तिब्बत की राजधानी ल्हासा में पूरे तिब्बत की चिकित्सा इलाज स्थिति का सबसे समुन्नत व लोगों की जुबान में सबसे अच्छा अस्पताल , तिब्बत सैन्य कमांड जनरल अस्पताल स्थित है। स्थानीय जनता दूर दूर से यहां आकर अपनी बिमारी का इलाज कराने इस अस्पताल में आते हैं। 55 वर्षीय जनरल डाक्टर ली सू ची इस सैन्य अस्पताल के महा प्रबंधक है। उनका इन्टरव्यू लेना एक आसान काम नहीं है, क्यों कि वह हमेशा अस्पताल में लोगों के इलाज में या तो व्यस्त रहते हैं या तो स्वंय किसान व चरगाह क्षेत्रों में जाकर लोगों की बिमारी का इलाज करने में संलग्न रहते हैं।
डाक्टर ली सू ची हान जाति के एक मिलिटरी जनरल डाक्टर है। 1976 में दूसरी सैन्य मेडिकल यूनीवर्सिटी से स्नातक होने के बाद वह शांगहाए के अस्पताल में काम करने के लिए भेजे गये, एक अचानक मौके ने उनके दिल में तिब्बत का नाम समा डाला। उन्होने हमें बताया उस समय एक तिब्बती मरीज के मुंह से मालूम हुआ कि तिब्बत में डाक्टरों व औषधियों की भारी कमी है, तो मैंने तिब्बत में जाकर चिकित्सा सेवा करने का आवेदन किया। तिब्बत में आने के बाद मैंने देखा तिब्बत सचमुच आर्थिक में बहुत ही पिछड़ा और यातायात में बाहर से बन्द एक जगह है, बहुत से मरीजों को अपनी बिमारी दिखाने के लिए एक अच्छी खासी जगह तक नहीं थी, मैंने अपने दिल में ठान ली कि मैं तिब्बत की सेवा करूंगा और अपनी सीखी चिकित्सा ज्ञान को पूरी तरह तिब्बत के लिए अर्पित करूंगा।
तिब्बत में आने के बाद डाक्टर ली सू ची ने पाया कि स्थानीय चिकित्सा स्थिति के पिछड़ेपन होने का कारण केवल मौजूदा साज सामान ही नहीं बल्कि लोगों की पुरानी विचारधारा भी है। डाक्टर ली सू ची ने अपनी याद ताजा करते हुए कहा कि बहुत साल पहले एक दिन बाहर जाकर रोग इलाज में उन्होने देखा कि एक लड़का तम्बू में लेटा हुआ था, ऊंचे तेवर की वजह से वह बेहोश पड़ा हुआ था, उसकी मां ने उसके चेहरे में बहुत सा घी मल रखा था, ताकि इस तरीके से भगवान की पूजा कर बच्चे की बिमारी को ठीक किया जा सके। भगवान की पूजा से रोग का इलाज कराना, डाक्टर पर विश्वास न करने की पुरानी विचारधारा , उस समय बहुत से तिब्बती क्षेत्रों में बेहद लोकप्रिय थी। इस घटना ने डाक्टर ली सू ची के दिल में चिकित्सा अनुसंधान के निश्चय को और पक्का किया।
पिछले दसेक सालों में डाक्टर ली सू ची की सर्जरी तकनीक दिनोंदिन तरक्की करती रही। पठार के प्रतिकूल मौसम पर्यावरण में उन्होने अलग अलग तौर से सिलसिलेवार उच्च कठिनाई वाले ओपरेशनों में सफलता हासिल की और इन ओपरेशनों में चीन के तीस से अधिक अव्वल करिश्मे करके दिखाए, उन्होने 80 से अधिक तिब्बत चिकित्सा स्थानों के रिक्त स्थानों को भरा है। सुश्री ली सू ची ने कहा हमने समुद्र सतह से 3700 से अधिक मीटर ऊंचे स्थान में शरीर के बाहर चक्रीय ह्रदय ओपरेशन में सफलता पाकर तिब्बत में ह्रदय का सीधा ओपरेशन न कर पाने की समस्या को हल कर दिखाया है। हमने हडडी जोड़े का परिवर्तन करने, शरीर के अन्दर के अंगो के स्थानांतरण , जैसे कि कलेजे, गुर्द आदि अंगों के स्थानांतरण ओपरेशन में भी सफलताएं हासिल की हैं, जिस से तिब्बत के चिकित्सा विकास में एक नया मोढ़ आया , तब से बहुत से मरीजों ने भगवान की पूजा के सहारे चिकित्सा इलाज का रास्ता अपनाने के बजाय अस्पतालों में अपनी बिमारी का इलाज कराना स्वीकर करना शुरू कर दिया।
अपूर्ण आंकड़ो के अनुसार, वर्तमान डाक्टर ली सू ची ने विभिन्न किस्मों के करीब 10 हजार ओपरेशन किए हैं। तिब्बत एक विशाल भूमि है , बहुत से तिब्बती बन्धुओं को अस्पतालों में बिमारी दिखाने में अनेक असुविधा अब भी मौजूद हैं। 