2009-03-31 14:26:27

मदिरा पान प्रथा

तिब्बती लोग मदिरा बहुत पसंद करते हैं। आज से 1000 साल पहले तिब्बत क्षेत्र में मदिरा बनाने का इतिहास शुरू हुआ। कालांतर में तिब्बती मदिरा संस्कृति संपन्न हुई। तिब्बती लोग स्वभाव में खुले, बहादुर और उत्साहित हैं। वे मदिरा पसंद करते हैं , पर शराबखोरी नहीं करते हैं।

प्राचीन काल में तिब्बती जाति के पास मदिरे की अनेक किस्में थीं। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार थुबो राज्य के काल में तिब्बती जाति के पास चावल मदिरा, गैहूं मदिरा, अंगूर मशराब और जौ का शराब थे । तिब्बती जाति और हान जाति के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के चलते तिब्बती जाति ने मध्य चीन के हान जाति के मदिरा उत्पादन तरीके सीखे और हान जाति के पीला मदिरे की तरह तिब्बती जौ का मदिरा बनाने में सफलता प्राप्त की ,जो तिब्बतियों में अत्यन्त लोकप्रिय है और अब तक तिब्बती जाति की मदिरा पान परंपरा बन गया है। आधुनिक काल में तिब्बती लोगों के मदिरा पान के तौर तरीके विविध हो गए । वे तिब्बती जौ के मदिरे के अलावा बियर, वॉन और विदेशी शराब भी पीते हैं। शहरों में तिब्बती युवा में बियर पान सब से पसंदीदा है।

तिब्बती बहुल क्षेत्रों में मेहमानों के सत्कार में आम तौर पर चाय पिलाया जाता है न कि मदिरा । त्यौहार और खुशी के दिवस, मेहमानों को मदिरा पिलाया जाता है । मदिरा का जाम पेश करते समय, मेजबान परंपरा के अनुसार जाम पेश करता है, मेहमान दोनों हाथों से ले जाता है और तीन घूंट लेता है ,जब मेजबान ने फिर से जाम भरा कर दिया , तो एक सांस में पूरा जाम पी लेता है। उस रस्म के बाद मेहमान अपनी मर्जी के साथ पी सकता है , नहीं भी कर सकता । उस समय मेजबान जबरन नहीं पिलाता है। यदि मेहमान चूर हुआ,तो भी मेजबान उस की हंसी नहीं उड़ाता है।

तिब्बती जाति के मदिरा पान के साधन में देगवची, प्याला और कटोरा शामिल है। तिब्बत की रूनयु काऊंटी में उत्पादित हरे जेड के मदिरा पात्र बहुत सुन्दर, पारदर्शी और सुक्ष्म है और तिब्बतियों को वे बहुत पसंद है।

मदिरा तिब्बती जाति के जीवन में अहम स्थान रखता है और बहुत से रस्म समारोह में मदिरा का पान होता है।

तिब्बती नव वर्ष के पहले दिन, भौ फटने के बाद तिब्बती गृहस्वामिनी गूड़, दुध के कचरे और अखरोट आदि आठ खाद्यान्न के साथ तिब्बती जौ का मदिरा परिवार के हर लोग के पलंग के पास रख देती है ताकि वे उठकर पी लेते है । यह इस का शुभ सूचक है कि साल के शुरू से ही घर में खुशहाली आयेगी। नव वर्ष के पहले दिन, तिब्बती लोग नया साल की बधाई देने दूसरे घर नहीं जाते हैं , वे घर में मिलन की खुशी मनाते हैं ,तिब्बती जौ का मदिरा और घी का चाय पीते हैं । दूसरे दिन से वे दूसरे घर जाते हैं और बधाई के लिए जासिगले कहते हैं और शुभसूचक तिब्बती जौ का मदिरा पेश करते हैं। सछ्वान प्रांत के चाछङ क्षेत्र में तिब्बती गांव के वासी एक साथ मिल कर मदिरा लाते और पीते हैं, यह सिलसिला पांचवें दिन तक चलता है। रात को अलाव जला कर गाना नाचना करते है और नव वर्ष की खुशियां मनाते हैं।

तिब्बती जाति में कंडील उत्सव और तिब्बती साल के छठे महीने में श्वेतन उत्सव यानी दही पान पर्व, सातवें माह में वांगक्वो उत्सव यानी शानदार फसल उत्सव और स्नान दिवस मनाये जाते हैं। इन दिनों , लोग अवश्य मदिरा पान करते हैं। इन मौकों पर सब से खुशगवार और आरामदेह मदिरा पान के दिन सछ्वान प्रांत के खांगतिंग क्षेत्र में चोथे महीने के पर्वतन परिक्रमा दिवस और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ल्हासा में गर्मियों के दिन लिनखा उद्यान की यात्रा है। इन दो दिवस में तिब्बत जाति के लोग सपरिवार या अच्छे रिश्तेदार व मित्र के साथ हरे घास या पानी के किनारे पर सफेद रंग के तंबू लगाकर नया उत्पादित जौ मदिरा और घी-चाय का आनंद लेते हैं और गपशप मारते हैं और मजे से गाना नाचना करते हैं।

