2009-04-22 19:27:11

श्रीलंका में चिरस्थाई शांति की स्थापना में कठिनाई मौजूद है


श्रीलंका सरकार से मिली खबर के अनुसार 21 अप्रैल तक 50 हजार से ज्यादा लोग लिट्टे के नियंत्रण क्षेत्र से भाग आए हैं। सरकारी सेना के नियंत्रण वाले क्षेत्र में उन का अच्छी तरह से बंदोबस्त किया गया है। साथ ही सरकारी सेना द्वारा लिट्टे से आत्मसमर्पण करने की मांग का अंतिम समय भी 21 तारीख की दोपहर समाप्त हो गया। लेकिन लिट्टे ने उसी दिन स्पष्ट रूप से आत्मसमर्पण करने से इन्कार किया। दोनों पक्षों में टकराव जारी है। अंदरूनी शांति प्राप्त करने के लिये श्रीलंका को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।


हाल के दो दिनों में मुलादीवू क्षेत्र, जहां लिट्टे की बाकी सशस्त्र शक्ति घेरी गयी है, में बड़े खेप वाली जनता बाढ़ की तरह लिट्टे के नियंत्रण क्षेत्र से सरकारी सेना के नियंत्रण क्षेत्र में भाग आयी। लिट्टे ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। श्रीलंका सरकार ने 20 तारीख को लिट्टे को अंतिम चेतावनी दी और 24 घंटों में हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करने का आग्रह किया। अगर लिट्टे ने हथियार नहीं डाले तो सरकारी सेना उस पर सैन्य हमला करेगी। अंतिम चेतावनी का समय पूरा होने के बाद सरकारी सेना सैन्य शक्ति केंद्रित करके लिट्टे पर अंतिम हमला करेगी।

स्थानीय विश्लेषकों के विचार में लिट्टे की बची खुची शक्ति अब अगभग 12 वर्गकिलोमीटर के जंगली इलाके तक सीमित हो गई है ।अगर श्रीलंका सेना सफायी अभिमान को सख्ती से चलाए ,तो लिट्टे के अधिकांश बचे खुचे सदस्य बाहर नहीं भाग सकेंगे ।इस फरवरी से श्रीलंका की सरकारी सेना ने बडे पैमाने पर फौजी कार्यवाही शुरू की ।सरकारी सेना ने सैनिकों की बडी संख्या का लाभ उठाकर लिट्टे के अनेक गढों पर कब्जा कर लिया और लिट्टे की अधिकृत अधिकांश भूमि को अपने हाथ में ले लिया ।पर मारे गये लिट्टे के सदस्यों की संख्या अधिक नहीं है ।अब शक्तिशाली सरकारी सेना के समक्ष लिट्टे ने अपनी रणनीति बदली है और छापामार हमले की रणनीति अपनायी है ।इस के अलावा लिट्टे उत्तर व पूर्वी श्रीलंका में तीस साल तक बना रहा है ।वहां के बहुत जवान लिट्टे के विचारों के प्रचार में बढे हुए हैं ।लिट्टे के प्रभाव से श्रीलंका सरकार के प्रति उन की मजबूत दुश्मनी वाली मनःस्थिति है ।युद्ध मैदान में हारने और नियंत्रित भूमि खोने की स्थिति में लिट्टे संभवत अधिक आतंकवादी कार्रवाई करेंगे ,जो श्रीलंका की सुरक्षा व स्थिरता के लिए एक दीर्घकालिक खतरा बन जाएगा ।

इस के साथ, श्रीलंका के पड़ोसी देश भारत के इस युद्ध की रवैये पर भी बड़ा ध्यान दिया गया है। भारत में भी बड़ी संख्या में तमिल लोग रहते हैं, दक्षिण भारत के तमिलनाडू राज्य के तमिल श्रीलंका के तमिल एक ही जाति हैं, दोनों के बीच अटूट संबंध है। घरेलु दबाव के कारण भारत सरकार ने पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक में श्री लंका को एक शान्ति सेना भेजी थी, भयंकर कीमत चुकाने के बाद भारत ने मजबूर होकर श्री लंका से सेना हटा दी। भारत सरकार ने बहुत पहले से ही लिटटे को एक आंतकवाद संगठन करार दिया था, पर इस के साथ भारत फिर से श्री लंका की जटिल स्थिति में फंसना नहीं चाहता है । विशलेषकों का मानना है कि श्री लंका के प्रति भारत की नीति उसके आम चुनाव के बाद ही स्पष्ट होगी, नयी सरकार की स्थापना मई के आम चुनाव के बाद ही निश्चित की जा सकती है। वर्तमान दौर में भारत श्री लंका की स्थिति पर कोई दखल कार्यवाही नहीं करना चाहता है।

इस परिस्थिति में श्री लंका सरकार को राजनयिक पहलु में बाहरी दबाव पर ज्यादा विचार करने की जरूरत नहीं है, और वह लिटटे के पूर्ण सफाया की नीति पर जमा रहेगा। लेकिन घरेलु जातीय मुठभेड की मूल जड़ का सच्चे मायने में हल नही होने से केवल सशस्त्र माध्यम से घरेलु स्थिति को सतत रखना बहुत ही मुश्किल होगा। इधर के दिनों में श्री लंका की गैर तमिल जातीय क्षेत्रों में निरंतर आतंकवादी हमले व विस्फोट घटनाएं उत्पन्न हुए हैं, वर्तमान परिस्थिति में श्री लंका को घरेलु शान्ति को साकारने के लिए भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा।

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