हाल में सी.आर.आई के हिन्दी विभाग के संवाददाता राकेश वत्स की मुलाकात प्रोफैसर की च्यायोंग छुंगपेइ से हुई ।
राकेश: अब तिब्बत में तेजी से आधुनिकीकरण की हवा बह रही है । आप के विचार में आधुनिकता व परंपरागत संस्कृति के बीच कैसा संबंध है?और तिब्बती जनता अपनी परंपरागत संस्कृति को कैसे देखती है?
प्रोफ़ेसर:तिब्बती जाति एक ऐसी जाति है, जो शिक्षा व संस्कृति पर बड़ा ध्यान देती है। तिब्बती बौद्ध धर्म में लोगों ने लामा को पहले स्थान पर रखा है। यहां तक कि लामा का स्थान बुद्ध से ज्यादा ऊंचा है। ऐसा क्यों?क्योंकि लामा का मतलब शिक्षक या गुरू है। हालांकि बौद्ध धर्म शाक्यामुनि के द्वारा स्थापित किया गया है, लेकिन धर्म से जुड़ा सभी ज्ञान लामा ने हमें दिया है। इसलिये तिब्बती लोग लामा को पहले स्थान पर रखते हैं। और वे संस्कृति व शिक्षा को बड़ा महत्व देते हैं। आधुनिकीकरण व परंपरागत संस्कृति के संबंध के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि बेशक आधुनिक विकास ने परंपरागत संस्कृति को टक्कर दी है। लेकिन यह प्रभाव व टक्कर केवल तिब्बत के सामने मौजूद नहीं है। चीन की अन्य अल्पसंख्यक जातियों के सामने भी है। और वह केवल चीन का सवाल नहीं है, जापान व कोरिया गणराज्य जैसे अन्य देशों का सवाल भी है। हर देश अपनी श्रेष्ठ परंपरागत संस्कृति की रक्षा व विकास के लिये उपाय ढूंढ़ने व कदम उठाने की पूरी कोशिश कर रहा है। इसलिये यह सभी लोगों का सवाल है, केवल तिब्बत का ही नहीं।
दूसरी तरफ़ आधुनिकीकरण के विकास ने तिब्बत की परंपरागत संस्कृति के प्रसार-प्रचार व विकास को भी बढ़ाया है। उदाहरण के लिये पहले समय में मुद्रण तकनीक पिछड़ी होने के कारण पुस्तकें बहुत भारी होती थीं, लेकिन अब वह इतनी हल्की हैं कि हैंड बैग में भी रखी जा सकती हैं। और पिछले समय में पुस्तकों का दाम बहुत महंगा था, लेकिन अब वे काफ़ी सस्ती हैं, और हर व्यक्ति इसे खरीद सकता है। अब लोगों को संग्रहालय या पुस्तकालय में जाने की ज़रूरत नहीं है, वे केवल घर में इन्टरनेट पर ही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये सूचना व मीडिया के विकास ने सचमुच संस्कृति के प्रसार-प्रचार व विकास के लिये बड़ी भूमिका अदा की है।
राकेश: एक तिब्बती जातीय संगीत के अनुसंधानकर्ता के रूप में भी आप ज़रूर अक्सर तिब्बत जाते होंगे। हर बार जब आप तिब्बत जाते हैं, तो आप को कैसा लगता है?
प्रोफ़ेसर:मैंने कई बार तिब्बत की यात्रा की है। मुझे लगता है कि तिब्बत में बड़ा बदलाव हुआ है। चीन में सुधार व खुलेपन की नीति लागू की जाने के बाद समाज स्थिर है, अर्थतंत्र समृद्ध है। मेरी स्मृति में सब से यादगार बात यह है कि वर्ष 2000 में मैंने अपनी मां के साथ ल्हासा का दौरा किया। मेरी मां ने कहा कि पोताला महल के अलावा ल्हासा की सभी जगहें बदल गयीं हैं। पहले की सभी झोपड़ियां मिट गयीं। और तिब्बती लोगों की मेज़ पर खाद्य-पदार्थों की किस्में भी बढ़ गयीं। सर्दी के दिनों में भी तिब्बती लोग सब्जियां व फल खा सकते हैं। यहां तक कि दूर दूराज की जगहों में रहने वाले चरवाहे भी मोटरसाइकिल से गांव या कस्बे में जाकर सब्जियां व फल खरीदते हैं।
राकेश: अंत में और एक सवाल है। क्या आप को हान जाति व अन्य जातियों के साथियों या दोस्तों के साथ रहने के दौरान कोई असाधारण अनुभव हुआ है?
प्रोफ़ेसर:मैंने पेइचिंग में बहुत साल काम किया है। हमारी यूनिवर्सिटी में भी अल्पसंख्यक जाति के अध्यापक व विद्यार्थी बहुत हैं। हम मेल-मिलाप से काम करते हैं और रहते हैं। कोई जातीय बाधा या भेदभाव नहीं है। और हान जाति के बहुत से मित्र हमारे तिब्बती विद्यार्थियों की पढ़ाई व आम जीवन की स्थिति पर बड़ा ध्यान देते हैं। एक बार मेरी कक्षा में एक ऐसा तिब्बती विद्यार्थी था, जो बहुत गरीब था। जब मैंने उस की स्थिति एक हान जाति के मित्र को बतायी, तो ठीक उस समय से उस हान जाति के मेरे इस मित्र ने इस तिब्बती विद्यार्थी को नियमित रूप से पैसे देकर उस की सहायता करनी शुरु की। और अभी तक उन्होंने अपना नाम उस तिब्बती विद्यार्थी को नहीं बताया, और वे बताएंगे भी नहीं । यह बात बहुत प्रभावशाली है।