तिब्बती भाषा में झील को छ्वु कहा जाता है ।तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में छोटी बड़ी कुल 1500 से अधिक झीलें हैं , इन का कुल क्षेत्रफल 240 वर्गकिलोमीटर से अधिक है ,जो चीन की झीलों के कुल क्षेत्रफल की एक तिहाई है । तिब्बत की झीलें न सिर्फ बड़ी हैं ,बल्कि गहरी भी है । झीलों का निहित जल संसाधन प्रचुर है ।
तिब्बत की सब से बड़ी झील ना मू छ्वु है । तिब्बती भाषआ में ना मू छ्वु का मतलब पवित्र झील है ,जो बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है । ना मू छ्वु झील ल्हासा शहर की तांग शुंग काउंटी और ना छू प्रिफेक्चर की बैन ग काउंटी के बीच स्थित है ।उस की दक्षिण पूर्व में गगनचुंबी नानछिंगथांगकुला पहाड़ की मुख चोटी खड़ी है ।उस के उत्तर में अपार पठार है ।इस झील की चारों ओर विशाल घास मैदान है ।ना मू छ्वु एक विशाल दर्पण की तरह उत्तरी तिब्बत में फैली हुई है ।नीले नीले आकाश ,हरे हरे घास ,रंगबिरंगी फूल और चरवाहों के तम्बू से एक बड़ा सुंदर प्राकृतिक समा बन जाता है ।
पोताला महल
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के उत्तर पश्चिम भाग में खड़े लाल पहाड़ पर स्थित पोताला महल विश्व का समुद्रीय सतह से सब से ऊंचे स्थान पर निर्मित विशाल राज महल है ।उस का निर्माण सातवीं सदी में हुआ । पोताला महल की 13 मंजिलें हैं ,जिस का क्षेत्रफल 41 हैक्टर है । पोताला महल ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित था ।इस महल में एक हजार से अधिक कमरे व भवन हैं ।पहले दलाई लामा से 13वें दलाई लामा तक के सब पार्थिव शरीर पोताला महल में समाधिस्थ हुए हैं । उन के के लिए स्तूप बनाए गए है । हर स्तूप पर सोने के पन्ने जड़ित हैं व अत्यंत मूल्यवान रत्नों से सजा है ।पांचवें दलाई लामा का स्तूप इन में से सब से बड़ा है ,जो 14.85 मीटर ऊंचा है ।इस के सजावट के लिए कुल 1 लाख 19 हजार ल्यांग (एक किलो बीस ल्यांग के बराबर) सोने और 4000 मोतियों का प्रयोग हुआ । दलाई लामा पोताला महल में रहते थे ,धार्मिक गतिविधि चलाते थे और प्रशासनिक काम करते थे ।उन का शयन महल पोताला महल की सब से ऊंची मंजिल पर स्थित है ,जहां बहुत रोशनीदार है ।सो इसे रोशनी भवन कहा जाता है ।
वर्ष 1961 में पोताला महल चीनी केंद्रीय सरकार से राष्ट्रीय दर्जा वाले एतिहासित अवशेषों की सूची में शामिल किया गया और हर साल इस की मरम्मत के लिए केन्द्रीय सरकार विशेष धन राशि का अनुदान करती है । वर्ष1984 से वर्ष1994 तक केंद्रीय सरकार ने इस के पूर्ण जीर्णोद्धार के लिए 5 करोड 30 लाख य्वान की पूंजी लगायी ,जिस से पोताला महल और अधिक आलीशान और भव्य बन गया
2002 में केन्द्र सरकार ने फिर 17 करोड़ य्वान की राशि डाल कर पोताला महल का संपूर्ण रूप से जीर्णोद्धार करवाया, जिस से यह विश्वविख्यात महल कहीं अधिक आलीशान और भव्य हो गया है ।
जोखांग मठ
ल्हासा शहर के केन्द्र में स्थित जोखांग मठ सन् 647 निर्मित हुआ था, वह थुबो के राजा सोंगत्सान गानबू द्वारा थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ के साथ विवाह के लिए बनवाया गया था। मठ में बुद्ध भवन और सूत्र महल आदि वास्तु निर्माण हैं । बुद्ध भवन चार मंजिला है भवन की छत और छज्जे पर सोने के पानी से मुलम्मा चढ़ाया गया है ,जो देखने में अत्यन्त आलीशान और चमकदार दिखाई देता है। मठ के निर्माण में थांग राजवंश के साथ साथ भारत और नेपाल की वास्तु शैली भी अपनायी गयी थी । बुद्ध भवन के बीच आसन पर राजकुमारी वनछङ द्वारा थांग राजवंश से लायी गयी 12 साल के भगवान बुद्ध की आदमकद स्वर्ण-मूर्ति विराजमान है।मठ की गलियारों और भवन की चोरों भित्ति पर राजकुमारी वनछङ के तिब्बत में प्रवेश करने के शानदार चित्र और पौराणिक कथाओं के चित्र चित्रित हैं, जो एक हजार मीटर भी लम्बे हैं और सभी चित्र जीते जागते लगते हैं।
जाशलुनबू मठ
जाशलुनबू मठ तिब्बत के दूसरे बड़े शहर शिकाजे में स्थित है ,जिस का इतिहास पांच सौ वर्ष से ज्यादा पुराना है ।जाशलुनबू मठ पंचन लामा की धार्मिक व राजनीतिक कार्यवाहियों का केन्द्र स्थल है ।वह पहाड़ पर निर्मित है ,जिस के 50 से अधिक सूत्र भवन व 200 से ज्यादा मकान हैं ।इन में से तीस मीटर ऊंचे मैत्रेय भवन में 26.2 मीटर ऊंची बैठे हुए मैत्रेय की कांस्य प्रतिमा होती है ।यह प्रतिमा 6700 ल्यांग सोने व एक लाख 15 हजार से अधिक किलोग्राम कांस्य से बना है ।प्रतिमा पर 1400 से अधिक हीरे ,मोतियां व मणि आदि रत्न जड़े हैं ।
11 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान केन्द्र सरकार और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने फिर 60 करोड़ य्वान की राशि लगा कर जाशलुंबू मठ आदि 15 प्रमुख सांस्कृतिक अवशेषों और विभिन्न कालों के चीनी सरकारों द्वारा तिब्बत का प्रशासन करने वाले 7 ऐतिहासिक स्थलों तथा पुराने क्रांतिकारी स्थलों की मरम्मत कर संरक्षण किया ।