2009-03-25 17:34:25

तिब्बत भिक्षुओं के जीवन में आये बदलाव

दोस्तो , तिब्बती बौद्ध लामा धर्म के भिक्षु एक अगल जनसमुदाय हैं । हजारों वर्षों में पीढ़ी दर पीढ़ी भिक्षु सांसारिक जीवन से वंचित होकर प्राचीन मठों में बौद्ध सूत्र पढ़ते आये हैं । उन्हों ने तिब्बत के राजनीतिक , आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों पर काफी बड़ा प्रभाव डाल दिया है । तो 1959 में तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक शासन सहित व्यवस्था को रद्द किये जाने के बाद इन भिक्षुओं के जीवन में क्या क्या बदलाव आये हैं  ।

तिब्बत के शिकाजे में अवस्थित ताशिलुन्पो मठ में भिक्षु सुबह साढ़े पांच बजे उठकर तीन घंटे के सूत्र सुनाने में लग जाते हैं । 69 वर्ष के लामा त्सेरिंग डोर्जे अपनी दस उम्र से ही ताशिलुन्पो मठ आने के बाद करीब हर सुबह इसी तरह सूत्र सुनाते व्यतीत करते हैं ।

ताशिलुन्पो मठ चौथे पंचन के बाद के कई पीढियों के पंचनों का तीर्थ स्थल रहा है । पिछले 50 सालों में इस मठ में पांच हजार से अधिक भिक्षु इकट्ठे हुए हैं । त्सेरिंग डोर्जे ने याद करते हुए कहा जब मैं इस मठ में आया , तो उसी वक्त इसी मठ में भिक्षुओं की संख्या कोई पांच हजार से अधिक थी , संयोग से दसवें पंचन अर्दनी के गद्दी बैठने के लिये एक बहुत भव्यदार समारोह हुआ था ।

लेकिन तिब्बत के जनवादी सुधार से पहले मठों के छोटे बड़े मामलों का निपटारा जीवित बुद्धों व ऊपर वाले भिक्षुओं पर आश्रित था , उन जैसे साधारण भिक्षुओं को बोलने का कोई अधिकार नहीं था ।

1959 के बाद ताशिलुन्पो मठ में जनवादी प्रबंधन कमेटी स्थापित हुई है और कमेटी के सभी सदस्य मठ के सभी भिक्षुओं के मतदान से निर्वाचित हुए हैं । मठ के जितने भी ज्यादा मामलों का निर्णय जनवादी प्रबंधन कमेटी मीटिंग के जरिये कर लेती है। तत्काल में त्सेरिंग डोर्जे जनवादी प्रबंध कमेटी के सदस्य निर्वाचित हुए थे । अब वे इस जनवादी प्रबंधन कमेटी के सांस्कृतिक अवशेष दल का जिम्मेदार हैं और ताशिलुन्पो मठ की नये दौर की विशाल मरम्मत परियोजना में संलग्न हैं । 

अब ताशिलुन्पो मठ में हो रही मरम्मत में कुल 12 परियोजनाएं शामिल हैं । हम सर्वप्रथम मठ की दीवारों , छज्जों और भित्ति चित्रों को हुई क्षति का आंकलन करेंगे , फिर मरम्मत परियोजना शुरु होगी । इस के अलावा हम मठ में सुरक्षित भित्ति चित्रों , चांदी पात्रों , थांगका , चीनी मिट्टी बर्तनों और पार्थिव शरीर स्तूपों समेत सांस्कृतिक अवशेषों का संरक्षण भी करेंगे । मरम्मत परियोजना चालू वर्ष के आरम्भ से शुरु हो गयी है ।

पता चला है कि यह विशाल जीर्णोद्धार कार्य दो सालों में पूरा होगा । राज्य ने इसी संदर्भ में 13 करोड़ य्वान जुटा दिये हैं । जीर्णोंद्धार का काम तिब्बती वास्तु निर्माण की परम्परागत कलात्मक शैलियों के अनुसार भवनों की मूल वास्तु शैलियों को हू ब हू बरकरार रखेगा । इस के साथ ही तिब्बत में जोखांग मठ , ड्रेपोंग मठ और साक्या मठ का जीर्णाद्धार भी किया जायेगा ।

29 वर्षिय डावा त्सेरिंग को ताशिलुन्पो मठ में आये हुए दस साल हो गये हैं , मठ आने से पहले वे स्कूल में कई साल तक पढ़ते थे और वे अपने विश्वास से भिक्षु बने हैं । 

मैं ने अपनी इच्छा से संन्यास लिया है । आम दिनों में मैं सूत्र पढ़ने , संस्कृति और कंप्यूटर व टाइप सीखने में बड़ी रुचि लेता हूं । हालांकि डावा त्सेरिंग का प्रमुख लक्ष्य बौद्ध सूत्र पढ़ने में उत्तीण होने के बाद और उच्च स्तरीय बौद्ध उपाधि पाना है , पर वे अपने शौक को पूरी तरह छोड़ने को तैयार नहीं हैं । डावा त्सेरिंग कंप्युटर के शौकीन ही नहीं , उन के पास मोबाइल फौन भी है , वे हर रोज चीनी व तिब्बती भाषाओं में अपने दोस्तों व बाह्य दुनिया के साथ सम्पर्क कर लेते हैं ।

तिब्बत के न्गारी क्षत्र के एक जीवित बुद्ध ने हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि आज के जमाने में तिब्बती बौद्ध लामा धर्म दुनिया से अलग नहीं हो सकता , उसे बाह्य दुनिया के साथ व्यापक सम्पर्क कर सामाजिक विकास के लिये अपना योगदान प्रदान करना चाहिये । उन का कहना है कि धर्मों को लम्बे अर्से से अस्तित्व रहने के लिये समाज से अनुकूल होना जरूरी है , ऐसा होने पर भी धार्मिक जीवन शक्ति और शक्तिशाली होगा और समाज के लिये अधिकाधिक योगदान कर देगा ।

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