तिब्बती धर्म में मदिरा का भी स्थान होता है। प्राचीन तिब्बती धर्म बोन की मान्यता है कि मरने के बाद लोग की आत्मा शरीर से निकल कर मुक्त होती है । इसलिए बोन धर्म का आत्मा स्वागत रस्म आयोजित होती है , आत्मा के स्वागत में मदिरा भेंट किया जाता है ,इस का मतलब है कि मदिरा आत्मा को आकर्षित कर सकता है । आधुनिक तिब्बती अंत्येष्टि में आत्मा स्वागत रस्म नहीं है, पर मदिरा का जाम पेश करने की रस्म बनी रहती है। तिब्बती जाति में अंत्येष्टि कर्म के व्यवसायियों को मदिरा पिलाया जाता है , कुछ क्षेत्रों में अंत्येष्टि रस्म के बाद लोग एक साथ शराब पीते हैं और गाना गा कर मृत्क की याद करते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

नाचगान तिब्बती जाति के जीवन का एक अभिन्न भाग है और मदिरा पान की संस्कृति में भी नाचगान सम्मिलित है।

मदिरा का गान तिब्बती जाति के मदिरा पान गतिविधि का एक विशेष अंक है। विवाह के समारोह में तिब्बती गांव वासी एक साथ मिल कर मेहमानों को मदिरा का जाम पेश करते हैं , जाम पेश करने के समय मेजबान जाम पेश करने का गाना गीता है । गीत के बोल उसी समय खुद सोच कर तैयार करता है ,आम तौर पर बोल स्तुति गान, आशीर्वाद और बधाई के विषय में है । गाना गाते समय शरीर भी ताल लय के साथ हिलाता है, साथ ही मदिरा को प्याले से बाहर छिटकने नहीं देता है । मेहमान भी अकसर गाने का साथ देता है और दोनों पक्ष गाते पीते बहुत उत्साहित हो जाते हैं।

नाच और गान तिब्बती लोगों के खुले और उदार स्वभाव का एक प्रतीक है । इस की बेहतर मिसाल क्वोज्वांग नृत्य करने में मिल सकती है। गांव के युवक युवती एक गोल बना कर नाचते गाते हैं, गोल के अन्दर एक मेज रखी जाती है, जिस पर कुछ तिब्बती जौ के मदिरा के कुंड रखे गए । युवक और युवती बारी बारी से गाना गाते हैं और नाचने के बीचबीच मेज पर रखे कुंड से एक प्याला मदिरा ले कर पीते हैं ,गाते नाचते और पीते हुए वे रात भर खुशी मनाते रहते हैं।

तिब्बती जाति में मदिरा पान की एक प्रथा काफी दिलचस्प है। सछवान प्रांत के आबा क्षेत्र में च्याच्यु नाम के मदिरा पान की प्रथा थी । हर साल के त्यौहार और घर में खुशी के मौके पर तिब्बती लोग दूसरों को च्याच्यु मदिरा पिलाते थे । मेहमान ने एक बड़ा कड़ाहे पर पानी उबाला और आग के पास गर्म बनाए रखने के लिए रख दिया। फिर एक कुंड का अच्छा शराब कड़ाहे के पास रखा। कुंड में बांस की दो नालियां लगायी गयी । मेहमानों के आगमन के बाद मेजबान ने एक बड़ी उम्र वाले मेहमान को कुंड के सामने बिठाया और सूत्र पाठ करवाया और ऊंगली से थोड़ा सा मदिरा चारों ओर छिड़काया । इस के बाद मेहमान ने उम्र के कम्र में बारी बारी कुंड के पास जाकर मदिरा पीया , बगल में मेजबान धीरे धीरे कड़ाहे के पानी को कुंड में डाल कर मिलाया , पानी खमीर में से कुंड के तल पर गिर जाता और शराब बन गया। बांस की नाली कुंड के तल पर लगायी गयी थी, ऐसे में मेहमान केवल मदिरा पी सकते थे । बारी बारी से पीने पर बच्चों को भी पीने का मौका मिल सकता था । यह सिलसिला चलता रहा ,जब कुंड में शराब फीका पड़ गया ,तो एक नया कुंड का मदिरा लाया जाता और फिर से पीने का सिलसिला जारी रहा। आम तौर पर तीस पचास लोग पीते थे ,कभी कभी सौ से अधिक लोग शामिल होते थे। कभी रात भर यह गतिविधि चली और कभी कभी तीन चार दिन तक जारी रही । मदिरा पान के दौरान लोग क्वोच्वांग नामक नाच करते रहे । जब तक उत्साह नहीं ठंडा पड़ा , तब तक मदिरा पान और नाचगान चलता रहा ।

सामाजिक विकास के चलते आबा क्षेत्र की तिब्बती यह मदिरा परंपरा समाप्त हो गयी है, क्योंकि इस प्रकार के मदिरा पान से स्वास्थ्य और सफाई को नुकसान पहुंचता है। और मदिरा भी ज्यादा फिजुल खर्च होता है। लेकिन मदिरा पान के साथ नाचगान तिब्बती जाति के मदिरा संस्कृति से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है और अब तक जारी रहा है और एक अनोखी विशेष पहचान बन गया है।