2009-03-16 16:42:12

चीन वन्य पारिस्थितिकी परियोजनाओं के निर्माण को गति देगा

इधर के सालों में चीन ने पारिस्थितिकीगत पर्यावरण की रक्षा के लिए क्रमशः पेइचिंग थ्येनचिन रेत उत्पत्ति स्थल नियंत्रण परियोजना, खेतों को पुनः वन्य रूप देने की परियोजना और प्राकृतिक वनों के संरक्षण की परियोजना आदि अहम पारिस्थितिकी संरक्षण परियोजनाएं शुरू कीं और देश में आर्थिक निर्माण व पारिस्थितिकी सुधार के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया । हाल ही में चीन सरकार ने वर्ष का नम्बर एक दस्तावेज जारी कर वन्य पारिस्थितिकी संरक्षण परियोजनाओं के निर्माण को गति देने की मांग की, ताकि देश की प्रादेशिक पारिस्थितिकी को और सुधारा जाए।

चीन विश्व में एक ऐसा देश है, जहां रेतीलीकरण की गंभीर समस्या मौजूद है। अब कोई दस करोड़ जन संख्या रेतीली क्षेत्रों में रहते हैं और 40 करोड़ जनसंख्या रेतीली समस्या से प्रभावित हुए हैं। भूमि का रेतीलीकरण चीन के आर्थिक विकास को बाधित करने वाला एक अहम कारक है। चीनी राजकीय वन्य ब्यूरो के प्रेस प्रवक्ता छाओ छिंगयो ने कहाः

चीन का रेतीली भू-भाग कुल 26 लाख 30 हजार वर्गकिलोमीटर है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 27.46 प्रतिशत भाग बनता है। इसलिए रेतीली भूमि पर काबू पाने का कार्य अत्यन्त फौरी जरूरी और भारी है ।

चीन की राजधानी पेइचिंग के चारों ओर कुछ क्षेत्रों में पारिस्थितिकी बहुत कमजोर है और वनस्पतियों का अभाव है और नंगी भूमि अधिक है, वसंत काल में विशाल दायरे में रेतीली हवा चलती है ,जिस से पेइचिंग के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। इस समस्या को हल करने के लिए चीन ने 2000 से पेइचिंग और थ्येनचिन के आसपास रेत उत्पत्ति स्थलों पर काबू पाने वाली परियोजना शुरू की, जिस के तहत पेइचिंग व थ्येनचिन शहर, हपे व शानसी प्रांत और भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश आये हैं। परियोजना पर अमल के बाद चीनी राजकीय वन्य ब्यूरो और परियोजना विभागों के समान प्रयासों से परियोजना क्षेत्र में वनस्पतियों का रकबा बड़ी हद तक बढ़ा और आर्थिक विकास के चलते किसानों और चरवाहों की आय भी काफी बढ़ी है।

भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में परियोजना पर अमल होने से अब तक पूरे प्रदेश में रेतीली भूमि में 16 हजार हैक्टर की कटौती आयी और प्रदेश में वन्य क्षेत्रफल 2 करोड़ हैक्टर से अधिक हो गया, जो प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत हो गया। परियोजना के जरिए वहां कृषि व पशुपालन का उत्पादन तौर तरीका भी बदल गया है। प्रदेश के वन्य विभाग के उप प्रधान ली सुफिंग ने कहाः

परियोजना के तहत खेतों को पुनः जंगल में बदलने, घास मैदान में मवेशी चराना बन्द करने, पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए स्थानीय निवासियों का स्थानांतरण करने और पेइचिंग थ्येनचिन रेत उत्पत्ति स्थलों पर नियंत्रण की परियोजनाओं के चलते वहां के रेतीली क्षेत्रों में पशु चराने के घूमंतू तरीके को बन्द कर स्थाई बाड़ा लगाकर पशुपालन का तरीका अपनाया गया, जिस से कृषि व चरवाही का केन्द्रीयकरण स्तर और आर्थिक मुनाफा बहुत बढ़ गया है।

चीन सरकार की वन संरक्षण नीति का यह परिणाम निकला है कि अब तक 2 करोड़ 60 लाख हैक्टर के खेतों को पुनः वन में बदला जा चुका है, जिन में कुल 4 खरब 30 अरब य्वान की पूंजी लगायी गयी और 12 करोड़ 40 लाख किसानों को लाभ दिलाया गया। चीन सरकार ने वन्य क्षेत्र में परिणत्त स्थानों में वृक्षरोपन और पहाड़ों पर पेड़ की कटाई पर पाबंदी की नीति भी लागू की, जिस से वहां हरियाली बिछाने का काम और तेज हो गया।

2000 से चीन ने यांगत्सी नदी, पीली नदी के ऊपरी भाग और उत्तर पूर्व चीन व भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में सुरक्षित घनी प्राकृतिक जंगलों की रक्षा करने की परियोजना शुरू की और 2010 तक वह पूरी होगी। परियोजना की गारंटी के लिए चीन ने इस साल विशेष नीति लागू की और प्राकृतिक वनों के संरक्षण में पूंजी अधिक लगाने की मांग की । चीनी राजकीय वन्य ब्यूरो के प्रेस प्रवक्ता छाओ ने कहाः

2008 के चौथी तिमाही में चीन सरकार ने आर्थिक वृद्धि को प्रेरित करने का कदम उठाया और केन्द्रीय सरकार ने प्राकृतिक वन्य संरक्षण में एक अरब य्वान की राशि लगायी, जिस से देश में पारिस्थितिकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए अच्छी नींव डाली गयी।

श्री छाओ छिंगयो ने कहा कि चीन ने वन्य संरक्षण परियोजना के तहत क्षतिपूर्ति का कोष कायम किया । सूत्रों के अनुसार केन्द्र के क्षतिपूर्ति कोष से 4 करोड़ हैक्टर वन्य क्षेत्रफल को लाभ मिला और इन में अब 17 अरब य्वान की पूंजी क्षतिआपूर्ति के लिए डाली गयी है।

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