2009-04-10 17:04:09

अजिगर का वध

प्राचीन चीन के छुन राज्य वंश में छी फे नाम का एक बहादूर युवा था , एक दिन उस ने हान स्वी नामक जगह पर एक तेज तलवार खरीदा । गांव लौटने के दौरान वह एक नाव पर सवार नदी पार कर रहा था । जब नाव नदी के मध्यधर में पहुंचा , अचानक नदी में बाढ़ आई , उफंती लहरों के बीच दो भयानक अजिगर दिखाई पड़े । दोनों अजिगर दोनों तरफ से नाव को घेर ले रहे थे , नाव पर सवार सभी यात्री डरने के कारण कांपने लगे और नाविकों का होश भी जवाब दे चुका था । तभी छी फे ने पूछा , क्या पहले नाव जब अजिगरों के हमले का शिकार बन गया , उस पर सवार लोगों की जान बच सकती थी । नाविक नहीं की मूड में सिर हिलाते हुए बोला , नहीं बचता , नहीं बचता । इसी वक्त छी फे ने तुरंत तलवार निकाल कर दृढ़ आवाज में प्रतीज्ञा की कि मैं इन दोनों भयानक अजिगरों का वध कर नदी में सड़ने दूंगा । अगर जान बचाने के लिए मैं तलवार का त्याग करता , तो इस दुनिया में रहने का मेरा क्या महत्व हो सकता । कहते कहते छी फे तलवार उठाए नदी की लहरों में कूद पड़ा और अजिगरों से भिड़त कर उन्हें मार डालने का प्रयत्न किया , नदीजातः उस ने दोनों अजिगरों को मार डाला और नदी में लहर शांत हो गई और बाढ़ चली गई । अपनी बलिदान की भावना का परिचय कर छी फे ने नाव के सभी लोगों की जान बचायी ।

दोस्तो , इस प्राचीन नीति कथा से हमें यह शिक्षा मिल सकती है कि संकट के समय या दुश्मन के सामने लोगों को बहादूरी का परिचय कर उस पर विजय पाने की केशिश करना चाहिए , न कि विपत्ति के आगे डर के मारे झुकेगा या भाग जाएगा । कठिनाइयों के विरूद्ध डट कर संघर्ष करना जीवन का गुढ़ होता है ।

                                                  मोटी गला की बीमारी से पीड़िक गांव वासी

कहा जाता है कि पहले पश्चिमी चीन के श्यान शी और सछवान प्रांतों के सीमांत इलाके में नानची नामक एक पहाड़ी घाटी स्थित थी , दूरगम स्थान में रहने के कारण वहां के गांववासी बाहरी दुनिया से अलग थलग रहते थे । नानची घाटी में पानी बहुत मीठा था , लेकिन पानी में ओडिन की कमी होती थी . वर्षों से कम ओड़िन वाला पानी पीने से लोगों में मोटी गला की बीमारी पड़ती थी , इस लिए नानची इलाके में रहने वाले सभी लोग मोटी गला की बीमारी से पीड़ित थे । एक दिन , बाहर से एक लोग नानची पहाड़ी घाटी में आई , उसे देख कर गांव वासियों में हलचल मच गया । सभी गांव वासी बाहर से आए लोग को घेर कर दमाशा देखना समझते थे । उस की गला पर जोरदार बहस हुई , कोई कहता था , देखो , इस आदमी की गला देखो । कोई कहता था , यह क्या दमाशा है , इतनी पतली गला देखने में बहुत कुरूप लगता है । तो कोई कहता था कि इतनी पतली गला वाला , वह जरूर मरीज है । और कोई कहता था कि इतना पतली गला देखने में बहुत कुरूप है , बाहर नहीं आना चाहिए , उसे अपनी गला को किसी चादर से बांध कर छिपाना चाहिए । ये बहस सुन कर बाहर से आए लोग हंस पड़ा , उस ने मुस्कराते हुए गांव वासियों से कहा, दरअसल आप लोगों की गला बीमारी से ग्रस्त है , आप लोगों की बीमारी मोटी गला की बीमारी कहलाती है , यह बड़ी हंसी देने वाली बात है कि आप लोग अपनी बीमारी का इलाज नहीं कराते है , उलटे मुझे पर हंसी कसते । गांव वासी कहते थे कि हमारे गांव के सभी लोगों की गला ऐसी ही है , मोटी जोड़ी होती है , देखने में बहुत सुन्दर लगती है , इस का इलाज करने की क्या जरूरत है ।

मोटी गला वाली कथा हमें बताती है कि अज्ञान होना एक बड़ी गलती है , इस गलती से लोग कभी कभी काला को सफेद समझते है , और अपनी गलती पर घमंड भी होते हैं । इसलिए ज्ञान पाना अत्यन्त आवश्यक होता है ।