तिब्बत का थांगखा चित्र कपड़े व रेशम पर काढ़ा जाता है तथा काग़ज़ पर बनाया जाता है, जिस की स्पष्ट जातीय विशेषता, गाढा धार्मिक प्रभाव और विशेष शैली होती है । लम्बे अर्से में थांगखा चित्र को तिब्बती लोग मूल्यवान चीज़ मानते हैं ।
तिब्बती थांगखा चित्र की शुरूआति के बारे में और ज्यादा खोज और अनुसंधान की आवश्यकता है। इस से संबंधित ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार थांगखा चित्र संभवतः 1400 वर्ष पूर्व थांग राजवंश काल में थुबो राजा सोंगजान गोम्बो काल में पैदा हुआ । थांगखा चित्र तिब्बती बौद्ध धर्म से घनिष्ठ संबंध होता है, जिस का जन्म धार्मिक प्रसार के मिशन के साथ हुआ था । इस तरह थांगखा चित्र को तिब्बती बौद्ध धार्मिक कला भी कही जा सकती है । पुराने जमाने में तिब्बती संस्कृति आम तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में केन्द्रित होती थी । अनेकों महा धर्माचार्य बौद्ध धर्म के विद ही नहीं, महान ललित कला के कलाकार भी थे । तिब्बती बौद्ध धर्म के किसी भी मठ, बुद्ध भवन, संघाराम, यहां तक कि बहुत से अनुयायियों के धरों में भी थांगखा चित्र रखे जाते हैं । थांगखा चित्र तिब्बती बौद्ध धर्म का एक प्रतीक है, जिस के सामने लोग नतमस्त कर पूजा करते हैं ।
थांगखा चित्र के विषय बहुत विविध और प्रचुर हैं, जिन में धार्मिक विषय प्रमुख है, मसलन् बुद्ध मूर्ति, बोद्धिसत्व प्रतीमा ,बौद्ध सूत्र पढ़ने वाले चित्र, धार्मिक मठ, धार्मिक व्यक्ति, और धार्मिक प्रथाएं आदि थांगखा चित्र के विषयों का अस्सी प्रतिशत भाग बनते हैं । इन के अलावा, तिब्बत के सामाजिक, ऐतिहासिक, और जीवन व रीति रिवाज़ से जुड़े विषय भी शामिल है ।
चित्र के जरिए इतिहास को बताना थांगखा चित्र की एक विशेषता है । इस के साथ ही तिब्बती खगोल, पंचांग और चिकित्सा को प्रतिबिंबित करने वाले वैज्ञानिक विषय के थांगखा चित्र भी उपलब्ध हैं । मशहूर पोताला महल में ऐसा थांगखा चित्र सुरक्षित है, उस पर ग्रह-सितारों की परिक्रमा अंकित हुई है । जबकि दलाई लामा के ग्रीष्मकालीन भवन यानी नार्बुलिंगका में 17वीं शताब्दी में बनाए गए तिब्बती चिकित्सा संबंधी थांगखा चित्र के पूरे सेट सुरक्षित हैं, जिस में चिकित्सा सिद्धांत, चिकित्सा उपकरण, विभिन्न प्रकार की दवा औषधि और मानव की शारीरिक संरचना और नस नाड़ी के चक्र वाले चित्र देखे जा सकते हैं।
थांगखा चित्र का कंवास भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं । आम तौर पर कपड़े, रेशम, और काग़ज़ पर चित्र बनाया जाता है, चित्र में खनिज व वनस्पति के रंगों का प्रयोग किया जाता है । इस तरह थांगखा चित्र कई सौ वर्ष तक सुरक्षित किया जा सकता है और उस का रंग पहले की ही तरह ताजा चटक बना रहता है ।
थांगखा चित्र का साइज़ भी भिन्न-भिन्न है । आम तौर पर थांगखा चित्र की चौड़ाई सत्तर व अइस्सी सेंटीमीटर होता है । पोताला महल में पचास मीटर लम्बा बुद्ध मूर्ति वाला दो थांगखा चित्र सुरक्षित हैं, तिब्बती पंजांग के अनुसार हर वर्ष के 30 फरवरी को इन्हें प्रदर्शित किये जाता है । उसी समय वहां का दृश्य बहुत भव्य और मनोरम होता है ।
घी की मुर्ति कला
घी की मुर्ति कला घी से कलात्मक मुर्ति बनाने वाली परम्परागत तिब्बती कला की विशेष विधि है । इस कला से व्यापक विषयों में मुर्तियां बनायी जाती हैं, जिन में बुद्ध शाक्यामुनी की जातक,ऐतिहासिक कहानी, लोककथा और ओपेरा कथानक शामिल हैं । सूर्य, चांद, तारा, फूल, घास, पक्षी ,पशु, भवन मंडप, विभिन्न देव देवता, राजवंशों के मंत्री व सेनापति और आम आदमी सभी इस कला के पात्र बन सकते हैं ।यह कला यथार्थवादी चित्रण पर बड़ा ध्यान देती है , सभी आकृतियां जीता जागता लगती है , जो एक ऊंचे कलात्मक स्तर पर जा पहुंचा है ।
पैमाने व वास्तविक प्रयोग की दृष्टि से घी की मुर्ति कला दो किस्मों में बांटी है ।पहली श्रेणी में मध्य व छोटे धार्मिक आलों में आराधना अर्पित करने में प्रयुक्त मुर्तियां आती हैं और दूसरी श्रेणी में प्रदर्शन के लिए निर्मित बड़े आकार वाली घी की मुर्तियां आती हैं ।घी की कलाकृतियां अनुपम ,उत्कृष्ट और रंगबिरंगी होती हैं ,जो शुभसूचक व मंगलसूचक होती हैं ,खासकर बड़े आकार वाली घी की मुर्तियां दसियों और सैकड़ों में प्रदर्शित कर दर्शकों पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं ।
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