दोस्तो , यालुचाम्बू नदी हिमालय पर्वत से उद्गम होकर पश्चिम से पूर्व की ओर तिब्बत के अधिकतर क्षेत्रों से गुजर कर आगे बह जाती है और वह तिब्बत की माता नदी मानी जाती है । पर भौगोलिक स्थिति व जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के प्रभाव से यालुचाम्बू नदी के घाटी क्षेत्रों की कुछ जमीन ज्यादा रेतीली हो गयी है , जिस से पारिस्थितिकी पर्यावरण अत्यंत कमजोर हो गया है । इधर दसेक सालों में तिब्बत ने विशाल वृक्षारोपण परियोजना के जरिये यालुचाम्बू नदी के दोनों किनारों पर तीस हजार हैक्टर क्षेत्रफल वाली भूमि पर बड़ी हरित रक्षा पंक्ति खड़ी कर जमीन के रेतीलीकरण पर कारगर रुप से रोक लगायी है ।
हर वर्ष के मार्च में तिब्बत के लोका क्षेत्र के तिब्बती लोग तेज हवाओं व रेतों की रोकथाम के लिये यालुचाम्बू नदी के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण लगाते हैं । लोका क्षेत्र यालुचाम्बू नदी के मध्यम घाटी क्षेत्र में स्थित है , अनेक सालों से यह क्षेत्र रेतीलीकरण से गम्भीर प्रभावित क्षेत्रों में से एक है ।
कुछ दिन पहले तिब्बत में हमारे संवाददाता की मुलाकात दसियों तिब्बती ग्रामीणों से हुई , वे यालुचाम्बू नदी के दक्षिण तट स्थित एक गांव के हैं । इस गांव की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कमेटी के सचिव जाम्पा ने परिचय देते हुए कहा कि गांववासी हर वर्ष के इसी समय यहां आकर पेड़ लगा देते हैं ।
गांववासी पेड़ लगाने में ज्यादा उत्साहित हैं , राज्य ने हमें ज्यादा नकद भत्ता भी दे दी है , मिसाल के लिये एक गड्ढा खोदने से डेढ़ य्वान का मुनाफा होता है । साथ ही ये पेड़ आइंदे भी हमारे गांव के हैं , गांववासी इस से बेहद संतुष्ट हैं ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश हर वर्ष यालुचाम्बू नदी के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण के लिये कई करोड़ य्वान अनुदित करता है , जिस का काफी अधिकांश भाग तिब्बती लोगों को पेड़ लगाने के पारिश्रमिक के रूप में वितरित किया जाता है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के निर्धारण के अनुसार जिन्हों ने जो पेड़ लगाये हैं , वे पेड़ उन के ही होंगे । लोका क्षेत्र के जंगलात ब्यूरो के प्रधान सोनाम डोर्जी ने कहा गांववासियों को पेड़ लगाने से लाभ मिल गया है । अब राज्य ने वृक्षारोपण को बड़ा महत्व देकर भत्ता भी बढ़ा दी है , और तो और पेड़ गांववासों के होंगे । इस तरह गांववासियों का ज्यादा पेड़ लगाने का उत्साह पहले से अधिक बढ़ गया है ।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले दसेक सालों के प्रयासों के जरिये अब यालुचाम्बू नदी के मध्यम घाटी क्षेत्र में तीस हजार हैक्टर क्षेत्रफल वाली भूमि पर एक 160 किलोमीटर लम्बा हरित गलियारा खड़ा किया गया है । आगामी 2015 तक यालुचाम्बू नदी के मध्यम घाटी क्षेत्र में भूमि के रेतीलीकरण के रुझान पर पूरी तरह रोक लगायी जा सकती है ।
यालुचाम्बू नदी के मध्यम घाटी क्षेत्र में विशाल वृक्षारोपण लगाने से स्थानीय कमजोर पारिस्थितिकी पर्यावरण में बड़ा सुधार आया है । अतीत काल में तेज धूल भरी हवा चलने की वजह से लोका क्षेत्र स्थित गोंगकर एयरपोट पर विमान सिर्फ सुबह उड़ान भरने व उतरने में सुरक्षित थे , पर आज गोंगकर हवाई अड्डे पर दिन रात विमानों के उड़ान भरने व उतरने लायक है । एक स्थानीय महिला गांववासी कुन्ग ने हमारे संवाददाता को वृक्षारोपण से स्थानीय पारिस्थितिकी पर्यावरण में हुए परिवर्तनों से अवगत कराते हुए कहा बड़ों से सना जाता है कि मेरे बचपन में धूल भरी हवा इतनी तेजी से चलती थी कि हर सुबह उठकर मकान में ढेर सारे रेत जमे हुए नजर आते थे , अब यह हवा पहले से काफी अधिक कमजोर हो गयी है , हमारे वातावरण में बड़ा बदलाव आया है ।
यालुचाम्बू नदी के मध्यम घाटी क्षेत्र में वृक्षारोपण परियोजना तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के पारिस्थितिकि वातावरण संरक्षण का एक निचोड़ है । गत 18 फरवरी को चीनी राज्य परिषद ने तिब्बती पारिस्थितिकि रक्षापंक्ति की रक्षा व निर्माण योजना पारित की है और इसी योजना को छिंगहाई तिब्बत पठार की एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकि रक्षा परियोजना का रुप दिया है । राज्य के इन कदमों से तिब्बत के पारिस्थितिकि पर्यावरण में अवश्य ही और भारी परिवर्तन होंगे ।