2009-03-18 17:07:43

दस लाख भूदासों की मुक्ति तिब्बत के मानवाधिकार कार्य की महान विजय

चीनी तिब्बत विद्य अनुसंधान केन्द्र द्वारा संचालित तिब्बत में जनवादी सुधार की 50वीं वर्षगांठ के बारे में अकादमिक संगोष्ठी 18 तारीख को पेइचिंग में आयोजित हुई। संगोष्ठी में 100 से अधिक विशेषज्ञों और विद्वानों तथा तिब्बत के जनवादी सुधार की प्रक्रिया में शिरकत हुए लोगों ने विश्व मानवाधिकार इतिहास में तिब्बती जनवादी सुधार के स्थान और तिब्बत के सामाजिक विकास के इतिहास में उस के महत्व जैसे सवालों पर विचार विमर्श किया। उन्हों ने कहा कि जनवादी सुधार के चलते तिब्बत के दस लाख भूदासों को मुक्ति प्राप्त हुई है , वह तिब्बत के मानवाधिकार कार्य की महान विजय है ।

तिब्बत प्राचीन काल से चीन का एक भाग रहा है । चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद 1951 में केन्द्र सरकार और तिब्बती स्थानीय सरकार के बीच तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में समझौता संपन्न हुआ, उसी समय तिब्बत की वास्तवित स्थिति के मद्देनजर तिब्बत में तुरंत सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का रूपांतरण नहीं किया गया । लेकिन 1959 के मार्च माह में दलाई के नेतृत्व वाले तिब्बती प्रतिक्रियावादी उच्च वर्गीय गुट ने पुराने तिब्बत की राजनीतिक व धार्मिक मिश्रण वाली भूदास व्यवस्था को हमेशा के लिए बनाए रखने की कोशिश में धृष्ठतापूर्वक सशस्त्र विद्रोह छेड़ा । दलाई गुट के विद्रोह को शांत करने के बाद केन्द्र सरकार ने तिब्बत में जनवादी सुधार शुरू किया और मूल रूप से सामंती भूदास व्यवस्था का खात्मा कर दिया, जिस से तिब्बत के दस लाख भूदासों को मुक्ति मिली।

18 तारीख की संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने परिचय देते हुए कहा कि जनवादी सुधार से पहले तिब्बत में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग भूदास और गुलाम थे, भूदास मालिकों की नजर में वे महज बोल सकने वाले साधन थे जो मनमाने ढंग से बेचे जा सकते थे, उन्हें कोई भी स्वतंत्रता नहीं थी। इस साल, 70 से अधिक साल वाले तिब्बती विद्वान वांग क्वी 1950 से 1981 तक तिब्बत में काम करते थे। उन्हों ने तत्काल तिब्बत में प्रचलित इस कहावत का हवाला देते हुए जनवादी सुधार से पहले तिब्बती भूदासों के दुभर जीवन का परिचय दियाः

भूदासों पर तीन तलवार लटके हुए हैं जो भारी बेगार, लगान और सूद है, किसानों के सामने तीन रास्ते है जो अकाल से बेघरवार, भूखमांगा और गुलाम बनते हैं।

जनवादी सुधार के बाद तिब्बत के दस लाख भूदासों को भूदास व्यवस्था से छुटकारा मिला और तिब्बत की सामाजिक व्यवस्था का भी युगांतर रूपांतर हुआ । दस लाख भूदासों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ खेत, बैल बकरी और उत्पादन संसाझन नसीब हुआ।

संगोष्ठी में तिब्बत विद तेन्जन चेपा ने कहा कि जनवादी सुधार ने तिब्बत का कायापलट कर दिया और मानवाधिकार कार्य में विश्व ध्यानाकर्षक प्रगति प्राप्त हुई। उन्हों ने कहाः

पिछले 50 सालों में केन्द्र सरकार ने तिब्बत में भारी मात्रा में मानव शक्ति, वित्तीय शक्ति और भौतिक शक्ति लगायी है, जिस से विकास की दृष्टि से कोरा कागज नुमा तिब्बत में आधुनिकीकरण की तस्वीर खींची गयी । जहां 50 साल पहले ल्हासा में भूखारी अनगिनत थे, वहां आज 5 लाख आबादी वाला आधुनिक शहर बन गया । तिब्बत के शिक्षा कार्य में भारी उपलब्धियां हासिल हुई हैं, प्राइमरी स्कूल से उच्च शिक्षा तक की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था कायम हुई, बेशुमार तिब्बतियों को कार्यकर्ता, सैनिक अफसर, इंजिनियर और कलाकार के रूप में प्रशिक्षित किए गए और तिब्बती जनता का सांस्कृतिक जीवन उल्लेखनीय रूप से उन्नत हुआ तथा थांगखा चित्र और तिब्बती आपेरा आदि तिब्बती परम्परागत कला कृतियों और साहित्य का बचाव व संरक्षण किया गया।

सूत्रों के अनुसार जनवाली सुधार के बाद पिछले 50 सालों में तिब्बत के राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में जमीन आसमान जैसा परिवर्तन आयेः किसानों और चरवाहों की वार्षिक आय 3000 य्वान तक पहुंची, जबकि जनवादी सुधार से पहले उन की कोई भी आमदनी नहीं थी। तिब्बतियों की औसत आयु भी पच्चास वाले दशक के 35.5 साल से बढ़कर 67 साल हो गयी ।

वर्तमान तिब्बत में तिब्बती लोग स्वतंत्र और स्वेच्छे से खेती, पशुपालन, कारोबार, व्यापार और मजदूरी कर सकते हैं। वे अपने दोनों हाथों से अपने जीवन को खुशहाल करते हैं। ल्हासा निवासी 62 वर्षीय सोनाम द्रादुल ने कहाः

अपनी बस्ती में मेरा परिवार बहुत धनी नहीं है, पर मैं एक दुकान चलाता हूं। समय समय पर तिब्बती पोशाक तैयार कर बेचता हूं। अब तिब्बती लोगों का जीवन बहुत बेहतर हो गया है और त्यौहार के समय नया पोशाक पहनते हैं। मेरा परिवार दो मंजिला तिब्बती शैली की इमारत में रहता है और खुशहाल जीवन बिताता है।