दक्षिण पश्चिमी चीन के बर्फीले पठार पर रहने वाले तिब्बती नागरिक नृत्य गान को पसंद करते हैं। नृ्त्य गान के तरीके बहुत पुराने हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी के विकास के बाद अभी भी मौजूद हैं।
च्वो नृत्य को तिब्बती भाषा में तबला नृत्य भी कहा जाता है। तिब्बती भाषा में च्वो का अर्थ है सौभाग्य। आम तौर पर यह नृत्य महत्वपूर्ण त्योहारों के शुरु या समाप्त होने के समय किया जाता है। तिब्बती परम्परागत नृत्य संस्कृति में एक अपेक्षाकृत विशेष कला होने के नाते, यह नृत्य विश्व की विभिन्न जातियों के परम्परागत नृत्य संस्कृति में सब से पुराना नृत्यों में से एक है। कहा जाता है कि च्वो का इतिहास 1300 वर्षों से पुराना है।
च्वो के बारे में यह कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि आठवीं शताब्दी के मध्य में 37वें तिब्बती राजा ट्रिसुंग देट्सन ने कुछ बौद्ध धर्म के गुरुओं की सहायता से यालुजाम्बू नदी के उत्तरी तट पर तिब्बत के प्रथम मंदिर की स्थापना की। दिन में मजदूरों द्वारा निर्मित की गयी दीवार रात को शैतान द्वारा नष्ट कर दी जाती थी। इसलिए, बौद्ध धर्म के गुरु ने दाबू क्षेत्र से च्वोबा के सात भाइयों को आमंत्रित किया। उन्होंने च्वो नामक नृत्य कर शैतान को भगाने की कोशिश की। इस के बाद च्वो नामक नृत्य यहां प्रचलित हो गया ।
तिब्बत स्वायत प्रदेश की गोगा काऊंटी का ट्रेनगो गांव च्वो नृत्य का उद्गम क्षेत्र है। यहां 70 वर्षीय वृद्ध से दस साल की उम्र वाले बच्चे तबला बजाने की आवाज़ सुनते ही अपने आप च्वो नृत्य करने लगते हैं। 80 वर्षीय टाशी दोनद्रुब बहुत मशहूर च्वे नृत्य कलाकार हैं और वे च्वो नृत्य करने वाले सब से वृद्ध आदमी हैं। अब जब गांव के लड़के आंगन में च्वो नृत्य का अभ्यास करते हैं, तब टाशी दोनद्रुब पास में बैठे हुए ध्यान से देखते हैं और कभी-कभी लड़कों का निर्देशन भी करते हैं। टाशी दोनद्रुब की नजर में च्वो नृत्य बहुत पवित्र है। 50 वर्ष पहले च्वो नृत्य करने की चर्चा में श्री टाशी दोनद्रुब ने कहा:
"मेरे च्वो नृत्य सीखने का मकसद तत्कालीन तिब्बती गश्या सरकार के लिए काम करना था। तिब्बती नये वर्ष के मौके पर, हम तथाकथित कलाकार ल्हासा जाकर नेताओं के लिए अभिनय करते थे।उस समय मुझे वेतन नहीं मिलता था, पानी भी नहीं मिलता था। हालांकि अध्यापकों ने हमें अनेक तकनीक व उपाय सिखाए, फिर भी सब लोग अच्छी तरह नहीं सीखते थे।"
वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतंत्र रुपांतरण की नीति लागू होने के बाद, खासकर पिछली शताब्दी के 70 के दशक के अंत में रुपांतरण व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद, चूंकि चीन सरकार जातीय संस्कृति के संरक्षण व विकास कार्य को बड़ा महत्व देती है,पहले सुदूर गांव में फिर एक बार तबला बजाने की आवाज़ गूंजने लगी।
वर्ष 1983 में तिब्बत स्वायत प्रदेश ने लुप्त हो रही जातीय कला को बचाने के लिए विभिन्न स्थलों में कला मंडलों की स्थापना की। च्वो नृत्य के महा नृतक पेनबा ट्रेरींग ने 12 व्यक्तियों से च्वो नृत्य मंडल का गठन किया। जाशीद्वनजू इस मंडल के अध्यापक हैं। उन की अगुवाई में पेनबा ट्रेरींग ने धीरे-धीरे च्वो नृत्य का रहस्य जाना । उन के अनुसार:
"चूंकि च्वो नृत्य दसों भागों में विभाजित किया जाता है, इसलिए, इस नृत्य का पूरा अभिनय करने के लिए लगभग सात घंटों की ज़रुरत है। सात घंटों के नृत्य करने के बाद आम तौर पर नृतक बहुत थक जाते हैं। फिर भी सब लोगों ने च्वो नृत्य को नहीं त्यागा ।जब भी समय मिलता है, वे लोग अभ्यास करते है।"
पेनबा ट्रेरींग के साथ च्वो नृत्य सीखने वाले टासांग नोर्बू च्वो नृत्य के अध्यापक बन गये हैं। वे न केवल विद्यार्थियों को तकनीक सिखाते हैं, बल्कि अपने बच्चे को भी नृत्य मंडल में शामिल किया है । च्वो नृत्य से टासांग नोर्बू और स्थानीय नागरिक बहुत खुश हैं। उन के अनुसार:"तिब्बत स्वायत प्रदेश की सरकार अकसर हमें विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती है। अभिनय करने के बाद हम दौरा करते हैं और पूजा भी करते हैं।हमारे यहां के अनेक वृद्ध अनेक मंदिरों का दौरा नहीं कर पाते थे,लेकिन, हम लगभग तिब्बत के सभी मंदिरों का दौरा कर चुके हैं।"
तिब्बती परम्परागत नृत्य गान से भिन्न है, च्वो नृत्य के अभिनय तरीके बहुत जटिल हैं और विविधतापूर्ण हैं।इस लोक नृत्य का संरक्षण करने के लिए च्वो नृत्य को वर्ष 1996 में चीनी राज्य परिषद द्वारा प्रथम राष्ट्रीय गैर भौगोलिक सांस्कृतिक धरोहरों की नामसूची में शामिल किया गया। शैननान प्रिफेक्चर की गोगा काऊंटी के संस्कृति ब्यूरो के प्रधान छामबा ने परिचय देते हुए बताया:"राष्ट्रीय गैर भौगोलिक सांस्कृतिक धरोहरों की नामसूची में शामिल करने के बाद चीन ने च्वो नृत्य के संरक्षण में जोर दिया। आजकल नृत्य के 15 भागों की बहाली की गयी है, बाकी तीन भाग अभी भी बहाल किये जाने हैं। अभिनय दल में नृतकों की संख्या पहले के 12 से अब 160 तक हो गई है।"
तिब्बत में लोकतंत्र व रुपांतरण की नीति लागू होने से पहले च्वो नृत्य केवल मंदिर या तिब्बती स्थानीय सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न बड़ी गतिविधियों में किया जाता था, और अन्य स्थलों में अभिनय नहीं किया जा सकता था। आज लोग खेत मैदानों में या गांव के आंगन में च्वो नृत्य करते हैं।
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