2009-03-30 11:32:30

चीनी तिब्बतविद मंडल स्वीटजर्लैंड में

चीनी तिब्बतविद्या अध्ययन केन्द्र के चार तिब्बतविदों से गठित प्रतिनिधि मंडल ने 29 मार्च को स्वीटजरलैंड के जुरिक शहर में स्थानीय चीनियों और प्रवासी चीनियों के साथ बैठक बुलायी, जिस में तिब्बत के बारे में कुछ सवालों की मीमांसा की गयी है ।
   चीनी तिब्बतविद प्रतिनिधि मंडल और स्थानीय चीनियों की बैठक स्वीटजर्लेंड के जुरिक शहर में स्थित चीनी कौंसुलट में आयोजित हुई, कुल 20 से ज्यादा स्थानीय चीनियों व वहां पढ़ रहे चीनी छात्रों के प्रतिनिधियों ने बैठक में हिस्सा लिया। जुरिक स्थित चीनी जनरल कौंसुलर श्री ली शाओ सी ने बैठक की अध्यक्षता करते हुए चीनी तिब्बतविद प्रतिनिधि मंडल का स्वागत किया और कहाः
   पिछले साल से लेकर अब तक विदेशों में रहे रहे चीनियों में तिब्बत के बारे में और ज्यादा जानकारी मिली है, फिर भी वे तिब्बत के कुछ ठोस सवालों के बारे में तिब्बतविदों के साथ और अधिक विचारों का आदान प्रदान करना चाहते हैं।
   यह सच है कि तिब्बत सवाल व्यापक लोगों का ध्यानाकर्षण केन्द्र रहा है और स्वीटजरलैंड में रहने वाले चीनी लोगों और प्रवासी चीनियों को तिब्बत की वर्तमान स्थिति में गहरी रूचि हुई है । उन के सवालों का जवाब देते हुए तिब्बती विद्वान डाक्टर तांजेन लुंदुप ने सर्वप्रथम तिब्बत में आए भारी परिवर्तन पर अपना अनुभव बतायाः
   मेरे विचार में तिब्बत में सब से ज्यादा परिवर्तन चीन में सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद 30 सालों के भीतर हुआ है। पिछले 30 सालों में तिब्बत का कायापलट हो गया । बेशक तिब्बत का यह विकास मुश्किल से प्राप्त हुआ है । प्राकृतिक स्थिति के अलावा अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक खलल भी मौजूद है । चीन सरकार को साफ साफ पता है कि तिब्बत के विकास के लिए कुंजीभूत कड़ी तिब्बक के आर्थिक विकास को बखूबी अंजाम देना है। अब तिब्बत में आर्थिक विकास हुआ, जनजीवन उन्नत हो गया, शिक्षा स्तर बढ़ गया, सांस्कृतिक गुणवत्ता उन्नत हुई और बुनियादी सुविधा भी सुधर गयी है।
   बैठक में किसी ने पूछा कि जब विदेशियों के साथ तिब्बत के विकास की चर्चा हुई, तो बहुत से विदेशियों ने कहा कि तिब्बतियों की जीवन-परंपरा नहीं बदली जानी चाहिए। इस पर डाक्टर तांजेन लुंदुप ने कहाः
   मेरे विचार में तिब्बत की परंपराओं और आधुनिकीकरण के बीच विरोधाभ्यास नहीं है। तिब्बती लोगों को आधुनिक विकास का उपभोग करने का अधिकार है । खुले अर्थ बाजार के सामने तिब्बतियों ने भी उस में हिस्सा लिया, उदाहरणार्थ 2006 में छिंगहाई तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू होने के बाद ल्हासा में ही 76 निजी होटल खोले गए, जो सभी तिब्बतियों द्वारा निर्मित हुए हैं । वे मौके और बाजार का लाभ उठाना चाहते हैं।
    तिब्बती अलगाववादियों द्वारा प्रसारित तिब्बती संस्कृति का विनाश वाली दलील का डाक्टर तांजेन ने तथ्य पेश कर खंडन कियाः
   चंद कुछ लोगों का कहना था कि तिब्बती संस्कृति का विनाश होगा। मेरा कहना है कि वह नष्ट नहीं हो सकेगी। क्योंकि तिब्बत की 80 प्रतिशत जनसंख्या किसान है, तिब्बती परंपरागत संस्कृति का आधार ग्रामीण व चरगाह क्षेत्रों में मजूबत है । इस के अलावा तिब्बत में अब 1700 से ज्यादा मठ हैं । और तो और चीन में तिब्बत विद्या अध्ययन केन्द्रों में 2000 से ज्यादा और 50 से ज्यादा संस्थाएं तिब्बती संस्कृति का अध्ययन करते हैं । पिछले 30 सालों में सरकार ने तिब्बती महा काव्य गैसर के संरक्षण में भारी रकम की पूंजी लगायी है, जबकि पुराने जमाने में इस पर किसी का ध्यान भी नहीं गया था। अब तिब्बत में तिब्बती भाषा में टीवी, रेडियो, इंटरनेट और कम्प्यूटर से काम करने की सभी व्यवस्थाएं कायम हुई हैं।
   तिब्बत के बारे में कुछ विदेशियों के दुराग्रह पर डाक्टर तांजेन ने कहा कि हम तिब्बत की प्रकृति व संस्कृति का संरक्षण करते हैं, तो कुछ विदेशी लोग कहते हैं कि तिब्बत का विकास नहीं हुआ और वह पिछड़ा है। जब तिब्बत का विकास किया गया, तो वे कहते हैं कि तिब्बत का रंग बदल गया है। एक शब्द में वे लोग हमेशा नुकताचीन करते रहते हैं।
  बैठक में उपस्थित सभी प्रवासी चीनियों और चीनी मूल के लोगों ने तिब्बती विदों के व्याख्या पर संतोष प्रकट किया । स्वीटजरलैंड संघीय साइंस व उद्योग विश्वविद्यालय की जुरिक शाखा के शिक्षक डाक्टर वु ह्वा ने कहा कि तिब्बती विद्वानों का व्याख्या बहुत फायदामंद है । प्रवासी चीनियों के अलावा अन्य स्थानीय लोगों को उन का व्याख्या सुनने आना चाहिए। मुझे लगा कि इस प्रकार की बैठक बहुत अच्छी है,ज्यादा से ज्यादा ऐसी गतिविधि करनी चाहिए।       
 

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