इस नीति कथा का अर्थ बहुत साफ है . इसे दो अर्थों में समझना चाहिए , पहले , यदि धुन बजा कर सुनाना चाहते हो , तो समझने वालों को बजाए जाए , दूसरे , यदि गाय को सुनाना चाहते हो , तो उस के समझने वाली आवाज बजायी जाए ।
क्वो यांग का मकान
बहुत पहले की बात थी , चीन के किसी जगह क्वो यांग नाम का एक व्यक्ति रहता था , वह वाक्यपटु था , हमेशा अपने पर विश्वास करता था और दूसरों की बातें नहीं मानता । एक बार क्वो यांग के घर में नया मकान बनाया जा रहा था । जब उस ने राजी से तुरंत काम शुरू करने की मांग की , तो राजी ने उसे समझाया कि अभी ठीक नहीं है , क्यों कि लकड़ी अभी पूरी तरह सूखा नहीं है , अगर गली लकड़ी पर किचड़ लगायी जाए , तो भारी भार से लकड़ी में मोड़ आएगा । नई नई काटी हुई गली लकड़ी से मकान खड़ा किया जाए , शुरूआत में वह तैयार तो बन जा सकता है , पर कुछ दिन के बाद मकान ढ़ह सकता है । राजी की बातों पर क्वो यांग ने तुरंत तर्क वितर्क कर कहा कि तुम्हारे कहने से सोचा जाए , ऐसा मकान जरूर नहीं ढ़ह जाएगा , क्यों कि समय के बीतते लकड़ी सूखा जाएगी , वह ऐर मजबूत हो जाएगी , जबकि गली मिटी सूखने के बाद हल्की हो जाएगी , तब मजबूत लकड़ी पर हल्की मिटी पड़ने से मकान कैसा ढ़ह सकता । क्वो यांग की वितर्क बातो ने राजी के मुह को बन्द कर दिया , उस ने गुस्से में आकर तुरंत काम शुरू करि दिया । नया मकान बन कर तैयार हो गया , देखने में बड़ा आलीशान भी लगा । किन्तु कुछ दिनों बाद मकान पर लगायी गई लकड़ियों में मोड़ आया , मकान भी खराब हो कर ढ़ह गया ।
कहते हैं कि वाक्यपटु लोग दूसरों के मुह को बन्द तो कर सकता है , लेकिन जब प्राकृतिक नियम का उल्लंघन कर काम करता है , तो वह जरूर विफल होता है । मकान बनाने में भी नियम होता है , उस का नहीं पालन किया जाने से मकान ढ़ह जाएगा । वैसे ही दूसरा काम करने का भी नियम होता है , उस का पालन करना चाहिए ।