2009-04-08 10:52:38

आतंक विरोधी अमरीका पाक सहयोग के लिये विश्वास संकट को दूर करना जरूरी है

दोस्तो , अफगान पाक सवाल के अमरीका के नव निर्वाचित विशेष दूत होल्ब्रूक और अमरीका के चीफ ओफ स्टाफ ज्वाइंट कांफरेंस के अध्यक्ष मुल्लेन ने 6 अप्रैल को इस्लामाबाद पहुंचकर पाकिस्तान की यात्रा शुरू की और पाकिस्तान व अफगानिस्तान के प्रति अमरीका की नयी नीति पर पाक सरकारी व फौजी नेताओं के साथ वार्ताएं कीं । पाकिस्तान ने कहा कि आतंक विरोधी क्षेत्र में पाकिस्तान व अमरीका के बीच समान हित मौजूद होने के साथ साथ समान चुनौतियां भी सामने खड़ी हुई हैं । यदि दोनों देशों के बीच विश्वास का अभाव होगा , तो आतंक विरोधी संघर्ष जीतना भी मुश्किल हो जायेगा ।

यह अफगान पाक सवाल के नव निर्वाचित अमरीकी विशेष दूत व अमरीकी फौजी नेताओं के बीच साथ मिलकर पाकिस्तान की प्रथम यात्रा ही है । यात्रा के दौरान होल्ब्रूक व मल्लेन ने पाक राष्ट्रपति जरदारी , प्रधान मंत्रीय गिलानी और विदेश मंत्री कुरैशी व सेनाध्यक्ष कयानी के साथ हुई वार्ताओं में पाकिस्तान व अफगानिस्तान के प्रति नयी अमरीकी नीति पर विचारों का आदान प्रदान किया । इस के अलावा उन्हों ने पाक राष्ट्रीय असेम्बली की दूसरी बड़ी पार्टी मुसलीम लीग के नेता शरीफ से भी भेंट की और यह आशा व्यक्त की कि धार्मिक उग्रवाद के समान मुकाबले के लिये पाकिस्तान के कई प्रमुख दल एक संयुक्त सहयोग प्रणाली तैयार कर देंगे ।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि होल्ब्रूक व मल्लेन का मौजूदा पाक यात्रा का मुख्य उद्देश्य है कि पाकिस्तान व अमरीका के बीच आतंक विरोधी सहयोग को बढावा देने के लिये पाकिस्तान से आतंक विरोधी संघर्ष पर जोर देने की अपीन की जाये । सात अप्रैल को पाक विदेश मंत्री कुरैशी के साथ वार्ता के बाद आयोजित संयुक्त न्यूज ब्रीफिंग में होल्ब्रूक ने जताया कि पाकिस्तान , अफगानिस्तान और अमरीका तीनों देशों के सामने समान खतरा मौजूद तो है , पर समान हित भी हैं । अमरीका को आशा है कि विभिन्न प्रकार वाले खतरों के मुकाबले में पाकिस्तान को मदद देगा ।

जबकि कुरैशी ने बताया कि हालांकि पाकिस्तान व अमरीका के सामने आतंक विरोधी संघर्ष में समान चुनौतियां खड़ी हुई हैं , पर दोनों पक्षों के बीच विश्वास का अभाव फिर भी मौजूद है । कुरैशी ने कहा कि यदि दोनों पक्षों में आपसी विश्वास का अभाव बना रहेगा , तो आतंक विरोधी संघर्ष करना असम्भव होगा । उन्हों ने कहा कि हमारे लिये यह जरूरी है कि एक दूसरे के सम्मान व विश्वास के आधार पर साथ मिलकर कार्यवाही किया जाये । इस के अलावा और कोई चारा नहीं है ।

आतंक विरोधी संघर्ष में पाकिस्तान को अमरीका के दृढ़ मित्र के रूप में ससझा जाता है , पर लम्बे अर्से में दोनों देशों में आपसी विश्वास का अभाव रहा है , हाल ही में दोनों पक्षों में विश्वास का अभाव और बढ़ गया है ।

सर्वप्रथम अमरीका इस बात पर शंकित है कि आतंकवाद का विरोध करने में पाकिस्तानी रवैया काफी दृढ़ नहीं है । हालांकि पाक सरकार ने ओबामा सरकार की नयी नीतियों के प्रति स्वागत व्यक्त किया है , लेकिन अधिकतर पाक राजनीतिज्ञ व जनसमुदाय यह नहीं मानते हैं । काफी अधिक पाक फौजी अधिकारियों का मानना है कि भारत पाकिस्तान का मुख्य खतरा है और आतंक विरोधी संघर्ष अमरीका का मिशन मात्र ही है ।

दूसरी तरफ अमरीका ने बराबर पाक सेना और सूचना विभाग में बड़ी संख्या में तालिबान सशस्त्र शक्तियों की घूसबैठ पर आरोप लगाया है और वह इस बात पर शंकित भी है कि पाक सूचना संस्था सशस्त्र शक्तियों का सीमा पार अफगान निशानों पर प्रहार करने के लिये समर्थन करती है। पाकिस्तान ने अमरीका के उक्त आरोप को निराधार कहा ।

इस के अलावा हाल ही में अफगानिस्तान में तैनात चालक रहित अमरीकी विमानों ने उत्तर पश्चिम पाकिस्तानी कबीले क्षेत्र पर हमला तेज कर दिया , जिस से अमरीका व पाकिस्तान में अविश्वास और बढ़ गया । पाकिस्तान के भीतर अल कायदा व तालिबान के ठिकानों पर चालक रहित अमरीकी विमानों द्वारा किये गये हमलों में बेगुनाह नागरिकों समेत काफी ज्यादा व्यक्ति हताहत हुए , जिस से जनसमुदाय में क्रोध भड़क उठा ।

लोकमत का मानना है कि हालांकि अमरीका पाकिस्तान को आतंक विरोधी संघर्ष में केंद्रीय देशों में एक समझता है , पर विश्वास के संकट को दूर किये विना दोनों देशों के आतंक विरोधी संघर्ष का रास्ता हमवार नहीं होगा ।