तिब्बती जनता के रीति रिवाजों का सम्मान और संरक्षण किया जाता है । तिब्बती जाति और अन्य अल्पसंख्यक जातियों को अपनी अपनी प्रथा व मान्यता के मुताबिक जीवन बिताने तथा सामाजिक गतिविधि करने का पूर्ण अधिकार व संपूर्ण स्वतंत्रता है। वे अपनी जाति के वेश आभूषण, खानपान और आवास की परंपरा और तौर तरीका रखते हैं और रहनसहन और आवास एवं शादी विवाह व मौत के अंतिम संस्कार के क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता और स्वस्थ जीवन की नयी प्रथाएं भी ली गयी है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में कुछ परंपरागत त्यौहार और उत्सव जैसा कि तिब्बती पंचांग का नया साल ,साग्यादावा उत्सव , वांगगो उत्सव और श्वेतन उत्सव आदि तथा मठों की धार्मिक गतिविधियां अब तक सुरक्षित और बरकरार रही हैं , इस के साथ ही साथ चीन के भीतरी इलाके और विश्व व्यापी नये त्यौहारों को मनाने के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
तीर्थ पर्वत और झील की पूजा तिब्बती जाति का विशेष धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक परंपरा का प्राचीन रूप है, और तिब्बती जाति के प्राचीन पूर्वजों में तमाम चीजों में आत्मा मौजूद होने तथा प्रकृति का सम्मान करने तथा उस की प्रार्थना करने की धार्मिक परंपरा का निरंतर रूप है।
तिब्बती जाति मुख्यतः छिंगहाई तिब्बत पठार पर रहती है , पठार पर पहाड़ों की अनेकों श्रृंखलाएं और बेशुमार झील-नदियां उपलब्ध होती हैं। चीन और मध्य एशिया की कुछ प्रमुख नदियां इस पठार से निकलती हैं । दसियों लाख साल पहले यहां समुद्र के भूमि में बदलने का भारी परिवर्तन आया और छिंगहाई तिब्बत पठार संपन्न हुआ, इस तरह पठार पर झीलों की भी तादाद हो गयी । केवल वर्तमान तिब्बत क्षेत्र में ही बड़ी छोटी 1500 से ज्यादा झीलें मिलती हैं, जो अनंत बर्फीले पठार पर मोतियों की भांति बिखेरी हुई हैं।
इस महान रहस्यमय कुदरत से बनी विशाल भूमि में रहने वाली तिब्बती जाति के प्राचीन पूर्वज समझते थे कि पठार पर स्थित हरेक पहाड़, नदी, झील और जंगल तथा घास मैदान में निराकार आत्मा और भूत-प्रेत का वास होता है, वे संसार पर नियंत्रण रखते हैं और मानव के जीवन-मृत्य और भाग्य को निश्चित करते हैं । प्रकृति से डरने, समादर करने तथा पूजा करने की मनोवृति ने धीरे धीरे आदिम धार्मिक विश्वास का रूप ले लिया ।
आदिम धार्मिक विश्वास में तीर्थ पर्वत और झील की पूजा करना प्रमुख विषय बन गया और तिब्बती जाति के आदिम धर्म का एक अनोखा विशेष रूप हो गया। दीर्घकालीन सांस्कृतिक विकास के अन्तरकाल में इस प्रकार के धार्मिक विश्वास के अनेक विषय और रूप उत्पन्न हुए, अलग अलग काल और क्षेत्र में देवात्मा और भूत-प्रेत के अपने अपने कार्यभार विभाजित हुए। तिब्बती आदिम धर्म ,तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती जाति की लोक प्रथा व मान्यता इस प्राचीन परंपरा का जारी रूप है। लेकिन इन रूपों का रूपांतर भी हुआ और अपनी अपनी विश्वास व्यवस्थाएं संपन्न हुईं , अलग अलग व्यवस्था के पास अपने अपने तीर्थ पर्वत और झील मान्य हुए और पूरे तिब्बत में बेशुमार तीर्थ पर्वत व झील उपलब्ध हुए । उन की पूजा की परंपरा भी तिब्बती जाति का दीर्घकालिक धार्मिक विश्वास हो गया, जिस में प्रकृति, जीवजंतु और मानव से असीम प्यार , सम्मान और करूणा की भावना तथा शांति ,सुख और अमनचैन की कामनाएं निहित हैं।
तिब्बती जातीय संस्कृति में जिस पहाड़ में देवता का वास माना जाता है, उसे तीर्थ पर्वत कहलाता है। पहाड़ी देवता तीर्थ पर्वत रूपांतरित देवात्मा है । शुरू शुरू में पहाड़ी देवता पहाड़ और पहाड़ी वन में उत्पन्न मेघ और कोहरे में प्रकट होता था । बाद में सुरागाय आदि जानवर पहाड़ में आये, तो आदिम पूजा में जानवरों का तत्व भी शामिल हुआ । इसलिए प्राचीन तिब्बती कथाओं में बहुत से ऊंचे ऊंचे पर्वत सफेद सुरागाय के बदले हुए रूप बन गए।
![]() |
![]() |
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040 |