61 वर्षीय कलचांग यश एक मशहूर तिब्बतविद हैं । वे अभी-अभी तिब्बती प्रकाशनशाला के निदेशक के पद से सेवा निवृत हुए हैं ,पर उन्होंने तिब्बती संस्कृति के शोध को नहीं छोडा है और दिन भर व्यस्त रहते हैं । इस जनवरी के एक दिन तिब्बती समाज विज्ञान अकादमी के एक आफिस में हमारे संवाददाता ने कलचांग यश के साथ एक साक्षात्कार किया । कलचांग यश ने बताया कि वे आजीवन तिब्बती संस्कृति के अध्ययन में जुटे रहे हैं ,इसलिए उस से अलग नहीं हो सकते । उन को लगता है कि बहुत काम किया जाना बाकी है ।
कलचांग यश का जन्म वर्ष 1948 में ल्हासा के उपनगर में तुए लोंग द छिंग काउंटी के एक छोटे से गांव में हुआ । जब वे बहुत छोटे थे ,तो उन के माता पिता का देहांत हो गया । दादी ने उन को पाला पोसा । शुरु से ही उन का परिवार जमीनदारों के लिए खेती करता आया है यानि वे भूदास की संतान हैं। उन्हें याद है कि उस समय दादी को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी और उन के घर में कोई खास चीज नहीं थी ।
पुराने तिब्बत की भूदास व्यवस्था की चर्चा करते हुए कलचांग य़श ने हमारे संवाददाता को बताया ,पुराने तिब्बत में लगभग 50 कानून ग्रंथ थे ,जिन में दो कानून ग्रंथ यानि तेरह कानूनी ग्रंथ और सोलह कानूनी ग्रंथ कई सौ वर्षों से प्रचलित हैं ।इन दोनों कानून ग्रंथ में ऐसी धारा है कि मानव वंशपरंपरा व पद के मुताबिक तीन वर्गों की 9 श्रेणियों में बांटा जाता है ।उच्च वर्ग में कुलीन ,जीवित बुद्ध ,वरिष्ठ लामा व तिब्बत सरकार के अधिकारी शामिल थे ।उन लोगों के एजेंट मध्य वर्ग में थे ।बाकी सभी लोग निम्न वर्ग के थे ।पुराने तिब्बत में भूदास साधन की तरह थे ।
वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार लागू हुआ और सामंती भूदासी व्यवस्था का अंत हुआ ।वास्तव में वर्ष 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद ही तिब्बत में बदलाव आने लगा था ।इस दौरान कलचांग यश के लिए सब से महत्वपूर्ण बात यही थी कि उन्हें स्कूल जाने का मौका मिला ।उन्होंने बताया ,तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले तिब्बत में शिक्षा कार्य बहुत पिछडा हुआ था ।भूदासों के बच्चे स्कूल जाने से वंचित ही रह जाते थे ।1958 में मैं सरकारी स्कूल ल्हासा म्युनिसिपल नंबर दो प्राइमरी स्कूल में दाखिल हुआ । इस स्कूल में खाना-पीना ,कपडे ,पुस्तकों समेत सभी चीजों का खर्च सरकार करती थी ।
मीडिल स्कूल पूरा करने के बाद कलचांग यश पेइचिंग स्थित केंद्रीय जातीय विश्वविद्याल में चीनी भाषा से तिब्बती भाषा का अनुवाद सीखने लगे ।वर्ष 1978 में कलचांग यश ने चीनी समाज अकादमी में पुराने तिब्बती ग्रंथ शास्त्र में एम ए कर लिया ,और इस प्रकार तिब्बत के इतिहास में प्रथम जत्थे के एम ए करने वालों में से एक बन गए ।एम ए पूरा करने के बाद कलचांग यश ने तिब्बती समाज अकादमी में काम करना शुरू किया।
तिब्बती समाज अकादमी में कलचांग यश ने तिब्बती जाति के पुराने ग्रंथों के अध्ययन में पूरी शक्ति लगा दी ।उन्होंने लगातार तिब्बती जाति के साहित्य इतिहास में नया अध्याय ,तिब्बती साहित्य के तरीके जैसे सिलसिलेवार शोध आलेख लिखे।उन्होंने तिब्बती इतिहास जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकों के लेखन व अनुवाद में भी भाग लिया ।उन्होंने हमारे संवाददाता को बताया कि जब तक समाज अकादमी में महत्वपूर्ण शोध मुद्दा होता था ,तो वे सक्रियता से इस में भाग लेते थे ।
पुरानी तिब्बती पुस्तकें बचाने व इन का प्रचार करने के लिए तिब्बती स्वायत्त
