तिब्बत में जातीय व लोक संस्कृति के अवशेषों, खास तौर पर लोक संगीत, लोक नृत्य, लोक कला व लोक शिल्प आदि समेत गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों का इतिहास बहुत लंबा है।
आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में शिकाज़े की लाज़ी कांउटी में त्वेशे समेत 60 राष्ट्रीय गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतें हैं। और राष्ट्रीय गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के 31 उत्तराधिकारी हैं। गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की नामसूचि में दाखिल मुद्दों पर हर वर्ष उन की रक्षा व विकास के लिये पूंजी लगती है । और उन गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के उत्तराधिकारियों को भी देश से सहायता व पूंजी मिल सकती है।
अभी आप ने सुना तिब्बती बुजुर्ग कलाकार द्वारा प्रस्तुत राजा गेसर महाकाव्य का एक भाग। वर्ष 1959 के तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार से पहले कलाकार सामंती भूदास मालिकों के भेदभाव के शिकार थे। उन का स्थान बहुत नीचा था। लेकिन अब लोक कलाकार तिब्बती गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के सब से उल्लेखनीय उत्तराधिकारी बन गये हैं, और उन्हें राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में सम्मान मिलता है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सांस्कृतिक ब्यूरो के कर्मचारी नीमा ने परिचय देते हुए कहा:
"लोकतांत्रिक सुधार से पहले आम जनता को सांस्कृतिक फल प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। और लोक कलाकारों का स्थान व जीवन स्तर भी बहुत नीचा था। उन्हें सम्मान नहीं मिलता था। अब उत्तराधिकारियों व कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में सांस्कृतिक दलों के विकास पर बड़ा ध्यान दिया गया है, जिससे किसानों व चरवाहों को सचमुच यह लगता है कि उन्हें सम्मान मिलता है। और उन की सक्रियता भी बढ़ गयी है। अब विभिन्न जगहों पर ल्हात्से से सीखकर अपने विशेष सांस्कृतिक संसाधन की खोज की जा रही है, ताकि लोक संस्कृति खेत से कला भवन में प्रवेश कर सके।"
नीमा ने कहा कि तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार के बाद देश ने विभिन्न कदम उठाकर संस्कृति व कला क्षेत्रों में योगदान देने वाले लोक कलाकारों का समर्थन किया है और उन के उत्तराधिकारियों को प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने कहा:
"हमने शिक्षा विभाग के साथ सहयोग करके कुछ प्रशिक्षण कक्षाएं आयोजित की, और गैरभौतिक सांस्कृतिक संसाधन केंद्रित क्षेत्रों में कुछ विकास ठिकानों की स्थापना की और संस्कृति व कला के सुयोग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया। उन में न सिर्फ़ विशेष सुयोग्य व्यक्ति शामिल हैं, बल्कि आम जनता को भी कुछ प्रशिक्षण मिल सकता है। अगर ऐसा काम नहीं किया गया तो संस्कृति व कला खत्म हो जाएगी।"
परिचय के अनुसार वर्तमान तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में काऊंटी स्तरीय लोक कला मंडलों की संख्या 19 तक पहुंच गयी है। और शौकिया कला प्रस्तुत दलों की संख्या लगभग पांच सौ तक है। ये प्रस्तुति मंडल साल भर कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में सक्रिय रहते हैं, और खाली समय में जनता के लिये प्रस्तुति करते हैं। उन्हें जनता पसंद करती है । ल्हात्से काऊंटी में रहने वाले बूढ़े वांगचुक तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार के पहले एक भूदास थे। उस समय उन्हें कार्यक्रम देखने का अधिकार नहीं था। लेकिन अब वे अक्सर विभिन्न कला मंडलों की प्रस्तुति देख सकते हैं। वे बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा:
"पहले समय में भूदास मालिक के लिए कलाकारों को बुलाते थे । लेकिन खुद प्रस्तुति नहीं देख सकते थे। उस समय मैं एक बच्चा था। प्रस्तुति देखने का बड़ा शौक था, लेकिन नहीं देख सकता था। अब मैं ने खूब प्रस्तुतियां देखी हैं। मैंने शिकाजे व ल्हासा से आए कला मंडलों की प्रस्तुतियां भी देखी हैं। मैं बहुत खुश हूं कि वे अक्सर हमारे घर के सामने कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।"
वर्तमान तिब्बत की जनता अपनी परंपरागत संस्कृति की रक्षा व विकास के लिये पूरी कोशिश कर रही है। और तिब्बती परंपरागत संस्कृति भी धीरे-धीरे से समृद्ध हो रही है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थानीय सरकार के अधिकारी श्री च्यांग छेन ली ने कहा:
"भविष्य में हम योजनानुसार धीरे-धीरे सभी संस्कृतियों व सांस्कृतिक अवशेषों का सुधार करेंगे। ताकि ऐतिहासिक, शानदार व परंपरागत संस्कृति अच्छी तरह से बरकरार रखी जा सके ।"