2009-03-26 15:08:48

तिब्बती जाति के पहले संगीत-शास्त्र पी.एच.डी. प्रोफ़ेसर च्यायोंग छुंगपेइ

चीनी केंद्र जातीय यूनिवर्सिटी में एक तिब्बती जाति के संगीत प्रोफ़ेसर है, उन का नाम है च्या योंग छुंग पेइ । वे तिब्बती जाति के पहले संगीत-शास्त्र पी.एच.डी. हैं, और वे पी.एच.डी के मार्गदर्शक भी हैं। हाल में हमारे संवाददाता राकेश वत्स की मुलाकात प्रोफैसर की च्यायोंग छुंगपेइ से हुई ।

राकेश: नमस्कार, प्रोफ़ेसर च्या योंग छुंग पेइ। मैंने आप के बारे में सुना है इस लिए मुझे आप के जीवन के बारे में जानने की बड़ी रुचि है। क्या आप हमें बता सकते हैं कि कैसे एक साधारण परिवार में जन्म ले कर केंद्रीय जातीय यूनिवर्सिटी के एक प्रसिद्ध संगीत-शास्त्र के प्रोफ़ेसर बनने तक का आप का सफर कैसे तय हुआ?

प्रोफ़ेसर:मैं एक तिब्बती हूं। अब मैं केंद्रीय जातीय यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हूं। मेरा जन्म छिंगहाए प्रांत के यूशू तिब्बती जाति के स्वायत्त क्षेत्र में हुआ था। मेरी मां चरवाहागिरी का काम करती है। जब मैं छोटा ही था कि मेरे पिता का देहांत हो गया। उस समय घर में बहुत गरीबी थी। मेरी मा ने जी-तोड़ मेहनत करके घर चलाया और मेरी परवरिश की। मां ने मुझे स्कूल भेजा। क्योंकि वे चाहती थीं कि बड़ा हो कर मैं एक योग्य आदमी बनूं। उस समय सरकार ने भी किसानों व चरवाहों के बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। स्कूल में सभी कुछ निःशुल्क था। मैं अक्सर यह सोचता हूं कि अगर सरकार ने पढ़ने की सुविधा न दी होती तो योग्य होने के बावजूद मैं शायद यह उपलब्धि प्राप्त न कर सकता । बाद में मुझे कला कार्यकर्ता संघ में शामिल होने का मौका मिला। वहां मैंने कई साल संगीत सीखा। इस के बाद मैंने परीक्षा देकर केंद्र जातीय यूनिवर्सिटी में प्रवेश किया । इस यूनिवर्सिटी में मैंने अपने जीवन के बेहतरीन चार साल बिताए। स्नातक होने के बाद मैंने शांघाई संगीत कॉलेज में तीन साल तक संगीत सीखा, और केंद्र संगीत कॉलेज से एम.ए. व पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। मैं तिब्बती जाति का पहला संगीत-शास्त्र में पी.एच.डी. हूं, और पी.एच.डी का पहला तिब्बती जाति का मार्गदर्शक भी हूं। अब मैं केंद्र जातीय यूनिवर्सिटी में चीन की अल्पसंख्यक जाति के संगीत का अनुसंधान करता हूं। नौकरी मिलने के बाद मेरे घर की आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार हुआ। और आठवें दशक के मध्य में सरकार ने मेरी मां जैसे चरवाहों को पेंशन देनी शुरु की। अब हमारे जीवन में पिछले समय की अपेक्षा ज़मीन आसमान का अंतर आ गया है । मेरी मां ने कहा था कि अब हमारा जीवन स्तर पहले समय के जमीदारों व गुलाम रखने वालों के जीवन से भी ज्यादा अच्छा है।

राकेश:अभी-अभी आपने तिब्बती बच्चों के स्कूल जाने की चर्चा की। तो मेरा एक सवाल है:क्या तिब्बती विद्यार्थी स्कूल में चीनी भाषा की पढ़ाई करते हैं?और क्या वे चीनी भाषा पढ़ने के कारण अपनी जातीय भाषा भूल नहीं जाएंगे?

प्रोफ़ेसर:बच्चों को तिब्बती भाषा कैसे भूल जाएगी?क्योंकि सारे समाज का वातावरण व सांस्कृतिक वातावरण तो तिब्बती भाषा का है। जब मैं प्राइमरी स्कूल में था, तो स्कूल में दो भाषाओं वाला फार्मूला लागू था। हम तिब्बती भाषा नहीं भूले , बल्कि हमारे हान जाति के सहपाठी भी अंत में तिब्बती भाषा में अच्छी तरह से बातचीत कर सकते थे। अब हमारे स्कूल में अंग्रेज़ी भी पढ़ाई जा रही है। उदाहरण के लिये जब मैं केंद्र जातीय यूनिवर्सिटी के तिब्बती शास्त्र के अनुसंधान प्रतिष्ठान में पढ़ाता था तो नए प्रवेश लेने वाले तिब्बती विद्यार्थियों की चीनी व अंग्रेज़ी इतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन यूनिवर्सिटी में चार साल की पढ़ाई के बाद स्नातक होने के समय उन्हें तिब्बती, चीनी व अंग्रेज़ी तीनों भाषाएं खूब आती हैं। इसलिये रोज़गार ढूंढ़ने व उच्च स्तरीय पढ़ाई करने में उन की प्रतिस्पर्द्धा शक्ति बहुत मज़बूत है। अल्पसंख्यक जाति के क्षेत्र से आए अल्पसंख्यक जाति के विद्यार्थियों के प्रति देश ने बहुत उदार नीति अपनायी है। जैसे हमारे संगीत कॉलेज में पी.एच.डी. की प्रवेश परीक्षा में विद्यार्थियों को अपनी जातीय भाषा में परीक्षा देने की अनुमति भी दी गयी है। यह अल्पसंख्यक जाति के विद्यार्थियों के लिये बहुत न्यायपूर्ण व निष्पक्ष है। साथ ही अल्पसंख्यक जाति के विद्यार्थियों के जातीय परंपरागत संगीत का अनुसंधान करना यह अनुसंधान के लिये भी लाभदायक है।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याओ थांग)