प्रदेश ने पिछली सदी के 80 वाले दशक में पुरानी पुस्तक प्रकाशशाला की स्थापना की ,जिस का मुख्य काम पुरानी पुस्तकों को प्रकाशित करना है ।वर्ष 2003 में कलचांग य़श इस प्रकाशनशाला के निदेशक बन गये ।कई वर्षों तक वे एक तरफ पुरानी तिब्बती पुस्तकों का अध्ययन व अनुवाद करते थे ,दूसरी तरफ मूल्यवान ऐतिहासिक दस्तावेजों व पुस्तकों के संग्रह में लगे हुए थे । इस की चर्चा करते हुए कलचांग यश ने कहा कि वे इस पर गर्व करते हैं ,क्योंकि उन्होंने तिब्ब्ती संस्कृति कार्य के लिए अपनी पूरी कोशिश की है ।उन्होंने कहा ,हमारे प्रकाशनशाला ने बर्फीले इलाके नामक श्रंखला पुस्तकें प्रकाशित की हैं ।इस श्रंखला में लगभग पचास मूल्यवान पुस्तकें हैं । इन पुस्तकों का अंतरराष्ट्रीय तिब्बतशोध जगत ने खासा स्वागत किया है ।अमरीकी कांग्रेस पुस्तकालय ने भी इन पुस्तकों को खरीदा है ।जापान ,ब्रिटेन ,नौर्वे जैसे अनेक देशों ने हमारी पुस्तकें खरीदी हैं ।
कलचांग यश ने कहा कि वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार होने के बाद केंद्रीय सरकार ने तिब्बती संस्कृति के संरक्षण को बडा महत्व दिया है ।इधर कुछ वर्षों में केंद्रीय सरकार ने इस क्षेत्र में पूंजी निवेश बढा दिया है।तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों के मशहूर प्राचीन स्थलों व गैर भौतिक सांस्कृतिक विराहतों का अच्छी तरह संरक्षण किया गया है।हमारे संवाददाता के साथ हुए साक्षात्कार में उन्होंने खास तौर पर मशहूर तिब्बती महाकाव्य राजा गैसर का उल्लेख किया ।उन्होंने कहा ,पुराने तिब्बत में स्थानीय सरकार ने गैसर पर ध्यान नहीं दिया था और इस का संग्रह करने की क्षमता भी नहीं थी ।उस समय तिब्बत का शिक्षा कार्य बहुत पिछडा हुआ था और गैसर को बचाने की संभावना नहीं थी ।
ध्यान रहे राजा गैसर विश्व में सब से लंबा महाकाव्य है ,जिस का इतिहास एक हजार वर्ष से लंबा है । लेकिन ऐतिहासिक पुस्तकों में इस का बहुत कम उल्लेख किया गया है ,वह मौखिक रूप से प्रचलित है ।कलचांग यश के अनुसार तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में गैसर सुनाने वाले लोक कलाकार चालीस से अधिक हैं । तिब्बती सामाजिक अकादमी ने 1970 वाले दशक से लोक कलाकारों के साथ सहयोग कर गैसर की रिकार्डिंग शुरू की ।उन्होंने वरिष्ठ कलाकार सांग चू द्वारा सुनायी गयी कहानी के मुताबिक तीसेक राजा गैसर की संग्रह पुस्तकें प्रकाशित कीं ।कलचांग यश की नजर में राजा गैसर महाकाव्य के संग्रह का प्रकाशन तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के लिए एक बडा योगदान है ।
अब चीन में तिब्बत शास्त्र का अध्ययन करने वाली संस्थाओं की संख्या 50 से अधिक है और अनुसंधानकर्ता 2000 से अधिक हैं और शोध पत्रिकाएं दसेक हैं ।कलचांग यश ने अनेक बार विदेश जाकर तिब्बत के अध्ययन के बारे में विदेशी अनुसंधानकर्ताओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया ।उन के लिए बडी खुशी की बात है कि अधिकाधिक लोग तिब्बत का अध्ययन करने लगे हैं और बहुत श्रेष्ठ शोध उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं ।इस के अलावा तिब्बत शास्त्र पर अंतरराष्ट्रीय आवा जाही बढने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय तिब्बत शास्त्र जगत में चीनी तिब्बतविदों का स्थान उन्नत हो रहा है ।उन्होंने हमारे संवाददाता को बताया ,तिब्बत शास्त्र का होमटाउन चीन का तिब्बत है ।पर पहले अंतरराष्ट्रीय तिब्बत शास्त्र संघ में हमारा स्थान नहीं था ।अब स्थिति बदल गयी है ।हम अंतरराष्ट्रीय तिब्बत शास्त्र संघ के परिषद के सदस्य हैं ।जब वे अंतरराष्ट्रीय तिब्बत शास्त्र शोध बैठक बुलाते हैं ,तो वे जरूर चीनी तिब्बतविदों को आमंत्रित करते हैं।
निर्वासित दलाई लामा अक्सर तिब्बती संस्कृति के अंत के बहाने से लोगों को भ्रमित करते हैं ।इस के बारे में कलचांग यश ने बताया कि पश्चिमी देश अपनी अपनी संस्कृति को बडा महत्व देते हैं ।उन की रुचि पूरी करने के लिए दलाई लामा ऐसी बात करते हैं ताकि पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त कर अपना राजनीतिक लक्ष्य पूरा कर सकें । कलचांग यश ने कहा ,हमारा जन्म यहीं हुआ ।हम ने तिब्बत में आए बदलाव को अपनी आंखों से देखा है।कहा जा सकता है कि तिब्बती संस्कृति का अभूतपूर्व विकास व समृद्धि हुई है ।