2009-04-16 15:38:41

तिब्बत में भूदासों की मुक्ति के बारे में

पुराने तिब्बत में भूदास भूदास-स्वामियों की निजी संपत्ति थी, भूदास- मालिक न केवल मनमाने ढंग से उन का प्रयोग कर सकते थे, जबरन कड़ा श्रम करवाते थे और भूदासों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूरी तरह छीन लेते थे, साथ ही भूदास-स्वामी अपने जागीर में निजी जेल कायम कर सकते थे और भूदासों को आंखें कुरेदने, कान, हाथ और पांव काटने, शरीर से नसें चीड़कर निकालने तथा पानी में डुबो देने का क्रूरतापूर्ण जुल्म दिया जाता था।

सामंती अभिजात लोग कोई काम नहीं करते थे, लेकिन सभी संपत्ति उन के कब्जे में पड़ती थी। जबकि भूदास जिन्दगी भर तोड़धूप करते थे, सदियों से बाहर दुनिया से अलग थलग पुराने तिब्बत में उत्पादन शक्ति का स्तर इतना अत्यधिक निचा था कि वह शून्य के तूल्य था। ऐसी स्थिति को बदलना पुराने तिब्बत की सामंती भूदास व्यवस्था के अन्तर्गत संभव नहीं था, केवल बाहरी शक्ति लगाने से भूदासों की किस्मत बदली जा सकती थी । इस पर चीनी तिब्बतविद्या अध्ययन केन्द्र के उप महानिदेशक श्री गेलेक ने कहाः

"पुराने तिब्बत की यह राजनीतिक व्यवस्था सड़नशील, रूढिवादी और अपरिवर्तशील थी, जो पिछड़पन की चरमसीमा पर पहुंची थी। मैं ने इस सड़नशील व्यवस्था का उपमा एक कंकाल बने और उल्टी सांस निकालने वाले मरणासन्न आदमी के सिर पर एक भव्य सुनहरा ताज पहुंनने से की है। यह सच है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के सिद्धांत, मठ और कला पूरे विश्व में ध्यानाकर्षक शानदार सुनहरी कला और धार्मिक दर्शन है, किन्तु उस की सृष्टि करने वाले लोग तो भूखमरे, दलित, कंकाल वाले, व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करीब दस लाख भूदास थे, वे तिब्बत की तमाम मेहनतों का असह्य बोझ उठाते थे।"

वर्ष 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई, इस से सामंती भूदास व्यवस्था रद्द की जाने और दस लाख भूदासों को मुसिबतों से उद्धार कर नया जीवन दिलाने का ऐतिहासिक मौका आ पहुंचा। लेकिन सामंती कुलीन वर्ग अपने हितों व विशेषाधिकार को बनाए रखने की कुचेष्टा में इस बदलाव का जमकर विरोध करता था । 1959 के मार्च माह में उन के उकसावे में ल्हासा शहर में उपद्रव मचा, कुछ लोगों ने इस अफवाह कि हान जाति के लोग दलाई लामा का अपहरण करेंगे, में आकर सड़कों पर उमड़ कर हंगामा मचाया। साजिश में शामिल हथियारबंद लामाओं और तिब्बती सेना ने तत्कालीन तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना तैयारी कमेटी के अधिकारियों को जान से मार डाला । 16 मार्च को विदेशी शक्तियों की मदद में दलाई लामा और उन के सहचरी ल्हासा से निकल कर भाग गए।

उस के उपरांत तीन दिन के भीतर चीनी जन मुक्ति सेना ने तिब्बत में हुए विद्रोह को शांत कर दिया । तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री चाओ एनलाई ने राज्य परिषद का आदेश जारी कर घोषणा की कि 28 मार्च 1959 को तिब्बत की सामंती भूदास व्यवस्था वाली सरकार को भंग किया गया। इसी दिन से तिब्बती जनता सचे माइने में अपने भाग्य का स्वामी बन गयी । फिर तिब्बत में जनवादी सुधार चलाया गया, पुराने तिब्बत की राजनीतिक व धार्मिक मिश्रण वाली सामंती भूदास व्यवस्था रद्द की गयी, दस लाख भूदासों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता मिली, उन में भूमि का बंटवारा किया गया और कानून से निर्धारित राजनीतिक अधिकार सौंपा गया।

तिब्बत की मुक्ति प्रक्रिया के चश्मदीद तिब्बती जनता ने सड़कों पर आकर विद्रोह को शांत किये जाने की विजय मनायी । इसी वक्त से अलग अलग जागीरदारों में सेवारत भूदासों का पारिवारिक मिलन होने का सपना साकार हो गया, इसी वक्त, भूखमरे लोगों की फटी टूटी झोपड़ी हटायी गयी और वे जन सरकार द्वारा निर्मित आरामदेह मकानों में रहने लगे। इसी वक्त, भूदासों ने बाहर भागे विद्रोही भूदास-मालिकों की बही खाता आग में डाल कर जलायी---।

सितम्बर 1961 में तिब्बत के विभिन्न स्थानों में इतिहास में प्रथम जनवादी चुनाव आयोजित हुआ, अतीत के भूदासों ने पहली बार अपने राजनीतिक अधिकार का उपभोग किया । वर्ष 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की प्रथम जन सरकार की स्थापना हुई और अतीत के बहुसंख्यक भूदास नेतृत्वकारी पदों पर चुने गए। तिब्बती जनता राजनीतिक अधिकार का उपभोग करते हुए नये तिब्बत के स्वामी बन गयी । चीनी तिब्बतविद्या अध्ययन केन्द्र के प्रधान श्री चांग शाओफिंग ने कहाः

"इस महान जनवादी सुधार के परिणामस्वरूप तिब्बत में उत्पादन शक्ति पूरी तरह मुक्त हुई, मुक्ति प्राप्त भूदासों में उत्पादन व विकास के लिए जो उत्साह उभरा है, उस के जरिए तिब्बत में पिछले 50 सालों में एक के बाद एक सामाजिक प्रगति हासिल हुई है।"

जनवादी सुधार के बाद पिछले 50 सालों में तिब्बत में तेज गति से विकास व प्रगति होती चली गयी, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में संपूर्ण आर्थिक व सामाजिक विकास हुआ और अब तिब्बती जनता अमनचैन व खुशहाली का नया जीवन बिता रही है।