2009-05-04 15:34:07

तिब्बत में आधी शताब्दी की छलांग—पहला भाग:नया जन्म

वर्ष 1959 में दस लाख तिब्बती भूदासों को मुक्ति मिली, वे पहली बार सच्चे"मानव"बने ।

गेसांग छ्वूदा:"उस दिन लोगों ने जागीरदारों के साथ संपन्न असमानता वाले अनुबंध को आग लगाकर नष्ट कर दिया । भविष्य में जागीरदारों के शोषण से मुक्ति पा सकेंगे, इस से वे बड़े खुश थे ।"

50 साल में दस हजार से ज्यादा सूत्र चक्र घुमाए जाते हैं । रंगबिरंगे सूत्र झंडियां फहराती हैं, भविष्य के प्रति तिब्बती लोग आशाप्रद हैं।

लोसांग शानतान:"मैं बुजुर्गों की सेवा करने वाले घर में काम करता हूँ। छ्वु क्वो मठ में बुजुर्गों का घर बनाया गया है ।"

50 साल में तिब्बत के प्राचीन नृत्यों में नयी जीवंत शक्ति दिखाई पड़ रही है ।《राजा गैसर》गाने की आवाज़ और ऊंची हो रही है ।

चांग छिंगली:"भविष्य में हम योजनानुसार कदम ब कदम तिब्बत की सभी सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण कार्य को संपूर्ण करेंगे, ताकि ऐतिहासिक, रंगबिरंगी और परम्परागत तिब्बती संस्कृति को चिरस्थाई तौर पर सुरक्षित किया जा सके।"

50 साल में आगे बढ़ने के कदमों में ऐतिहासिक परिवर्तन दिखायी पड़ता है ।

काल्ज़ांग येशे:"जनवादी सुधार के बाद पचास साल बीत चुके हैं । इस दौरान तिब्बत में जमीन आसमान का परिवर्तन आया है ।"

उक्त वाक्यों से आप को पता होगा कि पिछले पचास वर्षों में चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में क्या-क्या परिवर्तन हुआ । इस लेख में पिछले पचास वर्षों में तिब्बत के विकास के बारे में जानकारी दी जाएगी । शीर्षक है"नया जन्म"।

वर्ष 1959 की 28 मार्च को, दलाई लामा के नेतृत्व वाले तिब्बती वरिष्ठ अफसरों के सशस्त्र विद्रोह के बाद चीन लोक गणराज्य की राज्य परिषद ने आज्ञा देकर भूतपूर्व तिब्बती स्थानीय सरकार को भंग करने की घोषणा की। तिब्बत में लोकतंत्र सुधार की प्रक्रिया शुरु हुई। पिछले 50 वर्षों में तिब्बत के समाज में भारी परिवर्तन आये हैं ।

वर्ष 1959 की 28 मार्च को, तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार की प्रक्रिया शुरु हुई। दो वर्षों के अंदर, तिब्बत ने राजनीति व धर्म से जोड़ने वाली सामंत्ती भूदास व्यवस्था को रद्द कर दिया।लाखों भूदासों को प्रथम बार अपनी खेती भूमि व पशु मिले और सच्चे माइने में वे देश के संविधान व कानून के संरक्षण में नागरिक बने।

उस समय की याद करते हुए लोका प्रिफेक्चर क्षेत्र के खसुंग गांव के 76 वर्षीय लोसांग छोदर अभी भी बहुत भावुक हो जाते हैं। वर्ष 1946 में भूदास लोसांग छोदर की उम्र केवल 13 साल की थी।उन्हें विवश होकर मठ में भिक्षु बनना पड़ा था। लोसांग के परिवारजन भी जन्मभूमि से बाहर गये थे। लोसांग ने हमें बताया:

"उस समय हमारे घर में कोई जमीन नहीं थी। मुझे विवश होकर जमीदारों की खेती में काम करना पड़ता था। इतना ही नहीं, हमें हर वर्ष टैक्स भी देना होता था। नये चीन की स्थापना से पहले हमारे घर पर बहुत कर्ज थी। मेरे माता-पिता जन्मभूमि से बाहर गये और मैं भी मठ में भिक्षु बन गया।"

वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार की नीति लागू हुई । तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था रद्द की गयी। खसुंग गांव लोकतांत्रिक सुधार करने वाला प्रथम गांव बन गया। जब लोसांग को यह खबर मिली कि उस के गांव में लोकतांत्रिक सुधार की नीति लागू की गयी है, तो 26 वर्षीय लोसांग अपनी जन्मभूमि वापस लौट आया। उसे विश्वास नहीं था कि वह खुद का आप मालिक बन गया है। गेसांग छ्वूदा ने कहा:

"उस दिन लोगों ने जागीरदारों के साथ संपन्न असमानता वाले अनुबंध को आग लगाकर नष्ट कर दिया । भविष्य में जागीरदारों के शोषण से मुक्ति पा सकेंगे, इस से वे बड़े खुश थे ।"

लोसांग तथा उस के परिवारजनों की हैसियत में परिवर्तन आया और वे लोका प्रिफेक्चर क्षेत्र की नेईतुंग काऊंटी के छांगजू कस्बे के खसुंग गांव के किसान बन गये। लोसांग के परिवार को न केवल खेती की भूमि मिली, बल्कि उसे पशु व मकान भी मिला। लोसांग परिवार के जीवन में अकल्पनीय परिवर्तन आ गया ।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े ।