2009-04-20 10:24:24

एशिया सहयोग में नया मौका

 19 तारीख को बोऔ एशिया मंच का 2009 वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ। तीन दिनों में 1600 से ज्यादा देश विदेश के राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों तथा विद्वानों ने खुल कर रायों का आदान-प्रदान किया और अंतर्राष्टीय वित्तीय संकट की छाया में फंसे एशिया के लिए सहयोग के नये मौके की तलाश की।

ऐतिहासिक अनुभवों से साबित हुआ है कि संकट में अक्सर सहयोग का नया मौका मौजूद रहता है। वर्ष 1997 में एशिया वित्तीय संकट के उत्पन्न होने के बाद एशिया की विभिन्न आर्थिक इकाइयों को यह मालूम हो गया कि केवल एक देश की कोशिश से इस संकट का सामना नहीं किया जा सकता है। क्षेत्रीय सहयोग संकट का निपटारा करने के लिए आवश्यक  है। इसलिए, आशियान एवं चीन, जापान व कोरिया गणराज्य में वार्ता  की व्यवस्था की गयी, मुद्रा की अदला-बदली के दायरे का विस्तार करने वाले छिआंग मई आह्वान आदि बहुपक्षीय सहयोग के कदम उठाए गए। दस वर्ष पहले की तुलना में वर्तमान वित्तीय संकट का एशिया को लगा झटका मुख्यतः यथार्थ आर्थिक इकाई क्षेत्र में प्रतिबिंबित हुआ है। चूंकि एशिया की अनेक आर्थिक इकाईयों का निर्यात उन्मुख अर्थतंत्र है, और उन का अधिकांश निर्यात युरोप व अमरीका में होता है। वित्तीय संकट के उत्पन्न होने के बाद युरोप व अमरीका से आने वाले ऑर्डरों में बहुत कमी आई है, इसलिए, एशिया की अनेक आर्थिक इकाइयों के निर्यात में विभिन्न हद तक कमी आने, पूंजी निवेश कम होने और बेरोजगारी की दर के बढ़ने जैसी सिलसिलेवार समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। इसलिए, क्षेत्रीय सहयोग मजबूत करना और संतुलित विकास फार्मूले की स्थापना करना वर्तमान अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट का निपटारा करने और मुसीबत से बाहर निकलने का महत्वपूर्ण तरीका है।

इस वजह से वर्तमान मंच में सहयोग की आवाज़ गूंजी है। चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने एशियाई सहयोग को मजबूत करने के लिए पांच सुझाव पेश किये। फिलिपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रामोस ने मशहूर बात कही कि पड़ोसियों को मत गिराओ। अमरीकी भूतपूर्व राष्ट्रपति बुश ने भी इस बात पर जोर दिया कि विभिन्न आर्थिक इकाइयों को सहयोग मजबूत करके संकट का मुकाबला करना चाहिए। आर्थिक भूमंडलीकरण की पृष्ठभूमि में हर एक आर्थिक इकाई को अन्य आर्थिक इकाइयों की विफलता को नजरअंदाज नहीं करना है,वरना वह खुद भी इस से प्रभावित होगा।संकट के सामने हमें एक दूसरे की मदद करने की भावना से पड़ोसी देशों को साझेदार समझ कर एक साथ मुसीबत से बाहर जाना चाहिए।

हाल में हालांकि एशिया को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट का गंभीर धक्का लगा है, फिर भी विभिन्न आर्थिक इकाइयों की बुनियादी स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी है। एशिया के पास अपेक्षाकृत परिपूर्ण विदेशी मुद्रा का भंडार और अपेक्षाकृत स्थिर वित्तीय व्यवस्था है। एशिया के अर्थतंत्र में वृद्धि हो रही  है और इस में सहयोग की निहित शक्ति है। वर्तमान वार्षिक सम्मेलन में चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने यह घोषणा की कि चीन द्वारा अपनायी गयी सिलसिलेवार आर्थिक प्रेरक योजनाओं को सफलता मिली है। प्रथम तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत तक पहुंची थी, जिस से एशियाई देशों द्वारा हाथ मिलाकर संकट से बाहर आने का विश्वास मजबूत हुआ है।

विश्व की तीसरी आर्थिक इकाई होने के नाते, चीन की आर्थिक वृद्धि अवश्य ही सारे एशिया के विकास को आगे बढ़ाएगी। स्वस्थ व स्थिर एशिया के अभाव में चीन के आर्थिक विकास की शक्तिशाली नींव भी कमज़ोर हो सकती है । इसलिए, चीन एशिया सहयोग का सक्रिय प्रवर्तक एवं निर्माता है। वर्ष 1997 में एशियाई वित्तीय संकट उत्पन्न होने के बाद, चीन ने चीनी मुद्रा रन मिन बी के अवमूल्य को कायम रखा और संकट से प्रभावित होने वाली आस पास की आर्थिक इकाइयों को संकट के बाहर निकलने में मदद दी।वर्तमान अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के उत्पन्न होने के बाद चीन ने कोरिया गणराज्य, मलेशिया एवं इंडोनेशिया आदि एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय मुद्रा अदला-बदली समझौते पर भी हस्ताक्षर किए और 1 खरब 20 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य वाले क्षेत्रीय विदेशी मुद्रा भंडार कोष की स्थापना करने की प्रेरणा दी। वर्तमान सम्मेलन के दौरान, चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य वाली चीन-आशियान पूंजी निवेश के सहयोगी कोष की स्थापना की घोषणा की, जिस से फिर एक बार यथार्थ कार्यवाई से एशिया में सहयोग व समान उदार की भावना प्रतिबिंबित हुई है।

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