गेसांग छ्वूदा:"उस दिन लोगों ने जागीरदारों के साथ संपन्न असमानता वाले अनुबंध को आग लगाकर नष्ट कर दिया । भविष्य में जागीरदारों के शोषण से मुक्ति पा सकेंगे, इस से वे बड़े खुश थे ।"
50 साल में दस हजार से ज्यादा सूत्र चक्र घुमाए जाते हैं । रंगबिरंगे सूत्र झंडियां फहराती हैं, भविष्य के प्रति तिब्बती लोग आशाप्रद हैं।
लोसांग शानतान:"मैं बुजुर्गों की सेवा करने वाले घर में काम करता हूँ। छ्वु क्वो मठ में बुजुर्गों का घर बनाया गया है ।"
50 साल में तिब्बत के प्राचीन नृत्यों में नयी जीवंत शक्ति दिखाई पड़ रही है ।《राजा गैसर》गाने की आवाज़ और ऊंची हो रही है ।
चांग छिंगली:"भविष्य में हम योजनानुसार कदम ब कदम तिब्बत की सभी सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण कार्य को संपूर्ण करेंगे, ताकि ऐतिहासिक, रंगबिरंगी और परम्परागत तिब्बती संस्कृति को चिरस्थाई तौर पर सुरक्षित किया जा सके।"
50 साल में आगे बढ़ने के कदमों में ऐतिहासिक परिवर्तन दिखायी पड़ता है ।
काल्ज़ांग येशे:"जनवादी सुधार के बाद पचास साल बीत चुके हैं । इस दौरान तिब्बत में जमीन आसमान का परिवर्तन आया है ।"
उक्त वाक्यों से आप को पता होगा कि पिछले पचास वर्षों में चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में क्या-क्या परिवर्तन हुआ । इस लेख में तिब्बती जाति के धार्मिक विश्वास के बारे में जानकारी दी जाएगी । शीर्षक है"सामंजस्यपूर्ण जीवन"।
तिब्बती बौद्ध धर्म तिब्बत की अधिकांश जनता का विश्वसनीय धर्म है। हजारों वर्षों से तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षुओं ने पुराने व रहस्यमय बौद्ध धर्म को समझाने की कोशिश की है। वे लोग तिब्बत के समाज में उच्च स्तरीय स्थान पाते थे। तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार की नीति के लागू होने से पुराने तिब्बत में राजनीति व धर्म को जोड़ने वाली सामाजिक व्यवस्था को रद्द कर दिया गया और मठों में भी लोकतांत्रिक रुपांतरण किया गया। आज तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु पहले की ही तरह धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं। नये युग में तिब्बत के भिक्षु अपने तरीकों से तिब्बत के समाज के विकास के लिए योगदान कर रहे हैं। इस के साथ-साथ, उन के जीवन में भी भारी परिवर्तन आया है।
69 वर्षीय लामा त्सरंग दोर्चे बचपन से ही टाशिहोनपो मठ में भिक्षु थे।10 साल की उम्र में गरीबी की वजह से त्सरंग दोर्चे टाशिहोनपो मठ गये। चूंकि मठों में भरपेट खाने पीने की सुविधाएं मिल जाती हैं। दूसरी ओर, मठ में त्सरंग दोर्चे बौद्ध धर्म के ग्रंथों का अनुसंधान भी कर सकते थे। उन्होंने बताया:"मठ में जाने का एक कारण है कि मेरे माता-पिता मुझे मठ में भेजना चाहते थे, इस तरह उन्हें कर कम देना पड़ेगा। मैं खुद भी मठ में भिक्षु बनना चाहता था। उस समय हम बहुत गरीब थे, मुझे पता था कि मठ में जाने के बाद खाने पीने की समस्या नहीं होगी।"
त्सरंग दोर्चे ने मठ में दस वर्षों तक सीखा और वे धीरे-धीरे तिब्बती बौद्ध धर्म की विरासत के एक विशेषज्ञ बन गये। लामा त्सरंग दोर्चे के अनुसार, तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार की नीति के लागू होने से पहले , मठों में छोटी बड़ी घटनाओं का जीवित बुद्ध एवं वरिष्ठ भिक्षुओं द्वारा निर्णय लिया जाता था। एक सामान्य भिक्षु की हैसियत से त्सरंग दोर्चे को बोलने का ज्यादा अधिकार नहीं था।
वर्ष 1959 के बाद, टाशिहोनपो मठ में लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी की स्थापना की गयी, जिस के सदस्य सभी भिक्षुओं द्वारा चुनाव के जरिये चुने गये । मठ में सभी मामलात को नागरिक प्रबंध कमेटी द्वारा बैठक बुलाने के बाद तय किया जाता था । उस समय, त्सरंग दोर्चे को लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी में चुना गया और उन्होंने मठों की विरासत का संरक्षण व मरम्मत कार्य करना शुरु किया। अब वे नागरिक प्रबंध कमेटी के जिम्मेदार हैं और टाशिहोनपो मठ के नये दौर के बड़े पैमाने वाले मरम्मत कार्यों में भाग ले रहे हैं । उन्होंने कहा:
"अब टाशिहोनपो मठ में मरम्मत कार्यों में कुल मिलाकर 12 परियोजनाएं हैं। सर्वप्रथम हम ने मठ में दीवारों व भित्ति चित्रों के हालिया स्थिति की जांच-पड़ताल की , इस के बाद मरम्मत कार्य शुरु किया । इस के अलावा, हम ने मठों में सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण भी किया, जिस में भित्ति चित्र, थांका और सोने के बर्तन आदि शामिल हैं। मरम्मत परियोजना इस वर्ष की शुरुआत से ही औपचारिक रुप से शुरु की गयी है।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।