कृषि का विकास उल्लेखनीय था। खेतीबारी में बैलों और लोहे के औजारों का और व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता था। वर्तमान ल्याओनिङ, कानसू, हूनान और सछ्वान आदि प्रान्तों या इनसे भी दूरस्थ इलाकों में खुदाई से प्राप्त पश्चिमी हान राजवंशकाल के लोहे के कृषि-औजारों से इस बात की पुष्टि होती है। लोहे के अनेक नए कृषि-औजारों का आविष्कार भी किया गया। ऊती के काल में, रसद-सप्लाई के इनचार्ज सेनापति चाओ क्वो ने दो बैलों से खींचे जाने वाले हल और बुवाई के औजार का आविष्कार किया था। उसने फसलों के हेरफेर (क्राप रोटेशन) का उन्नत तरीका भी प्रचलित किया, जिससे न सिर्फ़ पौधों के भरपूर पनपने में बल्कि भूमि के उपजाऊपन को बनाए रखने में भी काफी मदद मिली। बड़े पैमाने पर जल-संरक्षण परियोजनाओं का निर्माण करने और परती जमीन को खेतीयोग्य बनाने के फलस्वरूप कृषि का अभूतपूर्व विकास हुआ और अनाज की पैदावार में भारी बढ़ोतरी हुई। उस काल की"फ़ान शङचि की पुस्तक"में खेतीबारी के अनुभवों का निचोड़ निकालकर तब तक के कृषि के विकास का उल्लेख किया गया है।
पश्चिमी हान काल में दस्तकारी उद्योग का भी बहुत विकास हुआ था। लोहा गलाने के उद्योग का पैमाना काफी बड़ा हो गया था। कृषि या अन्य क्षेत्रों में काम आने वाले औजारों और हथियारों की किस्मों व उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ उनकी क्वालिटी में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ। नमक उद्योग दिनोंदिन पनपने लगा। रेशम की कताई, बुनाई और रंगाई में नई-नई तकनीकों का आविष्कार हुआ। उस समय तक ब्रोकेड बनाने के तरीके में भी महारत हासिल की जा चुकी थी। छाङशा शहर के मावाङत्वेइ नामक स्थान पर एक हान कब्र की खुदाई से पश्चिमी हान राजवंश के आरम्भिक काल की एक सौ से अधिक रेशमी चीजें प्रापित हुई हैं, जो बड़ी सुन्दर और बारीक काम वाली हैं। इन में जाली का एक वस्त्र भी है, जो पतंगे के पंख की तरह बहुत ही पतला है और जिस का वजन एक ल्याङ (पचास ग्राम) से भी कम है। लिनचि और छङतू उस समय के प्रमुख बुनाई-केन्द्र थे।