2009-04-17 16:32:44

शिष्टाचारी की हद

प्राचीन समय की बात थी , यु -छान ची नाम का एक व्यक्ति अपने मित्र के साथ मिल कर चूल्हे के पास ताप सेंक रहे थे , मित्र पुस्तक पढ़ने में लग्न रहा था ,अतः उस के कपड़े की निचले आंचल में आग लगने पर भी उसे पता नहीं चला । मित्र के वस्त्र में आग लगी देख कर यु छान ची ने धीरे धीरे खड़े हो कर हाथ जोडते हुए मित्र से कहा , दोस्त , मैं आप को एक बात बताना चाहता हूं, लेकिन मुझे डर है कि कहीं आप को गुस्सा नहीं आए और अपने स्वास्थ्य को आंच ना पहुंचे , अगर आप को नहीं बताऊं , तो मित्र होने के नाते ऐसी जिम्मेदारी से बचना ठीक भी नहीं है । मैं इतना असमंजस्य में पड़ गया हूं कि पता नहीं , क्या करना चाहिए । आप मुझे आश्वासन दें कि आप चिंतित जरूर नहीं रहें और गुस्सा नहीं आए, जब जाकर मुझे आप को बताने का साहस आ सकेगा । मित्र उस के गंभीर्य को देख कर बहुत

आश्चर्यचकित हुआ और कहा , हम दोनों अच्छे मित्र हैं , इतना ज्यादा सोच विचार करने की क्या आवश्यकता है , वास्तव में क्या हुआ , आप बताएंगे , मैं जरूर विनम्रता से आप की राय मान लूंगा । यु छान--ची ने बार बार हाथ जोड़ कर मित्र से चिंता से बचने की मांग की और मित्र ने बार बार वायदा किया , तब उस ने धीमी लहजे में कहा , चूल्हे से आप के वस्त्र में आग लगी है और अब वस्त्र का एक बड़ा भाग खराब हो चुका है । यु छान ची की बात अभी समाप्त नही हुई थी कि उस का मित्र चिंता से उछल गया और नीचे की ओर देखा , सचमुच वस्त्र का आधा भाग जल चुका था , उस ने फटाफट कपड़ा उतार दिया और हाथ पांच मार कर आग को बुझा दिया । गुस्सा होने के कारण मित्र के चेहरा का रंग भी उड़ा था , आप ने क्यों जल्दी नहीं बताया , ऐसी घटना होने पर भी आप इतनी लम्बी जोड़ी बातें कहते हैं । मित्र की उतावली पर यु छान-ची ने फिर अपने को सही समझा और कहा , देखो , देखो , अभी कहते हैं कि चिंता नहीं करते हैं , तो अब क्या हुआ , चिंतित हुआ है ना , सचमुच आदत का परिवर्तन पहाड़ के कायाबदल से भी मुश्किल है । 

 भारत में भी एक मिलती जुलती चुटली चलती है , यानी दो मित्र थे , जो गाड़ी पकड़ने स्टेशन पर पहुंचे , दोनों मित्र बड़े ही शिष्टचार वाले आदमी थे , जब गाड़ी छूटने वाली थी , तो एक ने दूसरे से कहा , पहले आप तशरीफ करें , दूसरे ने पहले मित्र से शिष्टाचार का बर्ताव करते हुए कहा , पहले आप , फिर पहले ने दूसरे से कहा , पहले आप , दूसरे ने फिर कहा , पहले आप , ऐसा एक दूसरे से पहले आप , पहले आप कहते कहते समय गाड़ी छूट गयी और दोनों मित्र अवाक रह गए ।

                                                                           जाली वाद्य वादक

आज से साढ़े दो हजार साल पहले की कहानी थी , चीन के युद्धरत राज्य काल में छी क्वो नामक राज्य का राजा छी श्वान वांग कहलाता था , वह एक संगीत का प्रेमी था , खास कर वह यु नाम के वाद्य यंत्रों का समूह गान सुनना पसंद करता था , यु नाम का वाद्य यंत्र बांस के पाइपों से जोड़ कर बनाया गया है और मुंह से हवा फुंक कर बजाया जाता था । छी स्वान वांग यु नामक वाद्य बजाने वालों द्वारा सामुहिक रूप से प्रस्तुति पसंद करता था , और वाद्य दल जितना बड़ा और बजाने वलों की संख्या जितनी ज्यादा थे , वह उतना बड़ा खुश होता था ।

