देश की लम्बे अरसे की पृथकता के कारण, युद्धरत-राज्य काल में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग लिपियां प्रचलित थीं। देश के एकीकरण के पश्चात, समूचे चीन में "श्याओ च्वान"नामक एक प्रमाणित लिपि, जो उस जमाने की लिपियों का एक सरल रूप थी, प्रचलित की गई। बाद में इस की जगह"ली शू"लिपि ने ले ली, जो लिखने में इससे भी आसान थी। "ली शू"लिपि आज की "खाए शू"लिपि से काफी मिलती-जुलती है। छिन सरकार ने पूरे देश की मुद्राओं को एकरूप कर दिया तथा समूचे देश के लिये नाप-तौल के एकीकृत मापदण्ड निर्धारित किए। देशभर में यातायात को सुगम बनाने के लिये छिन शासक ने पुराने छै राज्यों द्वारा निर्मित सभी सीमावर्ती चौकियों , किलेबंदियों और दुर्गों को गिरा देने का आदेश दिया तथा राजधानी श्येनयाङ को केन्द्र बनाकर उत्तरपूर्वी, उत्तरी और दक्षिणपूर्वी चीन की ओर जाने वाली 50 कदम चौड़ी अनेक मजबूत सड़कें बनवाईं और उनके दोनों किनारों पर पेड़ भी लगवाए। ये तमाम उपाय सामन्ती राज्य के एकीकरण को सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध हुए।
अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से छिन सम्राट ने उन सभी पुस्तकों को, जिन्हें छिन सरकार की स्वीकृति प्राप्त न थी, जला डालने और भिन्नमतावलम्बी विद्वानों को जिन्दा गाड़ देने तथा जनता के हथियारों को जब्त व नष्ट कर देने का हुक्म भी जारी किया था।
छै राज्यों को खत्म करने के बाद, छिन राजवंश के प्रथम सम्राट ने उत्तर से दक्षिण की ओर श्युङनू (हूणों) के अभियान की रोकथाम के लिये अपने सेनापति मङ थ्येन को हुक्म दिया कि वह छिन, चाओ, येन और अन्य राज्यों द्वारा पहले से बनाई गई दीवारों को जोड़कर पश्चिम में लिनथाओ (वर्तमान कानसू प्रान्त के मिनश्येन के उत्तर में ) से पूर्व में ल्याओतुङ (वर्तमान ल्याओनिङ प्रान्त के ल्याओयाङ के उत्तर में ) तक हजारों किलोमीटर लम्बी एक दीवार बनवाए। यह कार्य विपुल श्रमशक्ति जुटाकर पूरा किया गया और नतीजे के तौर पर विश्वविख्यात "लम्बी दीवार"का निर्माण हुआ।