1996 में डाक्टर ली सू ची अस्पताल के महा प्रबंधक बने, तब से उन्होने धीरे धीरे किसान व चरगाह क्षेत्रों में समय समय पर जाकर चिकित्सा सेवा प्रदान करने की व्यवस्था लागू करना शुरू किया। उनके नेतृत्व के चिकित्सा दल ने तिब्बत के लगभग सभी रास्तों व पहाड़ो व नदियों में अपने पांव के निशान छोड़े हैं, जहां उनके पांव के निशान रहे हैं वहां की जनता को अपने इलाज में उनकी चिकित्सा सेवा का आन्नद मिला है। डाक्टर ली सू ची ने हमें बताया 1996 से हम अकसर चिकित्सा दल लिए किसान व चरगाह क्षेत्रों में उपचार के लिए जाते रहे हैं, कुल मिलाकर कोई 500 दल बारी बारी भेजे गए हैं और इस की कुल लम्बाई 10 लाख से अधिक किलोमीटर बनती है, हमने स्थानीय जनता की स्वास्थ्य शिक्षा, औषधि व चिकित्सा सेवा को सीधे उनके घर तक पहुंचाने तथा रोग बचाव व उपचार सेवा प्रदान करने के लिए करीब 3 लाख चिकित्सकों को भेजा हैं, इन में एक हजार से अधिक मोतियाबिन्द मरीजों के लिए मुफ्त ओपरेशन भी शामिल हैं।
अस्पताल से बाहर दैनिक चिकित्सा सेवा के दौरान, डाक्टर ली सू ची ने अपनी चिकित्सा की माहिरता का प्रदर्शन करने के साथ लोगों के मन में चिकित्सकों के प्रति विश्वास व सम्मान को भी उजागर किया है, इन में ओपरेशनों की संख्या भी काफी उल्लेखनीय हैं। इस के साथ उन्होने तिब्बत टीवी व रेडियो स्टेशनों के लिए अनेक स्वास्थ्य ज्ञान शिक्षा मंच का भी आयोजन कर तिब्बती लोगों को चिकित्सा पर भरोसा रखने का हौसला बढ़ाया है, जिस का असर बहुत ही अच्छा रहा है।
और तो और डाक्टर ली सू ची के विचार में केवल खुद की शक्ति से किसान व चरवाहों के रोगों का इलाज कर लोगों के दुख को दूर करना पर्याप्त नहीं हैं, केवल तिब्बत के लिए बड़ी संख्या में उच्च माहिरता हासिल चिकित्सकों का प्रशिक्षण कर लगातार तिब्बतियों की सेवा करने का वास्तविक व सार्थक समाधान हो सकता है। डाक्टर ली सू ची के नेतृत्व में उनके अस्पताल ने चीन के भीतरी इलाकों के मशहूर अस्पतालों के साथ सहयोग कर सुयोग्य चिकित्सकों के प्रशिक्षण का केन्द्रों का निर्माण किया, जहां नयी पीढ़ी के तिब्बती चिकित्सकों को आने वाले दिनों में तिब्बत की चिकित्सा सेवा के लिए तैयार किया जा सके। उन्होने हमें बताया इधर के सालों में हमने अनेक कृषि व चरगाह क्षेत्रों की बुनियादी इकाईयों के लिए चिकित्सकों व नर्सों के प्रशिक्षण को सुदृढ़ किया है, विशेषकर तिब्बती चिकित्सकों व नर्सों के लिए उम्दा स्थिति प्रदान की है। अब तक हमने चार हजार से अधिक बुनियादी इकाईयों के लिए नयी पीढ़ी के चिकित्सक व नर्स तैयार किए हैं, इन में आज कुछ लोग बुनियादी इकाईयों के स्वास्थ्य केन्द्रों के नेतृत्वकारी चिकित्सक , कर्मचारी व सेवक बन गए हैं।
तिब्बत के स्वास्थ्य कार्य के उम्दा विकास के चलते स्थानीय लोगों की औसत जीवन आयु में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। तिब्बत की शान्ति मुक्ति से पहले, तिब्बती लोगों की औसत जीवन आयु केवल 37 वर्ष ही थी, जबकि आज औसय जीवन आयु 65 साल को पार कर गयी है। एक चिकित्सक होने के नाते, जब जब तिब्बत के विकास के हर दौर में अपनी भागीदारी की याद करते समय, डाक्टर ली सू ची के दिल में आन्नदपूर्ण यादों की लहर उमंग उठती हैं। डाक्टर ली सू ची ने हमें बताया कि तिब्बत में आने के कुछ दिनों में साननानची काउंटी में उनकी भेंट ताचन नाम की एक बेसहारा वृद्धा से हुई. उनके घुटने व शरीर में हडिडयों के दर्द से वह सालों से बिस्तर में अपने दिन गिनती रही हैं। उनके चिकित्सा दल के विस्तृत इलाज के बाद एक साल में ही ताचन माता जी आखिरकार फिर से अपने पैर में खड़ी हो गयी। डाक्टर ली सू ची ने भाव विभोर होकर कहा ताचन माताजी से विदा लेने के दिन बाहर भारी बर्फ गिर रही थी, लकिन ताचन माताजी द्वार पर खड़ी हाथ में एक रेशमी हाता व एक सेब लिए मेरा इन्तजार कर रही थी। मुझे देखते ही उन्होने अपने घुटने टेक कर मुझे रेशमी हाता व सेब दिया, मैंने उनको अपनी बाहों में कसकर थाम लिया, मेरी आंखो में आंसू भर गए , मैं बहुत रोया। मुझे अहसास हुआ कि तिब्बती जनता सच्चे दिल से हमें चाहती है, उनकी कठिनाईयों व दुखों को दूर करने के बाद वह आपके एहसान को कभी नहीं भूलते हैं। जन मुक्ति सेना अस्पताल का एक डाक्टर होने के नाते, मैंने निश्चय लिया है कि अपने बाकी दिनों में तन मन से जिन्दगी भर तिब्बती बन्धुओं की सेवा में अपना पूरा योगदान करता रहूंगा।