छी क्वो राज्य में नान को नाम का एक निवासी था , वह ना विद्य जानता था , ना ही मेहनत करना आता था । वह केवल लोगों की खुशामद करना और डींग मारना जानता था । जब उस ने सुना कि छी क्वो का राजा एक विशाल वाद्य दल का गठन कर रहा है , तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा , उस ने दूसरों के माध्यम से राजा को अपना परिचय भेजा और अपने को कुशल वादक बतलाया । राजा छी स्वान वांग बहुत खुश हुआ और उसे वाद्य मंडल में शामिल किया गया । जब कभी राजा के सामने संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत हो रहा था , तो नान को तीन सौ वादकों से गठित वाद्य समूह में बैठे हुए यु नामक वाद्य यंत्र बजाने का स्वांग कर रहा था , उस का गला भी दूसरों की भांति हरकत करता दिखाई पड़ता है और शरीर आगे पीछे झुकता उठता रहा था , देखने में जान पड़ता था कि वह वाद्य बजाने में बड़ी मेहनत कर रहा हो और बड़ा कुशल भी नजर आया हो । दरअसल उस के वाद्य यंत्र से जरा भी ध्वनि नहीं निकलती थी ।वह रोज दूसरे वादकों की तरह राजा से अच्छा वेतन कमाता था , बढ़िया खाना खाने को मिलता था । इसी तरह कई साल यो गुजर गए ।

बाद में छी क्वो का राजा छी स्वान वांग का देहांत हो गया , उस का पुत्र मिन वांग राजा बन गया । मिन वांग भी संगीत के शौकिन था , लेकिन उसे सामुहिक वाद्य प्रस्तुति पसंद नहीं थी , वह एकल बजाना सुनना चाहता था । सो यु बजाने वाला वादको को एक एक करके उस के सामने बजाना पड़ता । इस तरह के प्रबंध से नान- को की कलई जरूर खुल जाएगी , अंततः डर के मारे उसे दुम दबा कर फरार होना पड़ा ।

नान को एक ऐसा व्यक्ति था , जो लोगों को धोखा देने के जरिए पेट पालता था , जब उस की असलियत प्रकट में आयी , तो वह व्यंग का पात्र बन गया । नीति कथा हमें बताती है कि केवल ईमानदारी और मेहनत से काम लेने से ही सम्मान के साथ परिश्रम का सुफल पा सकता है ।

                                                         संतुक खरीद कर मोती वापस देना

प्राचीन छुन राज्य में एक जेहरात व्यापारी था ,एक बार वह मोती बेचने चङ राज्य गया । मोती को बेहतर दाम पर बेचने के लिए व्यापारी ने मौती रखने का एक संतुक भी बनाया । वह संतुक बढ़िया लकड़ी से बनाया गया था और तरह तरह के नामी मसालों से सुगंधित कर दिया गया , उस की चारों भित्तियों पर छोटी छोटी चमकदार रत्न जड़ित हुए और ऊपर लाल रंग के मणि लगाए गए थे । देखने में संतुक बड़ा सुन्दर लगता था और बहुत सुगंधित भी था ।

चङ राज्य के एक आदमी को यह खूबसूरत संतुक पसंद आया । उस ने ऊंचे दाम पर संतुक खरीदा , पर संतुक के अन्दर रखी वह मूल्यवान मोती को व्यापारी को वापस लौटा दिया ।

इस नीति कथा का अर्थ बहुत स्पष्ट है , यानी चङ राज्य का वह लोग केवल बाहर की सुन्दरता से भ्रमित हुआ था , वह नहीं जानता था कि संतुक के अन्दर की मोती कहीं अधिक मूल्यवान है । इसलिए वह मूल्यवान चीज पाने से छूट गया ।