मोटे तौर पर, पूर्वी हान शासन ने अपने पूर्ववर्ती पश्चिमी हान शासन की राजनीतिक प्रथाओं का अनुसरण किया था। सम्राट क्वाङऊ ने लगातार छै बार दास-दासियों को मुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया और नतीजे के तौर पर बहुत से दास-दासियों को आजादी हासिल हुई। बाद में, उसने सरकारी जमीन का एक हिस्सा गरीब किसानों को देने के साथ-साथ उन्हें बीज, कृषि-औजार और खाद्यान्न उधार देने के अनेक आदेश भी जारी किए। उसने जल-संरक्षण परियोजनाओं का निर्माण करने, ह्वाङहो नदी को वश में करने और नदी-तटबंधों का निर्माण व मरम्मत करने पर विशेष ध्यान दिया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप उसके बाद के कोई 800 वर्षों तक ह्वाङहो नदी ने अपना रास्ता नहीं बदला था। पूर्वी हान राजवंश के काल में लोहा गलाने की तकनीक में बड़ी उन्नति हुई। नानयाङ के मजिस्ट्रेट तू शि ने एक ऐसी विधि का आविष्कार किया जिसमें बहत पानी का इस्तेमाल कर पहियों को चलाया जाता था, फिर इन पहियों से जानवरों के चमड़े से बने धौंकनीनुमा पीपों को चालू कर दिया जाता था, और इस प्रकार लोहा गलाने की भट्ठी में हवा दी जाती थी। इस विधि से भट्ठी के अन्दर का तापमान बढ़ जाता था और उच्चतर क्वालिटी का लोहा तैयार होता था। इसी बीच, कुएं के नमक के उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी।
पूर्वी हान शासन की स्थापना प्रभुत्वकारी जमींदारों के समर्थन से हुई थी, इसलिए वे विशेषाधिकारों का उपभोग करते थे। वे अपने प्रभुत्व के भरोसे किसानों की जमीन हड़प लेते थे और आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बड़े-बड़े बागान कायम करते थे। वे अपने-अपने इलाके की राजनीति में चौधराहट जमाते थे और व्यक्तिगत रूप से अपने"पारिवारिक सिपाही"भी रखते थे। वे केन्द्रीय प्राधिकरणों से स्वतंत्र होने का दावा करते थे। उन में से कुछ स्थानीय अफसरों के रूप में काम करते थे और कुछ अन्य केन्द्रीय सरकार की सत्ता का भी उपयोग करते थे। पूर्वी हान राजवंश के उत्तरकाल में ख्वाजाओं और सम्राज्ञियों के रिश्तेदार भी बारी-बारी से शासन की बागडोर संभालने लगे थे। वे खुलेआम रिश्वत देकर अफसर बनवाते थे और जनता को लूटकर दौलत बटोरते थे। बहुत से किसान अपनी जमीन और जीविका के अन्य साधन गवांकर खानाबदोश बन गए। परिणामस्वरूप, 107 ईसवी से लेकर आगे के कोई सत्तर-अस्सी वर्षों में पूरे देश में 100 से अधिक किसान-विद्रोह फूट पड़े थे।