2009-04-23 10:22:23

भारत में आम चुनाव के दौरान अनेक आतंकी घटनाएं हुईं

भारत के झाड़खंड में 22 अप्रैल की सुबह स्थानीय सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों द्वारा एक यात्री रेल गाड़ी व उस के यात्रियों को बंधक बनाये जाने की घटना हुई, चार घंटा बाद सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों ने रेल गाड़ी और उस पर सवार सैकड़ों यात्रियों को रिहा कर दिया। इस घटना में कोई हताहती नहीं हुई । यह घटना भारत में 16 तारीख से शुरू प्रथम चरण के आम चुनाव के दौरान हुए अनेक हिंसक घटनाओं में से एक है, जिस से भारत के भीतर आम चुनाव समय की गंभीर स्थिति जाहिर हो गयी है ।

भारतीय पुलिस के अनुसार सरकार विरोधी सशस्त्र तत्वों ने कहा कि उन्हों ने इसलिए रेल गाड़ी रोकी है कि वह सरकार द्वारा इस महीने की 15 तारीख को आतंकी हमले के आरोप में 5 सरकार विरोधी सशस्त्र सदस्यों को गोली से मारे जाने पर विरोध प्रकट करता है। उन्होंने भारत सरकार से हरेक मृत्क के परिवार को 10 लाख रूपये की मुआवजा देने की मांग की है। रेल गाड़ी को अपहृत करने वाली घटना के अलावा 21 अप्रैल की रात में सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों ने झाड़खंड के एक रेलवे स्टेशन पर विस्फोट किया और राज्य के एक स्कूल व चिकित्सा केन्द्र पर भी हमला बोला । 22 तारीख की रात, बिहार में 100 से अधिक सशस्त्र शक्तियों ने 9 गाड़ियों को जलाकर नष्ट कर डाला और एक ट्रक ड्राइवर को जान से मारा, उन्हों ने एक स्थानीय सरकारी संस्था पर भी चढाई की। पश्चिम बंगाल में सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों ने पुलिस थाने के सभा सथल के पास 4 बारूदी सुरंगों का विस्फोट कर दिया, लेकिन कोई हताहती नहीं हुई।

लोकमतों का इस पर ध्यान हुआ है कि ये सिलसिलेवार हमले फिलहाल चल रहे आम चुनाव के दौरान हुए हैं। भारत में प्रथम चरण का आम चुनाव 16 अप्रैल से शुरू हुआ, इस के दौरान 18 लोग सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों के हमलों में मारे गए । आम चुनाव का दूसरा चरण 23 तारीख से शुरू हुआ, पांच दौर बाद भारत की नये सत्र की संसद और केन्द्र सरकार चुनी जाएगी । भारत के विभिन्न वर्गों के हितों से जुड़ने वाले आम चुनाव का लाभ उठाकर सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों ने अपना प्रभाव बढ़ाना चाहा, जो भारतीय पुलिस और मीडिया के पूर्वानुमान के अन्तर्गत है। 22 तारीख को पुलिस ने चेतावनी दी कि भावी चरणों में सशस्त्र शक्तियां पूर्वी भारत के अन्य कुछ लक्ष्यों पर हमला कर सकेगी । पुलिस के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों के पास 20 हजार सदस्य हैं, पिछले एक साल में उन्हों ने रेल मार्ग को तोड़ने, बैंक लूटने और पुलिस पर प्रहार करने की कार्रवाइयां कीं, जिन से करीब हजार लोग हताहत हुए।

इधर के 20 सालों में भारत का आर्थिक विकास तेज हुआ और आर्थिक वृद्धि की गति विश्व के अग्रिम स्थान पर पहुंची । पश्चिमी लोकमतों ने भारत को नवोदित अर्थ समुदाय के चार गोल्डन ब्रिक्स का एक माना। तो फिर यह कारण है कि 21वीं शताब्दी में दाखिल होने के बाद भी भारत के भीतर एक बड़ी संख्यक सरकार विरोधी सशस्त्र शक्ति मौजूद है, जो विभिन्न स्थानों में आतंकी कार्यवाहियां करती रहती हैं। असल में इस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। गत सदी के 60 वाले दशक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) स्थापित हुई। लेकिन इस पार्टा का जल्दी ही विभाजन हुआ। इस का एक भाग नक्सलवादी दल बना, जो सशस्त्र संघर्ष की कार्यदिशा पर कायम रहा। रिपोर्ट के अनुसार नक्सलवादी छापामार दस्ते पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और झाड़खंड आदि क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं, जिस से वहां के अर्थतंत्र व जनजीवन बहुत प्रभावित हुए। भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि नक्सलवादी छापामार दस्ता भारत की सार्वजनिक सुरक्षा के लिए सब से बड़ा खतरा है। इस के मुकाबले के लिए भारत ने 10 हजार सैनिकों की विशेष टुकड़ी भी कायम की । लेकिन अनेकों गरीब सरहदी क्षेत्रों में नक्सलवादियों ने कड़े अनुशासित भूमिगत संगठन बनाये हैं, उन पर काबू पाने के लिए पुलिस व सरकारी सेना को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। इस के अलावा भारत सरकार अब तक भी व्यापक ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी समस्या हल करने में नाकाम हुई, गरीबी से मारे स्थानीय किसान नक्सलवादी शक्तियों के समर्थक और आश्रय बन गए।

23 तारीख को आम चुनाव का दूसरा चरण शुरू हुआ, 13 राज्यों के 141 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होगा। किन्तु सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों के सिलसिलेवार आतंकी हमलों से मतदाताओं और उम्मीदवारों में बड़ी दहशत पैदा हुई। अब विभिन्न मतदान केन्द्रों पर भारी सैनिक तैनाति की गयी और कड़ी सतर्कता बरती हुई। लोकमतों ने सरकार से अपील की है कि वह आतंकी हमलों को रोकने के साथ साथ सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों की उत्पत्ति व विकास की जड़ काटने के लिए कदम उठाए, ताकि भारत का समाज शांति व सुरक्षित विकास के रास्ते पर चल सके।