चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केन्द्र ने 30 तारीख को तिब्बत अर्थतंत्र व सामाजिक विकास रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में सामाजिक व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विकास स्तर आदि पहलुओं में सर्वोतोमुखी रूप से तिब्बत अर्थतंत्र के विकास की स्थिति व प्राप्त उपलब्द्धियां तथा सामने खड़ी चुनौतियों का वर्णन , विश्लेषण व सारांश किया है। रिपोर्ट का मानना है कि केन्द्रीय सरकार व मैत्रीपूर्ण प्रांतो व शहरों के भारी समर्थन तले, तिब्बत की अर्थतंत्र वृद्धि निसंदेह एक उंचे स्तर पर बरकरार रहेगी। लीजिए प्रस्तुत है इस संबंध पर एक सामयिक वार्ता।
तिब्बत अर्थतंत्र व सामाजिक विकास रिपोर्ट में कहा है कि तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार के 50 सालों में तिब्बत के विकास ने समाज के लिए बहुमत संपत्ति इकटठा की है, जिस से लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा व्यक्तिगत अधिकारों व हितों को सुनिश्चत करने की गारंटी मिली है। 1959 में लोकतांत्रिक सुधार की शुरूआत ने सामंती भूदास व्यवस्था को रदद कर दिया, सामंती उपरी स्तर वाले लोगों द्वारा अपने कब्जे में रखी भूमि आदि महत्वपूर्ण उत्पादन संसाधन व्यापक भूदासों को बांट दी गयी और उत्पादन शक्ति की तीव्र मुक्ति ने तिब्बत के अर्थतंत्र में अभूतपूर्व तेज वृद्धि उत्पन्न होने की स्थिति तैयार कर दी । तिब्बत के नागरिकों के औसत व्यक्ति का जी डी पी, औसत व्यक्तिगत जीवित उम्र तथा औसत व्यक्तिगत शैक्षिक स्तर आदि क्षेत्रों में भारी काया पलट हुआ । चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केन्द्र के प्रोफेसर चू श्याओ मिन ने जानकारी देते हुए कहा(आवाज1) चीन में स्थापित स्वायत्त प्रदेशों व अन्य प्रांतो के परिवर्तन की गहनता की बराबरी में तिब्बत का परिवर्तन सबसे गहन रहा है। वह एक सामंती भूदास समाज से सामंतीवादी समाज को पार करते हुए पूंजीवाद इतिहास के दौर को लांदते हुए सीधे समाजवादी समाज के दौर में जा पहुंचा है। इस तरह का गहन परिवर्तन तिब्बत जैसे विविध जातियों वाले तथा धार्मिक विश्वास अपेक्षाकृत विशाल होने वाले क्षेत्र में किया जाना, अपने आप में एक अदभुत मिसाल ही है और उसकी कठिनाईयां तो कहीं ज्यादा उल्लेखनीय है। केन्द्रीय सरकार के अन्य क्षेत्रों से अलग विशेष नीति के जरिए से ही तिब्बत समाज आज एक स्थिर व खुशहाली समाज की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
रिपोर्ट में कहा है कि केन्द्रीय वित्त संस्था , अन्य प्रांतो व शहरों ने जो पूंजी सहायता प्रदान की है, उससे तिब्बत के स्थानीय संसाधन की खपत व पर्यावरण के दबाव को विशेष तौर से हल्का किया गया है और उसने तिब्बत के पर्यावरण संरक्षण कार्य व पारिस्थितिकी निर्माण में विलक्षण भूमिका अदा की है। चीनी शास्त्र अनुसंधान केन्द्र के प्रोफेसर लोहरूंग दरादुल ने कहा(आवाज2) तिब्बत स्वायत्त प्रदेश तिब्बत-छिंगहाए पठार की गोद में बसा है, पारिस्थितिकी पर्यावरण का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है, पर तिब्बत का पर्यावरण काफी कमजोर है। केन्द्रीय सरकार को तिब्बत की सहायता विशेषकर केन्द्रीय वित्त संस्था व अन्य प्रांतो व शहरों द्वारा प्रदत्त सहायता तिब्बत के पर्यावरण कार्य के लिए किया गया एक सबसे बड़ा योगदान है, इतनी विशाल पूंजी सहायता होने से हमें खनिज के दोहन करने, पेड़ काटने, घास काटने की जरूरत नहीं रही है, हम केन्द्रीय वित्त संस्था की इन धनराशि से सीधे उत्पादन का विकास कर सकते हैं। ल्हासा की वायु सबसे शुद्ध ही नहीं है सबसे मीठी भी है।
हाल ही में केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत पारिस्थितिकी सुरक्षा दीवार संरक्षण व निर्माण योजना पेश की है, जिस में 20 से अधिक सालों में तिब्बत की पारिस्थितिकी सुरक्षा के लिए एक सुरक्षित दीवार का निर्माण किया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा दौर में तिब्बत के शहरों व बस्तियों के विकास की असंतुलन समस्या काफी उल्लेखनीय है, इस के साथ लोगों की गुणवत्ता के निचलेपन को घटाने , अर्थतंत्र विकास में मानव शक्ति संसाधन के अभाव की परिसीमन को मिटाने के लिए ,हमें अब भी बड़ी मेहनत करने की जरूरत है। इस पर श्री लहोरूंग दरादुल ने कहा (आवाज 3) केन्द्रीय सरकार और अन्य मैत्रीपूर्ण प्रांतो व शहरों ने अनेक अवसरों पर तिब्बत में भारी पूंजी डाली है, उनके सीधे तिब्बत को देने वाली पूंजी सहायता ने विकास के अवसर प्रदान करने के साथ अनेक रोजगार भी प्रदान किए हैं।इन अवसरों में तकनीकी क्षमता वाले लोगों की मांग को प्रोत्साहित किया है, लेकिन स्थानीय लोगों की शिक्षा गुणवत्ता व उत्पादन तकनीक क्षमता के कमजोर होने के कारण इस का लाभ अपेक्षाकृत पीछे रहा है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने दो साल पहले एक नीति पेश की थी, जिस में तिब्बत के विभिन्न निर्माण मुददों में किसानों व चरवाहों द्वारा पूरा किए जाने वाले रोजगार स्थानों को किसानों और चरवाहों को बिना किसी शर्त उन्हे सौंप देने की मांग की गयी है। सरकार की पूंजी निवेश परियोजना में तिब्बत के स्थानीय एक तिहायी किसानों व चरवाहों की भागीदारी को अनिवार्य तय किया गया है। मिसाल के लिए तिब्बत-छिंगहाए रेलवे लाइन निर्माण के दौर में स्थानीय किसानों व चरवाहों को ही रोजगारी के अवसर दिए गए थे।
रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि तिब्बत के अर्थतंत्र व सामाजिक विकास पर गत वर्ष 14 मार्च की लूटमार, तोड़फोड़ व आगजनी हिंसक घटना ने प्रभावित तो किया था, फिर भी तिब्बत पर्यटन पर अंतरिम कठिनाई आने के अलावा, अन्य उद्योगों में उसका प्रभाव इतना गंभीर नहीं रहा। आने वाले दो सालों में केन्द्रीय सरकार तिब्बत की वित्तीय सहायता को 80 अरब य्वान तक पहुंचा देगी। इतनी बड़ी धनराशि की शक्ति के अन्तर्गत , हमें विश्वास है कि तिब्बत की अर्थतंत्र वृद्धि निसंदेह एक उंचे स्तर पर बनी रहेगी।