2009-04-06 16:29:36

पुराने जमाने के भूदासों का वर्तमान सुखद जीवन

वर्ष 1959 तिब्बत के दस लाख भूदासों के लिए एक अविस्मरनीय वर्ष रहा । इसी साल में शोषण व उत्पीड़न से दलित भूदास सामंती भूदास व्यवस्था से छुटकारा पाकर तिब्बत के आप मालिक बने । तब से अब तक पचास साल हो गए। उन पुराने जमाने के भूदासों का वर्तमान जीवन कैसा है, इस की कहानी अब एक भूतपूर्व भूदास लोसांग चोदार की जबान से।

तिब्बत के लोका प्रिफेक्चर की न्येतुंग काऊंटी में एक सुन्दर गांव खसोंग अवस्थित है। श्री लोसांग इसी गांव में रहते हैं। यह क्षेत्र तिब्बत के जनवादी सुधार के पहले तिब्बत के बड़े भूदास-स्वामी सुर्खांग वांगचेन गेलेग का जागीर था। पुराने समय के दुखद जीवन की याद करते हुए श्री लोसांग ने कहाः

पुराने तिब्बत में हमारा जीवन बहुत दूभर था, रोज हमें केवल एक वक्त का खाना मिलता था। तिब्बती आहार चांबा मिलना तो बहुत मुश्किल था और घी वाली चाय पीना तो दूर । हम कर्ज अदा करने में असमर्थ थे और अकसर भूदास-स्वामी द्वारा मार पीट खाना पड़ा। विवश होकर मांबाप घरबार छोड़ कर अन्य जगह भाग गए और मुझे मठ में भिक्षु का सहारा लेना पड़ा।

वर्ष 1959 में तिब्बत में जनवादी सुधार किया गया। 26 वर्षीय लोसांग भिक्षु का जीवन त्याग कर जन्मभूमि लौटे। सरकारी कर्मचारियों ने उन के भूदास प्रमाण पत्र और श्रम अनुबंध पत्र उन के हाथों से जला दिलवाये । खसोंग गांव वासी के रूप में लोसांग ने भी इस काम में हिस्सा लियाः

उसी दिन, हमारे गांव के बहुत से लोगों ने भूदास प्रमाण पत्रों को जला दिया। हम फिर भूदास-स्वामी से पीड़ित दलित नहीं रहे, हम बड़े खुश थे।

भूदास प्रमाण पत्र और श्रम अनुबंध पत्र पुराने तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था के चिंह थे। उस समय तिब्बत की कुल जनसंख्या के 90 प्रतिशत वाले भूदासों के पास कुछ भी नहीं था,जबकि जनसंख्या के केवल पांच प्रतिशत वाले भूदास-स्वामी तिब्बत की सभी भूमि, वन पहाड़ों और अधिकांश पशुओं, कृषि साधनों और मकानों पर काबिज थे। भूमिहीन भूदासों को भूदास –स्वामियों से भाड़े पर भूमि लेकर खेती करना पड़ा और ऊंची दर के लगान और बेगार चुकाना पड़ता था। भूदास-स्वामी ऊंची सूद पर कर्ज देते थे, जिस से भूदासों पर कर्ज का भारी बोझ पीढी दर पीढी बना रहता था।

जनवादी सुधार के बाद लोसांग और घरवाले फिर भूदास-स्वामी के गुलाम नहीं रहे, वे लोका की न्येतुंग काऊंटी के खसोंग गांव के गांववासी बने, और उन में भूमि व मकान का बंटावारा हुआ, इस से गांववासियों में उत्पादन करने का बड़ा उत्साह उत्पन्न हुआ। श्री लोसांग ने कहाः

मुझे तिहाई हैक्टर का खेत, पांच बकरी और मकान मिले । अतीत में मैं पशु के साथ रहता था, अब मैं अपने मकान में रहने लगा । अपनी भूमि पर काम करने में बड़ा आनंद मिलता है। पहले साल में ही हमें 750 किलोग्राम अनाज की पैदावार प्राप्त हुई। हम ने दुधार गाय पाले और घी चाय पीने का मौका मिला और मैं ने विवाह भी किया।

लोसांग की भांति खसोंग गांव के सभी लोगों के जीवन में भारी परिवर्तन आया. 1959 में गांव की अनाज पैदावार केवल 80 हजार किलोग्राम थी, 2008 में अनाज पैदावार 8 लाख 50 किलोग्राम तक पहुंची।

तिब्बत में आर्थिक विकास के चलते खसोंग गांववासियों का जीवन अब महज खेती पर नहीं निर्भर रहता है, इधर के सालों में वे पर्यटन, परिवहन और ग्रीन हाउस में खेती जैसे नव व्यवसाय चलाने लगे और 2008 में गांव की औसत व्यक्ति आय 6300 य्वान तक पहुंची।

लोसांग के बच्चे अब बड़े होकर पैसा कमाने में माहिर बन गए। उन के पुत्र मुर्गी बत्तख पालन उद्योग करते हैं, दामाद और बेटी पर्यटन बस चलाते हैं । 2001 में लोसांग ने 300 वर्गमीटर के ईंट वाले मकान बनाये और 2008 में परिवार की शुद्ध आय 30 हजार य्वान से अधिक थी।

श्री लोसांग ने कहा कि वृद्धावस्था में वे सुखचैन का जीवन बिता रहे हैं। अब हमारा जीवन बहुत खुशहाल है, सुबह घी चाय पीते है, दोपहर का भोजन चावल और आटे की रोट्टी है। हम अमीर हुए, पर मैं हाथ पर हाथ बैठे आराम का जीवन नहीं चाहता हूं। मैं खेत और पोतों की देखभाल करता हूं । मैं अपने तीन पोतों को सब से अच्छे स्कूल में भेजना चाहता हूं।

श्री लोसांग ने कहा कि जनवादी सुधार से पहले वे सब से दूर जिस जगह पर पहुंच गये थे, वह जन्मभूमि की यालुंग नदी घाटी तक था, जनवादी सुधार के बाद वे शिकाजे और ल्हासा आदि बड़े बड़े शहर तक गए थे । अब वे चाहते हैं कि उन के पोते पेइचिंग में पढ़ने जाएं,तब वे भी पेइचिंग देखने जाएंगे।