बती भाषा में अनुवाद किया है।
एवरेस्ट पर्वत संरक्षण क्षेत्र में हर साल दस हजार से अधिक लोगों के पर्वतारोहण व पर्यटकों तथा वैज्ञानिक सर्वेक्षण दलों द्वारा अपने साथ लाए कूड़े करकट की समस्या को लेकर, एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की प्रबंधन ब्यूरो ने प्रबंधन शक्ति को प्रगाढ़ किया है। यहां के एक अधिकारी फूपाचासी ने कहा हमारा मुख्य कार्य संरक्षण क्षेत्र के भीतर कूड़ों की सफाई करना व पूर्ण प्राकृतिक क्षेत्र के पर्यावरण कार्य को सुरक्षित रखना है, दूसरा , एवरेस्ट पर्वत पर्यटन क्षेत्र दिशा के प्रबंधन व रखवाली की शक्ति को सुदृढ़ करना है।
वर्तमान एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण प्रबंधन ब्यूरो की तिनरी शाखा ब्यूरो के क्षेत्रफल में फैले पूर्व एवरेस्ट ढलान, उत्तरी ढलान में स्थापित शिवरों में तीन कूड़ेदान केन्द्र स्थापित किए हैं। हर साल पर्वतारोहण शिवरों में विशेषतौर से एक अधिकारी समुद्र सतह से 6500 मीटर उपर बने कूड़ों को लाद कर पर्वत के नीचे ले आता है, बाद में इन कूड़ों को पूरी तरह दफनाया जाता है। केवल गत वर्ष के एक साल में ही एवरेस्ट पर्वत शिवर से हमने 68 लारी कूड़े निकाले थे।
वर्ष 2003 से एवरेस्ट पर्वत पर गए सभी लोगों को अपनी गाड़ियां विश्व के समुद्र सतह के सबसे ऊंचे मन्दिर यानी समुद्र सतह से 5100 मीटर ऊंचे रूंगपूसी मन्दिर तक चलाने की इजाजत है, वहां से सभी लोग घुड़सवारी व टांगे से शिवर की ओर रवाना होते हैं। इस तरह वाहनों से निकले प्रदूषण के एवरेस्ट पर्वत को प्रदूषित करने की संभावना को कम कर दिया गया है और पर्यटकों को सफाई पर ध्यान देने के लिए भी प्रेरित किया गया है, इस के अतिरिक्त स्थानीय गरीब किसानों व चरवाहों के जीवन में थोड़ी बहुत आमदनी बढ़ाने का मौका भी उत्पन्न हुआ है। वर्तमान रूंगपूसी मन्दिर से एवरेस्ट पर्वत के शिवर की दूरी 9 किलोमीटर है, 20 टागों से बना कफिला एवरेस्ट पर्वत तले एक सुन्दर दृश्य बन गया है। श्री पूफाचासी ने हमें बताया इन कार्यवाहियों का मकसद सबसे पहले पर्वतारोहण व अन्वेषण प्रमियों समेत यात्रियों के लिए एक सुन्दर छवि प्रदान करना है, और इस तरह हमारे इलाके की सफाई कहीं अधिक बेहतरीन हो गयी है, दूसरी ओर एवरेस्ट पर्वत के पर्यावरण के बिगड़ने से विश्व के जलवायु पर पड़ने वाले कुप्रभाव को रोकने में मदद मिली है।
फिलहाल एवरेस्ट प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र प्रबंधन ब्यूरो ने एवरेस्ट पर्वत प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर्यटन नामक एक पूर्ण योजना तैयार कर ली है। इस योजनानुसार, सभी तिनरी में आने वाले देश विदेश के पर्यटक न केवल अपनी आंखो से एवरेस्ट की बेमिसाल महानता को देख सकते हैं बल्कि तिनरी काउंटी की सीमा के दो आदिम जगलों के अदभुत दृश्यों की सैर भी कर सकते हैं, इस आदिम जंगल में समुद्र सतह से 6200 मीटर इलाकों में उगे हमेशा हरे भरी झाड़ियां, बर्फीले पर्वतें आदि छह अनोखे आदिम पारिस्थितिकी नजारों का आन्नद भी उठा सकते हैं। यहां तक कि दुर्लभ व मूल्यवान वनस्पतियों की नस्लों , जैसे कि राष्ट्रीय प्रथम श्रेणी के सुरक्षित हिमालय थाअड़ बकरी, लम्बी दुम वाले बन्दर, हिमालय चीता , तिब्बती श्वेत मुर्गी आदि पशुओं को देख सकते हैं, और तो और अनोखे कीड़े व बर्फीले फूल व 200 से अधिक मूल्यवान जड़ी बूटियां के इलाकों के नजारे भी अपनी आंखो से देख सकते हैं। यहां तक कि जंगल की गहरी घाटी, प्राचीन खेत व गांव के निशान तथा पवित्र झरनों की झन झन आवाजें पूरी घाटी में मानों एक मधुर संगीत रचा रही हो। यहां पर खिले दुनिया के सबसे अनोखे फूल पर मंडराती तितलियां व मधुमक्खियां भी आप को एक नयी दुनिया का अहसास दिलाएगी, आप इस यात्रा को जिन्दगी भर नहीं भूल पाएगें। आइये हम इस पवित्र शुद्ध भूमि के जन्म जन्म अपनी पवित्रता को बनाए रखने की पूजा करें और मानव की इस शुद्ध भूमि को हम अपनी आंखो की तरह उसकी रखवाली करते रहें।