पश्चिमी हान राजवंशकाल में चीन के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में ईलओ, फ़ूय्वी, श्येनपेइ और ऊय्वान आदि अल्पसंख्यक जातियां रहा करती थीं। वर्तमान चच्याङ, फ़ूच्येन, क्वाङतुङ और क्वाङशी के इलाकों में रहने वाली अल्पसंख्यक जातियों को पाएय्वे के नाम से पुकारा जाता था। आज के युननान और क्वेइचओ के क्षेत्रों की अल्पसंख्यक जातियां सामूहिक रूप से "दक्षिणपश्चिमी ई"कहलाती थीं। उत्तरपश्चिमी क्षेत्रों में मुख्य रूप से ती और छ्याङ आदि अल्पसंख्यक जातियां बसती थीं। ये सभी अल्पसंख्यक जातियां लम्बे अरसे से भीतरी इलाकों की जनता के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रखती आ रही थीं। उन्होंने मातृभूमि के सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए हान जाति की जनता के साथ मिलकर मेहनत से काम किया था।
बालकश झील के दक्षिण और पूर्व के क्षेत्र, अर्थात आज के शिनच्याङ के क्षेत्र, प्राचीन काल में पश्चिमी क्षेत्रों के नाम से मशहूर थे। ईसापूर्व 138 और 119 में सम्राट ऊती ने चाङ छ्येन के नेतृत्व में कान फ़ू सहित एक प्रतिनिधिमण्डल इन क्षेत्रों की यात्रा पर भेजा था, जिन में से केवल चाङ छ्येन और उनके सहायक कान फ़ू ही भाग कर जीवित लौटे थे। ये यात्राएं हान जाति और इन क्षेत्रों की जातियों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हुई थीं। तब से पश्चिमी हान सरकार पश्चिमी क्षेत्रों में अक्सर अपने दूत भेजती रही और बदले में इन क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी छाङआन आते रहे। इन क्षेत्रों से अंगूर, लहसुन, अखरोट और तिल जैसी उपजें तथा वहां का नृत्य व संगीत भीतरी इलाकों में लाया गया। इसी तरह, इन क्षेत्रों की जनता ने भी हान जाति से लोहा गलाने व कुआं खोदने की तकनीक सीखी और खेतीबारी का ज्ञान प्राप्त किया। ईसापूर्व 60(सम्राट श्वानती के शासनकाल "शनच्वे"के दूसरे वर्ष) में पश्चिमी हान सरकार ने खुनलुन पर्वतश्रृंखला के उत्तर में, थ्येनशान पर्वतश्रृंखला के दोनों ओर और दूर बालकश झील तक फैले विशाल क्षेत्र में अपना शासन चलाने के लिए बुगुर (वर्तमान शिनच्याङ के लुनथाए के नजदीक) में पश्चिमी क्षेत्र-प्रशासन की स्थापना की थी।