मार्च 1955 में चीनी नेता अध्यक्ष माओ त्सेतुंग के सुझाव पर और तिब्बत के दो प्रमुख धार्मिक नेता 14वें दलाई लामा और 10 वें पंचनलामा की सहमति पर केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश स्थापना तैयारी कमेटी गठित करने का फैसला किया, दलाई लामा और पंचनलामा कमेटी के अध्यक्ष और प्रथम उपाध्यक्ष होंगे जो तिब्बत में जातीय स्वशासन प्रदेश की स्थापना करने का काम देखेंगे। इस के एक साल बाद, तैयारी कमेटी ल्हासा में औपचारिक रूप से स्थापित हुई, इस के 51 सदस्यों में 48 तिब्बती थे। मौके पर चीनी उप प्रधान मंत्री छनई ने ल्हासा पहुंच कर बधाई दी।
तिब्बती इतिहासकार पासांनवांगत्वी ने माना कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद तिब्बत में केन्द्रीय सरकार के सामने दो बड़ी समस्याएं खड़ी थीः एक थी उस समय के तिब्बती समाज वाकई पिछड़ा और अंधेरा था, जन जीवन अत्यन्त दुभर था, इस हालत को बदल देने की सख्त जरूरत थी । दूसरी तरफ ऐतिहासिक और धार्मिक कारणों से और तिब्बत में लम्बे अरसे से अमरीका और ब्रिटेन द्वारा फुट का बीज डाले जाने की वजह से और चीन की छिंग राजवंश सरकार व कोमिनतांग पार्टी की सरकार के काल में जातीय भेदभाव व जातीय दमन नीति लागू की जाने के परिणामस्वरूप तिब्बती और हान जाति में गहरा जातीय मनमुटाव बना रहा था।
10 मार्च 1959 को तिब्बत के उच्च वर्ग के शासक गुट में कुछ लोगों ने लोकतांत्रिक सुधार के प्रति जनता में दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही मांग की उपेक्षा करते हुए सामंती भूदास व्यवस्था को हमेशा के लिए बनाए रखने की कोशिश की और अमरीका आदि बाह्य शक्तियों के समर्थन में आकस्मिक सशस्त्र उपद्रव शुरू किया और तिब्बत को चीन से अलग कर देने की नाकाम कोशिश की। चंद कुछ लोगों द्वारा छेड़े गए सशस्त्र विद्रोह को शांत किये जाने के परिणामस्वरूप तिब्बत के दस लाख भूदासों का भाग्य पलट गया। सशस्त्र उपद्रव को शांत किये जाने के बाद केन्द्रीय सरकार ने पुरानी तिब्बती स्थानीय सरकार को भंग कर दिया और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना तैयारी कमेटी का पुनः गठन कर स्थानीय तिब्बत सरकार का काम संभालने का फैसला कर लिया और दसवें पंचनलामा को कमेटी के कार्यवाहक प्रधान के लिए नियुक्त किया ।
जून 1959 से चीन की केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत के विभिन्न स्थानों में दो साल के भीतर लोकतांत्रिक सुधार चलाया। इस के तहत भूदास मालिक पर भूदासों और गुलामों की गुलामी समाप्त कर दी गयी। चंद कुछ उन कुलीन वर्ग के लोगों, मठों और भूदास मालिकों की संपत्ति जब्त कर दी गयी, जिन्हों ने सशस्त्र विद्रोह में भाग लिया था। उन 98 प्रतिशत के भूदास मालिकों, कुलीनों और मठों की अतिरिक्त भूमि व उत्पादन संसाधों को इस शर्त पर खरीदा गया कि उन का जीवन स्तर लोकतांत्रित सुधार से पहले के स्तर से नीचा न हो । इन खेतों व उत्पादन संसाधनों का जब्त की गयी संपत्तियों के साथ पूर्व भूदासों में बंटवारा किया गया।
श्री पासांनवांगत्वी ने कहा कि तिब्बत में सन् 1959 के लोकतांत्रिक सुधार ने न केवल तिब्बती सामंती भूदास व्यवस्था का अंत कर दिया ही नहीं , साथ ही लाखों भूदासों का सदियों पुराना यह सपना भी साकार हो गया कि उन्हें भी उत्पादन के लिए भूमि और संसाधन मिल सके। सुधार से तिब्बत का समाज एकदल बदल गया। उन्हों ने कहाः
"विचारधार की पहलु में नव जनवादी व समाजवादी विचारधारा तिब्बती जनता के दिमाग में गर्भित हुई, समानता, शोषण व दमन का विरोध जैसा चेतन धीरे-धीरे तिब्बती लोगों का मुख्य अवधारणा बन गया। राजनीतिक व्यवस्था की पहलु में तिब्बत की विभिन्न स्तरों की सत्ता में बेशुमार कम्युनिज्म में विश्वास रखने वाले लोग उभरे। चीन लोक गणराज्य के एक अभिन्न भाग के रूप में तिब्बत में समाजवादी क्रांति व निर्माण आरंभ हुआ और तिब्बत में धर्म को राजनीति से अलग कर दिया गया और तिब्बत के राजनीति, अर्थव्यवस्था व संस्कृति पर धार्मिक आधिपत्य को खत्म कर दिया गया ।"
लोकतांत्रिक सुधार के जरिए तिब्बती जनता को देश की अन्य जातियों की जनता की भांति समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुआ। वर्ष 1961 में तिब्बत के विभिन्न स्थानों में इतिहास में प्रथम बार आम चुनाव किया गया। सामंती भूदास व्यवस्था से मुक्त हुए भूदासों और गुलामों ने तिब्बत के इतिहास में पहली बार चुनाव में खड़े रहने तथा चुने जाने का अधिकार हासिल किया । आम चुनाव से काऊंटी और टाउनशिप स्तर की सत्ता चुनी गयी । सितम्बर 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की प्रथम जन प्रतिनिधि सभा का पहला अधिवेशन ल्हासा में आयोजित हुआ, जिस में स्वायत्त प्रदेश की नेतृत्वकारी संस्थाएं और नेतागण चुने गए और औपचारिक रूप से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना की घोषणा की गयी । बड़ी संख्या में पूर्व भूदास तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की विभिन्न स्तरों की सत्ता संस्थाओं में अधिकारी बन गए।
श्री पासांनवांगत्वी ने कहा कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना इस का प्रतीक है कि तिब्बत में जनता की जनवादी सत्ता कायम हुई है और चौतरफा तौर पर जातीय क्षेत्रीय स्वशासन लागू हो गया है। तिब्बती जनता लोकतांत्रिक रूप से अपने क्षेत्र के मामलों का प्रबंध करने लगी और सारे देश की जनता के साथ मिलकर समाजवादी रास्ते पर चल निकली है।
(श्याओ थांग)