पोलो का खेल अब भी तिब्बत क्षेत्र का लोकप्रिय खेल है। ऐतिहासिक उल्लख के मुताबिक 7 से 9 वीं शताब्दी तक थुबो राज्य में घुड़सवारी दौड़ और पोलो का विकास हुआ। पोलो के लिए उच्च स्तरीय कौशल और कड़ी ट्रेनिंग की जरूरत है। पोलो के गैंद रंगीन है और डंडा अर्ध चंद्रकार का है। पोलो तिब्बत में प्रतियोगिता और मनोरंजन दोनों के लिए आयोजित होता है।
तिब्बत में प्रचलित शतरंज चीन के भीतरी इलाके से भिन्न किस्म का है । इसलिए वह तिब्बती शतरंज कहलाता है। शतरंज के खेल तरीके भी अनेक है । तिब्बत में आज भी लोग शतरंज पसंद करते हैं ,खास कर गर्मियों के अवकाश समय गांव वासी खेल ज्यादा करते हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म में तपस्या करने में अनेक शरीर तपाने के तरीके होते हैं। मोटी तौर पर वह तिब्बती प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम से लोग स्वास्थ्य मजबूत करते हैं और शरीर की निहित शक्ति विकसित करते हैं और रोगों का निवारण करते है।
तिब्बत में आधुनिक पर्वतारोहन
तिब्बत में पर्वतारोहण एक विशेष किस्म वाला खेल है, जो विश्व ध्यानाकर्षक भी है । वास्तव में तिब्बत में पर्वतारोहण खेल के विकास का इतिहास लम्बा नहीं है । वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किए जाने के बाद पर्वतारोहण खेल तिब्बतियों से परिचित हुआ । वर्ष 1960 की 25 मई को तिब्बती पर्वतारोही गोंबू और चीनी हान जाति के पर्वतारोही वांग फ़ूचो और छ्यु यिनह्वा ने पहली बार उत्तरी दिशा में चोमुलांमा पर्वत चोटी पर चढ़ गये । चीनी राष्ट्रीय ध्वज पहली बार चुमुलांगमा चोटी पर फहराया गया । इस तरह तिब्बती बंधु गोंबू चीनी पर्वतारोहण इतिहास में प्रथम तिब्बती वीर बन गए । इसी साल में तिब्बती पर्वतारोहण दल औपचारिक रूप से स्थापित हुआ ।
पिछले चालीस वर्षों में क्रमशः चालीस से ज्यादा चीनी हान जाति व तिब्बती जाति के पर्वतारोहियों ने चुमुलांगमा चोटी पर आरोहित किया । 260 पर्वतारोहियों ने समुद्र सतह से आठ हज़ार मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ने में सफलता पायी । वर्ष 2007 में तिब्बती पर्वतारोहण दल सफलतापूर्वक गाशेर्बुर्म नम्बर एक चोटी पर चढ़ा और यह दल विश्व में ऐसा प्रथम दल बन गया, जिस ने सामूहिक तौर पर दुनिया में आठ हज़ार मीटर से ऊपर 14 चोटियों पर चढ़ने में कामयाबी हासिल की है ।
वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीनी पर्वतारोहण खेल का महत्वपूर्ण अड्डा और पर्वतारोहियों तथा संबंधित सेवकों का प्रशिक्षण करने का केंद्र बन गया । वर्ष 1999 में तिब्बती पर्वतारोहण स्कूल की स्थापना औपचारिक तौर पर हुई, यह चीन में प्रथम पेशेवर पर्वतारोहियों व प्रतिभाओं का प्रशिक्षण स्कूल है, जिस में उच्च स्तरीय पर्वतारोही ही नहीं, संबंधित क्षेत्र में उच्च स्तरीय सहयोगी व गाइड का प्रशिक्षण भी किया जाता है। स्कूल के सभी विद्यार्थी पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले तिब्बती किसान व चरवाहे हैं, स्कूल में वे मुफ्त शिक्षा पा सकते हैं ।
इधर के वर्षों में तिब्बत में आने वाले देशी विदेशी पर्यटन दलों की संख्या लगातार बढ़ने के साथ-साथ पहाड़ पर चढ़ना अनेक पर्यटकों की पसंदीदा विकल्प बन गया है । भविष्य में तिब्बत छह हज़ार मीटर से ऊपर वाली चोटी पर पैदल पर्वतारोहण पर्यटन परियोजना शुरू करेगा ।
29वां ऑलंपिक खेल समारोह दो हजार आठ में पेइचिंग में आयोजित हुआ । वर्ष 2008 की मई की आठ तारीख को मानव खेल की भावना का प्रतिनिधित्व करने वाले ओलंपिक मशाल की पवित्र अग्नि सफलतापूर्वक चुमुलांगमा चोटी पर आरोपित की गई । चीनी पर्वतारोहण टीम के 31 पर्वतारोहियों, जिन में 22 तिब्बतियों, आठ हान जाति के व्यक्तियों और एक थूच्या जाति के व्यक्ति शामिल है, ने इस में भाग लिया । चुमुलांगमा चोटी पर चढ़ने वाले पांच पर्वतारोहियों में दो महीला और एक पुरूष समेत तीन तिब्बती खिलाड़ी हैं ।
वर्ष 1992 में तिब्बती पर्वतारोहण दल ने कुछ श्रेष्ठ खिलाड़ियों को चुनकर औपचारिक तौर पर"विश्व की 14 आठ हज़ार मीटर से ऊपर चोटियों पर चढ़ने वाली चीनी तिब्बती पर्वतारोहण टीम"स्थापित किया। दस से ज्यादा वर्षों में इस टीम ने क्रमशः 14 चोटियों पर चढ़े । टीम के नेता तिब्बती बंधु सांगजू हैं । उन्होंने आधुनिक पर्वतारोहण ट्रेनिंग पाने के एक साल बाद सफलतापूर्वक चुमुलांगमा चोटी पर आरोप किया, उस समय उन की उम्र सिर्फ़ 22 साल थी । इस टीम में सब से बड़ी उम्र वाले सदस्य त्सेरिन तोची हैं, वे विश्वविख्यात पर्वतारोही हैं, जो"बर्फीला पहाड़ के बाज"के नाम से मशहूर हैं । वर्ष 1988 में चीन, जापान और नेपाल के खिलाड़ी संयुक्त रूप से चुमुलांगमा चोटी पर चढ़े, त्सेरिन तोची चुमुलांगमा के उत्तरी भाग से चोटी पर चढ़ा और दक्षिण भाग से उतरा, वे चोटी पर 99 मीनट तक ठहरे, उन्होंने विश्व में एक रिकोर्ड बनाया । इस तरह उन्हें"चुमुलांगमा को आरपार करने वाले प्रथम व्यक्ति"माना गया है ।