तिब्बती जाति में शादी ब्याह और मृत्क के अंतिम संस्कार के वक्त चाय पान होता है। सगाई के समय दहेज में शामिल चाय की मात्रा बहु पक्ष की संपत्ति का प्रतीक है और शादी के भोजन में चायपान लाजिमी है ।
मठों में चायपान के कड़े नियम लागू होते है। सामुहिक चायपान के वक्त पदों व श्रेणियों के मुताबिक क्रमबद्ध रूप से बैठते हैं । चाय परोसने वाले भिक्षु हरेक लोग के प्याले को भर देते हैं, पीने के बाद प्याला थोड़ा आगे सरकाते है और परोसने वाला फिर आकर भर देता है। चायपान के समय सीधा बैठे मौन रहना चाहिए। सामुहिक चायपान के चाय खुद मठ द्वारा प्रदान किया गया है या उपासकों द्वारा दीक्षा में दिया गया है। दीक्षा देने वालों में सरकारी अधिकारी भी है और धने व्यापारी भी। छिंग राजवंश के काल में तिब्बत स्थित केन्द्रीय सरकार के मैत्री नियमित रूप से विभिन्न मठों को चाय चढाते थे।
चाय में लगाव होने के कारण तिब्बती जाति में चाय के बारे में बेशुमार साहित्यिक रचनाएं और लोक कथाएं प्रकाश में आयीं, जिन में चाय मदिरा परी और चाय व नमक की कहानी आदि मशहूर हैं। चाय मदिरा परी में एक नगर की कल्पना की गयी, जिस के राजा ने मदिरा की जगह चाय की दावत दी, इस से आकृष्ट हो कर मदिरा देवी स्वर्ग से नीचे आयी और राजा के सामने मदिरा की तारीफ का पुल बांधती थी और चाय पर कलंक लगाती थी। चाय परी भी आयी और मदिरा परी के साथ वादप्रतिवाद करने लगी और मदिरा की बुराइयां गिन गिन कर उस की खरी बुरी की और चाय के योगदान की प्रशंसा की। दोनों परियों में झकड़ा हुआ । अंत में राजा ने बीचबचाव किया और उचित रूप से चाय और मदिरा की काम क्षमता बतायी। चाय और नमक की कहानी में प्रेमी और प्रेमिका की एक जोड़ी की कहानी बतायी गयी। दोनों जीवन काल में पति पत्नी नहीं बन सके, मृत्यु के बाद दोनों नमक और चाय के रूप में पुनर्जन्म हुआ, क्योंकि तिब्बती लोग चाय में नमक मिला कर पीते हैं, इसतरह दोनो प्रेमी और प्रेमिका रोज एक साथ रहते हैं। इस लोक कथा में तिब्बती जाति में नमक मिश्रित चाय पीने की प्रथा रोमांचक कहानी के रूप में वर्णित हुई है।
तिब्बती जाति में यह मान्यता भी है कि चाय मवेशियों को शक्ति प्रदान कर सकती है। तिब्बती किसान और चरवाहे अकसर चाय के कचरे गाय और घोड़े को खिलाते हैं । वसंतकालीन जुताई बुवाई से पहले तिब्बत के घर घर में चाय, चानपा और घी मिला कर बैल को खिलाया जाता है । कहते है कि चाय खाने के बाद बैल हल खीचने में और गतिशील और शक्तिवान हो जाता है । चरगाहों में पशु के प्रजनन् काल में घोड़े और गाय को चाय खिलाया जाने से उन के प्रजनन् की सफलता दर ऊंची है और नवजात पशु स्वस्थ और आसानी से जीवित हो सकता है।
तिब्बती जाति के जीवन और उत्पादन में चाय की बड़ी आवश्यकता है, इसलिए चाय की मांग बहुत ज्यादा है। इस के साथ साथ चाय का व्यापार भी तेजी से विकसित हुआ। चीन के विभिन्न राजवंशों की केन्द्रीय सरकार ने तिब्बती जाति के लिए चाय के उत्पादन, बिक्री, परिवहन , कर वसूली, दाम, गुणवत्ता और व्यापार की निगरानी के बारे में सिलसिलेवार कानून कायदे बनाये थे। तिब्बत से जुड़े पड़ोसी प्रांत जैसे कांसू, छिंगहाई, सछ्वान और युन्नान आदि में मशहूर चाय बाजार कायम हुए और बेशुमार तिब्बत, हान और ह्वी जाति के व्यापारी तिब्बत और अन्य क्षेत्रों के बीच चाय का व्यापार करते थे। चाय व्यापार के विकास से वहां सूती व रेशमी कपड़े, लोहे और तांबे के औजार , रोजमर्रा की वस्तु और तिब्बती औषधि, ऊन व चमड़े और सोने का व्यापार भी बढ़ गया। व्यापार की सुविधा के लिए पिछली कई सदियों के दौरान केन्द्र सरकार और तिब्बती स्थानीय सरकार ने बड़ी मानवी व भौतिक शक्ति लगाकर रास्ता बनाया। इसतरह छिंगहाई तिब्बत व्यापार रास्ता, सछ्वान तिब्बत व्यापार रास्ता और युन्नान तिब्बत व्यापार रास्ता संपन्न हुए। व्यापार के विकास से तिब्बत में अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला और वहां जड़ी बूटी की खुदाई, सोने के दोहन, चमड़ा प्रोसेसिंग और हस्त शिल्प का भी विकास हुआ।
एक हज़ार साल पहले चाय तिब्बत में आया , कालांतर में विशेषता वाली तिब्बती चाय संस्कृति उत्पन्न हुई । जाहिर है कि चाय तिब्बती जाति का अपरिहार्य पाजय ही नहीं है, बल्कि सदियों के इतिहास में तिब्बती जाति और हान जाति व अन्य अल्पसंख्यक जातियों के भौतिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान की अहम कड़ी भी है।