20 देश समूह के नेताओं का दूसरा वित्तीय शिखर सम्मेलन 2 तारीख को लन्दन में आयोजित हुआ। इस बार के शिखर सम्मेलन में उपस्थित नेता विश्व अर्थतंत्र के पुनरूत्थान, अन्तरराष्ट्रीय वित्त निगरानी व प्रबंधन तथा अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था के सुधार को सुदृढ़ करने आदि मुददों पर विचार विमर्श करेगें।
चीन के संबंधित विशेषज्ञों का मानना है कि चीन एक प्रफुल्लनित नवीन बाजार देशों का प्रतिनिधि होने के नाते, इस बार के शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण पात्र निभाएगा।
वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संकट निरंतर फैल रहा है, मुख्य विकसित अर्थतंत्र समुदाय एक के बाद एक करके अर्थतंत्र ह्रास में जा फंसे हैं, नवीन अर्थतंत्र समुदाय को भी गंभीर ठेस पहुंची है। संकट का निपटारा करने के लिए, चीन ने एन समय पर सिलसिलेवार आर्थिक उत्तेजित कार्यवाहियां पेश की और 2009 में अर्थतंत्र वृद्धि दर को 8 प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुंचाने की पेशकश भी की। चीनी अन्तरराष्ट्रीय सवाल अनुसंधान प्रतिष्ठान के अर्थतंत्र राजनयिक व सुरक्षा अनुसंधान केन्द्र के निदेशक च्यांग याओ छुन का मानना है कि वित्तीय संकट की गंभीर स्थिति के बावजूद भी चीन का अर्थतंत्र सतत व तेज वृद्धि बरकरार रखे हुए है, चीन 20 देश समूह के नेताओं के लन्दन शिखर सम्मेलन में अपना महत्वपूर्ण पात्र निभाएगा। उन्होने कहा वर्तमान विश्व अर्थतंत्र स्थिति को देखें तो चीन लगभग एक अपेक्षाकृत स्थिर व सतत स्थिति में है और कुछ हद तक वृद्धि बरकरार रखने वाला देश भी है, चीन तथा चार स्वर्ण ईंट देशों समेत कुछ नवीन अर्थतंत्र समुदाय इधर के दसेक सालों में अर्थतंत्र वृद्धि करते आए हैं, पूरे विश्व में उनका अर्थतंत्र स्थान निरंतर बढ़ता जा रहा है। इस लिए 20 देश समूह में चीन की भूमिका व आवाज अधिकाधिक ध्यानाकर्षण होती जा रही है।
अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का सुधार करना लन्दन शिखर सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण मुददा है। इस पर चीन ने स्पष्ट शब्दों में अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के सुधार पहलु में सार्थक प्रगति हासिल करने की आशा जतायी है, विशेषकर नवीन बाजारों व विकासशील देशों के प्रतिनिधियों की आवाज अधिकार को उन्नत करने पर बल दिया है। श्री च्यांग याओ छुन का मानना है कि चीन के इस रूख ने विकासशील देशों के पूर्ण हितों को प्रतिबिंबित किया है। उन्होने कहा मौजूदा वित्तीय व्यवस्था नियमों के निर्धारण से लेकर संचालन का पूर्ण अधिकार बुनियादी तौर से पश्चिम देशों के डिजाइन व उनके संचालन में चलता आया है, अन्ततः इस में सुधार करना अनिवार्य़ है, इस पहलु में चीन की आवाज अधिक हो या तेज हो, मेरे ख्याल में चीन ने मुख्य तौर पर विकासशील देशों के अधिकारों व हितों का प्रतिनिधित्व किया है।
व्यापार संरक्षणवाद व पूंजी निवेश संरक्षणवाद का विरोध करना भी चीन के इस बार के शिखर सम्मेलन पर रखी एक अपेक्षा है। श्री च्यांग याओ छुन का मानना है कि चीन ने स्पष्ट शब्दों में सुरक्षावाद पर विरोध जताया है, यह केवल चीन का रूख ही नहीं बल्कि अधिकतर देशों का रूख भी है। उन्होने कहा व्यापार संरक्षणवाद अर्थतंत्र के सतत व तेज विकास के दौर में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार के सामान्य संचालन को प्रभावित करने वाला एक विषैली टयूमर है, अर्थतंत्र संकट के दौर में व्यापार संरक्षणवाद, वास्तव में कहीं अधिक अर्थतंत्र के सामान्य संचालन का एक सबसे मूल प्राणघातक बाधा भी है। चीन की यह पेशकश न केवल चीन के अपने रूख को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि बहुत से विकासशील देशों यहां तक कि कुछ विकसित देशों के रूखों का भी प्रतिनिधित्व करती है।
लोगों ने ध्यान दिया है कि इस बार के शिखर सम्मेलन की पूर्वबेला में चाहे वैश्विक अर्थतंत्र के पुनरूत्थान को प्रेरित करें या अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का सुधार करें या तो संरक्षणवाद विरोध सवाल पर, चीन ने स्पष्ट शब्दों में अपना सुझाव व रूख दर्शाया है। श्री च्यांग याओ छुन का मानना है कि चीन ने इतनी स्पष्ट तेज आवाज दी है , इस में एक तरफ चीन की शक्ति के बढ़ने का कारण है, दूसरी तरफ विकासशील देशों का चीन पर रखी उम्मीदें भी इस का मुख्य कारण है। श्री च्यांग याओ छुन ने कहा सर्वप्रथम एक तरफ चीन सचमुच शक्तिशाली हो गया है, इस से पहले की पूर्ण अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के दौर में, चीन का स्थान लगभग नामोनिशान रहा है, अर्थतंत्र की शक्ति के प्रबल होने के चलते, चीन ने इस असमुचित वित्तीय व्यवस्था के सुधार पर अपनी अनेक मांगे पेश की हैं, यह एक युक्तिसंगत मांग है। इस के अलावा, दूसरा अर्थ यह है कि चीन आखिरकार विकासशील देशों का एक बड़ा अंग है, इस लिए काफी देश विशेषकर विकासशील देश आशा करते हैं कि चीन उनका प्रतिनिधित्व कर उनकी आवाज को बुलन्द करें।
परन्तु इस का मतलब यह नहीं है कि व्यापक रूप से अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था के सुधार में भाग लेने से चीन वर्तमान एक विकसित देश बन गया है, चीन हाल फिलहाल एक विकासशील देश ही है, वित्तीय संकट के आगे उसका मूल कार्य स्थिरता व मजबूती से अपने कार्य को अच्छी तरह निपटाने में सक्षम रहना है।
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