2009-05-01 16:42:12

अफगानिस्तान में सुरक्षा परिस्थिति दिन ब दिन गंभीर होती रही

अफगानिस्तान की तालिबान सशस्त्र शक्ति ने घोषणा की कि वह 30 अप्रैल से अफगानिस्तान में विजय नामक वसंतकालीन हमला करना शुरु करेगा और अमरीका व नाटो द्वारा अफगानिस्तान में और ज्यादा सैनिक भेजने का जवाब देगा। ऐसी परिस्थिति में किसी तरह अगस्त में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के सुभीतापूर्ण आयोजन को गारंटी देना ओबामा सरकार की नयी अफगान-नीति के लिए एक परीक्षा हो गयी है। निकट समय में अफगानिस्तान की सुरक्षा परिस्थिति भी तालिबान की बढ़ती आतंकी कार्यवाइयों के कारण और गंभीर होती जा रही है।

अफगानिस्तान की तालिबान सशस्त्र शक्ति ने अपनी वेबसाइट पर वक्तव्य जारी करके घोषणा की कि तालिबान घात लगाकर हमला करने, सड़कों के पास बम हमले और आत्मघाती विस्फोट आदि माध्यमों से विदेशी सेनाओं, विदेशी मिशनों, अफगान सरकारी अधिकारियों तथा सुरक्षा टुकड़ी के खिलाफ प्रहार करेगा। वक्तव्य में यह धमकी भी दी गयी कि किसी भी इमारत निर्माण एवं यातायात व परिवहन कंपनियों को विदेशी सेनाओं व सरकारी सेना को सेवा देना बंद करना चाहिए, नहीं तो, उन्हें सज़ा दी जाएगी।

इस के साथ साथ, नाटो के कुछ देशों ने हाल में भी अलग अलग तौर पर कहा कि वे अफगानिस्तान में और ज्यादा सैनिक भेजेंगे। ब्रिटिश प्रधान मंत्री ब्राऊन ने 27 अप्रैल को घोषणा की कि ब्रिटेन अफगानिस्तान में और 700 सैनिक भेजेगा, ताकि अफगानिस्तान स्थित ब्रिटिश सैनिकों की संख्या 9000 तक पहुंचेंगी। ऑस्ट्रैलिया सरकार ने 29 अप्रैल को भी अपने सैनिकों को बढ़ाने की योजना घोषित की और अफगानिस्तान में और 450 सैनिक भेजने का निर्णय लिया। इस से पहले, अमरीका सरकार ने अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में सैनिक भेजने की योजना घोषित की। प्रथम खेप की टुकड़ी इस वर्ष के मार्च में अफगानिस्तान पहुंच चुकी है। हालिया परिस्थिति से देखा जाये, तो दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण स्थिति मौजूद है और घमासान लड़ाई नहीं बचती नजर आयी है।

तालिबान ने वसंतकालीन हमला करने की योजना बनायी। निस्संदेह, यह अमरीका सरकार की नयी रणनीति के खिलाफ़ बनायी गयी है। ओबामा ने सत्ता पर आने के तुरंत बाद ही अफगानिस्तान की नयी रणनीति बनायी। अमरीका ने आतंकवाद विरोधी रणनीति का केंद्र इराक से अफगानिस्तान में स्थानांतरित किया और आतंकवाद की जड़ को उखाड़ देने का दावा किया। हालांकि ओबामा ने बार बार कहा कि सैन्य हथकंडों से अफगानिस्तान समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है, फिर भी अमरीका द्वारा लगातार अफगानिस्तान को सैनिक भेजने से हम देख पाते हैं कि सैन्य प्रहार अभी भी ओबामा सरकार द्वारा तालिबान समस्या का समाधान करने के लिए एक भरोसा रहा है। तालिबान की तरफ से देखा जाये, वह अपने सब से कठिन काल से बाहर निकल चुका है और उस की शक्ति स्पष्ट रुप से मजबूत हो गयी है। सूत्रों के अनुसार, हाल में तालिबान ने लगभग दो तिहाई अफगान भूमि पर कब्जा कर लिया है और वह वास्तव में दक्षिण अफगानिस्तान के शहरों, कस्बों व गांवों का वास्तविक शासक बन गया है। राजधानी काबुल जाने वाली चार बड़ी सड़कों में से तीन सड़कें तालिबान के प्रभाव में है। इसलिए कहा जा सकता है कि तालिबान ने बुनियादी तौर पर राजधानी जाने वाले द्वार पर नियंत्रण कर लिया है। इतना ही नहीं, हाल में तालिबान के अंतरराष्ट्रीयकरण की गति भी तेज़ होती रही है। भारत व श्रीलंका में भी तालिबान नामक संगठन उत्पन्न हुए हैं। तालिबान आसानी से हार स्वीकार नहीं करेगा। उस ने नाटो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता टुकड़ी और अमरीकी सेना के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान स्थित साझी सेना से खुल कर लड़ाई लड़ने का विकल्प लिया है।

हाल में पाकिस्तान में तालिबान सशस्त्र शक्ति बहुत सक्रिय रहा है, जिस का शक्ति दायरा उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान तथा कबाइली क्षेत्र तक विस्तृतित हो गया है। तालिबान ने पाक राजधानी इस्लामाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर स्थित बुनेर क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान में तालिबान सशस्त्र शक्ति पर भारी प्रहार किया जाते समय अफगानिस्तान के तालिबान ने वसंतकाली हमला करने की घोषणा की। जाहिर है कि इन दोनों तालिबान शक्तियों के बीच घनिष्ट संबंध कायम है।

निस्संदेह, नाटो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता टुकड़ी तथा अफगानिस्तान की साझी सेना के लिए तालिबान तथा अलकायदा की खुचीबची शक्ति को पराजित करके नष्ट करना एक प्राथमिक कार्य है। लेकिन, अफगानिस्तान के आम चुनाव का सुभीतापूर्ण आयोजन और सत्ता के स्थिर हस्तांरण को सुनिश्चित देना भी उन के सामने मौजूद सब से फौरी यथार्थ समस्या है। अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करजाई का कार्यकाल इस वर्ष की 21 मई को समाप्त होगा, जबकि चुनाव कमेटी ने निर्णय लिया कि राष्ट्रपति चुनाव 20 अगस्त से शुरु होगा। श्री करजाई ने 27 अप्रैल को स्पष्ट कहा कि वे नये राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेंगे। इस आम चुनाव के प्रति तालिबान सशस्त्र शक्ति ने कहा कि वह न केवल आम चुनाव का बहिष्कार करेगा, बल्कि अफगानिस्तान में और ज्यादा हमला भी करेगी। इसलिए, किसी तरह आम चुनाव के सुभीतापूर्ण आयोजन को सुनिश्चित करना ओबामा सरकार की नयी अफगानिस्तान नीति के लिए एक बड़ी परीक्षा है। अफगानिस्तान की सुरक्षा परिस्थिति भी आम चुनाव के आगमन और तालिबान की तीव्र गतिविधियों से और गंभीर होगी। (श्याओयांग)